सोमवार, 28 दिसंबर 2009

चंद्र ग्रहण आठ राशियों के जातकों पर भारी रहेगा, बाकी के लिये सामान्य है।

चंद्र ग्रहण आठ राशियों के जातकों पर भारी रहेगा, बाकी के लिये सामान्य है।

लगभग एक घंटे का यह ग्रहण यहां आंशिक रूप से दिखाई देगा। चंद्र ग्रहण 31 दिसंबर-एक जनवरी की रात्रि 00.22 बजे से शुरू होगा। 00.53 बजे ग्रहण का मध्यकाल होगा, जबकि रात्रि 1.24 बजे समाप्त हो जायेगा। ग्रहण का समय एक घंटे से कुछ ज्यादा रहेगा। यह चंद्र ग्रहण पौष पूर्णिमा के दिन आद्रा नक्षत्र और मिथुन राशि में पड़ रहा है। मेरठ सहित उत्तर भारत में यह आंशिक रूप में दिखाई देगा। मेष, सिंह, कन्या, मकर राशियों के लिये ग्रहण सामान्य है, जबकि बाकी आठ राशियों के लिये कष्टप्रद हो सकता है। पौष मास की पूर्णिमा की रात्रि में खंडग्रास (आंशिक) चंद्रग्रहण संपूर्ण भारतवर्ष में दिखाई देगा। चंद्रमा को ग्रहण के ग्रास का स्पर्श (ग्रहण का प्रारंभ) 31 दिसंबर बीत जाने के बाद 1 जनवरी की मध्यरात्रि 12.22 बजे (भारतीय समयानुसार 0.22 बजे) होगा। ग्रहण का मध्यकाल रात्रि 12.53 बजे (भारतीय समयानुसार 0.53 बजे) होगा। इस समय चंद्रबिंब का 8.2 प्रतिशत भाग ग्रास से ग्रसित हुआ दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष (समापन) रात्रि 1.24 बजे होगा। चंद्रग्रहण का सूतक (वेध) इस खंडग्रास चंद्रग्रहण का सूतक स्पर्श (ग्रहण के प्रारंभ) के समय से 9 घंटे पूर्व शुरू होगा, अर्थात गुरुवार 31 दिसंबर को दोपहर 3.22 बजे से ग्रहण का सूतक लगेगा। ग्रहण के सूतक काल में भोजन-शयन, हास्य-विनोद, रतिक्रीड़ा, देवमूर्ति का स्पर्श, तेल-मालिश वर्जित है। लेकिन बालक, रोगी, वृद्ध और अशक्त सायं 7.52 बजे तक आहार और औषधि ग्रहण कर सकते हैं। मान्यता है कि कुश के स्पर्श से पदार्थ ग्रहण काल में दूषित नहीं होते हैं। गुरुवार 31 दिसंबर को दोपहर 3.22 बजे सूतक लगते ही मंदिरों के पट बंद हो जाएंगे, जो दूसरे दिन शुक्रवार 1 जनवरी को खुलेंगे। चंद्रग्रहण का प्रभाव यह चंद्रग्रहण मिथुन राशि के अंतर्गत आद्र्रा नक्षत्र में पड़ेगा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार विविध राशियों पर इस ग्रहण का फल निम्न प्रकार होगा- 1. मेष- समृद्धि 2. वृषभ- हानि, 3. मिथुन- आघात, 4. कर्क- क्षति, 5. सिंह- लाभ, 6. कन्या- सुख, 7. तुला- अपमान, 8. वृश्चिक- संकट, 9. धनु- जीवनसाथी को कष्ट, 10. मकर- आनंद, 11. कुंभ- चिंता, 12. मीन- तनाव।

यह ग्रहण राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों, उच्च पदाधिकारियों, धर्मात्माओं, विद्वानों, कलाकारों के लिए अति कष्टदायक रहने की संभावना है। देश के यमुना तटीय क्षेत्र, पंजाब, बिहार, दक्षिण भारत और पाकिस्तान के सिंध पर इसका विशेष प्रभाव पड़ेगा।

गेहूं, चना, तेल, गुड़, घी, तिलहन, तरल (रस) पदार्थ, सूत-कपास, सोना-चांदी, लोहा, हल्दी, सरसों, लाल मिर्च, मसूर, छुआरा, सुगंधित वस्तुओं और श्रृंगार के सामान के मूल्य में तेजी आएगी। महंगाई और अशांति बढ़ेगी। चंद्रग्रहण के दृश्यकाल (पर्वकाल) में साधना करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की समाप्ति पर शुद्धि-स्नान और दान अवश्य करना चाहिए। जिन राशियों में ग्रहण का फल शुभ नहीं है, उनसे संबंधित लोग ग्रहण न देखें।

ग्रहण के कारक पृथ्वी, सूर्य एवं चंद्रमा क्रमश: पृथ्वी तत्व, तेज तत्व तथा जल तत्व के पर्याय हैं। जितने समय तक सूर्य की किरणों चंद्रमा तक पहुंचने में बाधित होती हैं, वही अवधि ग्रहणकाल के रूप में जानी जाती है। इन पंचतत्वों में से तीन तत्व ग्रहण के प्रमुख कारक हैं तथा यह घटना अंतरिक्ष अर्थात आकाश में होती है जो वायु के कई रूपों को स्वयं में समाहित किए हुए है। इस आधार पर कह सकते हैं कि पांच तत्वों की उपस्थिति में ग्रहण जैसी महत्वपूर्ण घटना घटित होती है। ग्रहण का प्रभाव भी सभी चर-अचर पर होना स्वाभाविक है।

