शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

9 वर्ष बाद बन गया फिर 2011 में दो धनतेरस का योग; धन और श्रद्धा होगी दुगनी---भगवान धनवन्तरी की पूजा का पर्व हे धनतेरस---

दीपावली से पूर्व खरीददारी का महापर्व धनतेरस/धनत्रयोदशी इस बार दो दिन तक मनायी जायेगी ..यह योग नो वर्षों के बाद एक बार फिर बन गया है इसका कारण यह हें की 24 अक्टूबर 2011 को सूर्य शाम को स्वाती नक्षत्र( 04 :45 बजे) में आ जायेगा..इसी दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र भी रहेगा..यह उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र 25 अक्टूबर को प्रातः तीन(3) बजकर 45 मिनट तक रहेगा..इसके बाद में हस्त नक्षत्र आ जायेगा..शास्त्रो के अनुसार उत्तराफाल्गुनी नक्श्रा में अबूझ मुहूर्त, मांगलिक कार्य,और खरीददारी करने का श्रेष्ठ मुहूर्त होता हैं..वहीँ हस्त नक्षत्र भी इन कार्यो हेतु उत्तम माना गया है 24 अक्टूबर,2011 को धन त्रयोदशी दोपहर में 12 :35 से शुरू होकर अगले दिन सुबह नो (09 )बजे तक रहेगी...चूँकि दीपदान शाम को त्रयोदशी और प्रदोष कल में किया जाता हें..और धन्वन्तरी जयंती उदियत तिथि में त्रयोदशी होने पर मनाई जाती हैं..इसी कारण २४ अक्टूबर,2011 की शाम को त्रयोदशी होने पर दीपदान किया जा सकेगा जबकि 25 अक्टूबर,2011 को सूर्योदय के समय त्रयोदशी होने के कारन इसी दिन भगवन धन्वन्तरी की जयंती धूम धाम से मनाई जाएगी 25 अक्टूबर,2011 की शाम को चतुर्दशी तिथि होने के कारण इस दिन रूप चतुर्दशी पर्व मनाया जायेगा

पांच दिनों तक चलने वाले पर्वों दीपावली की शुरुआत धन तेरस से होती है।

धन तेरस को धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस का त्योहार हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक बदी १३ को मनाया जाता है।

जिस प्रकार देवीलक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धनवन्तरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि धन देवी हैं, परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए हमको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए। यही कारण है कि दीपावली के दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को भगवान धन्वन्तरी के नाम पर धनतेरस कहते है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे,इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।

भगवाण धन्वंतरी की साधना के लिये एक साधारण मंत्र है:

ॐ धन्वंतरये नमः॥

इसके अलावा उनका एक और मंत्र भी है:

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:

अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय

त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप

श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात

परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है।

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