जिस प्रकार सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र (हरियाणा) का विशेष महत्व होता है, उसी तरह चंद्रग्रहण में काशी का सर्वाधिक महत्व होगा। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को जल का कारक ग्रह माना गया है और काशी में गंगा चंद्राकार स्वरूप में दिखाई देती हैं। इसीलिए चंद्रग्रहण का सबसे अधिक अध्यात्मिक लाभ काशी में ही संभव है। लेकिन किसी भी नदी- सरोवर में नाभि तक जल में खड़े होकर मंत्र-साधना की जा सकती है। इसी कारण भारतीय संस्कृति में ग्रहण को एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि अध्यात्मिक साधना का महापर्व माना जाता है। आगामी चंद्रग्रहण भारत में इसके बाद चंद्रग्रहण शनिवार 26 जून 2010 को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को पड़ेगा, लेकिन यह देश के केवल पूर्वोत्तर राज्यों में ही बहुत कम समय के लिए आंशिक रूप से दिखाई देगा। ग्रहण जहां दिखाई देता है, वहीं उसका सूतक (वेध) माना जाता है।

ग्रहण आद्र्रा नक्षत्र व मिथुन राशि में घटित हो रहा है। अत: जिस जातक का जन्म नक्षत्र आद्रा है या जिसका जन्मनाम क,,छ से प्रारंभ हो रहा है, उसके लिए यह ग्रहण शुभफल प्रदाता है।

सत्ता से जुड़े दल आपसी वैमनस्यता के शिकार होंगे। सत्तारूढ़ दल में मतमतांतर संभावित है। राजनैतिक दलों में आपसी मतमतांतर के फलस्वरूप मंत्रिमंडल में परिवर्तन संभावित है।

ग्रहण का जनसामान्य पर भी विशेष प्रभाव रहेगा। मानव शरीर में 72 प्रतिशत पानी है। इस कारण जनसामान्य की विचार श्रंखला एवं मन:स्थिति विशेष प्रभावित होगी। मानसिक बाधा से ग्रसित रोगियों में उन्माद की स्थिति रह सकती है। प्रसवा महिलाओं में ऑपरेशन की अधिकता हो सकती है।

क्या करें

मंत्रग्रहण, मंत्रदीक्षा, जप, उपासना, पाठ, हवन, मानसिक जाप, चिंतन।

क्या नहीं करें

भोजन, भोजन पकाना, शयन, मल-मूत्र उत्सर्जन, रतिक्रिया, उबटन।

चंद्र ग्रहण का राशियों पर प्रभाव

मेष- रुके हुए कार्य पूर्णता की ओर बढ़ेंगे। सुख की अनुभूति होगी। मन शुभ विचारों से ओतप्रोत रहेगा। ओम अश्विनी कुमाराय नम: मंत्र का जाप करें।

वृष- अनावश्यक प्रपंच में पड़ सकते हैं। कार्यो में व्यवधान व हानि संभव। यात्रा निर्थक हो सकती है। ओम चंद्रमसे नम: मंत्र का जाप करें।

मिथुन- कार्यो में असफलता, शारीरिक कष्ट, वैमनस्यता, वाहन संचालन में सतर्कता, पारिवारिक विघटन। ओम दितिये नम: मंत्र का जाप करें।

कर्क- विनिमय में सतर्कता, उतावलापन हानिकारक, वाणी को पूर्ण संयत रखें, पारिवारिक सहयोग में कमी संभावित। ओम बृहस्पतये नम: मंत्र का जाप करें।

सिंह- यह ग्रहण आपके लिए शुभ है। व्यावसायिक लाभकारी अनुबंध होने की संभावना है। रुका धन प्राप्त हो सकता है। ओम अर्यमणो नम: मंत्र का जाप करें।

कन्या- उपयोगी समाचारों की प्राप्ति होगी। आमोद-प्रमोद में समय व्यतीत होगा। भवन या वाहन की समस्या का समाधान होगा। ओम आदित्याय नम: मंत्र का जाप करें।

तुला- कार्यो में अचानक व्यवधान संभावित है। अतिविश्वास आपकी प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है। ओम इंद्राय नम: मंत्र का जाप करें।

वृश्चिक- कई कार्य ऐसे होते हैं जो केवल सुनने-समझने के होते हैं। ऐसे में नए कार्यो को प्रारंभ करने का अभी समय नहीं है। ओम हों जुं स: महामंत्र का जाप करें।

धनु- खानपान का ध्यान रखें। साथी के स्वास्थ्य में गड़बड़ी हो सकती है। व्यापार-व्यवसाय में अपेक्षित लाभ की संभावना है। ओम बृं बृहस्पतये नम: मंत्र का जाप करें।

मकर- मिश्रित समय । नाकाऊ से दोस्ती नाकाऊ से बैर सिद्धांत का पालन करें। तटस्थ रहें, तेल में मुंह देखकर दान दें तथा ओम विष्णवे नम: महामंत्र का जाप करें।

कुंभ- शारीरिक श्रम की अधिकता होगी तथा वैचारिक उथल-पुथल के कारण कहीं बने बनाए कार्य लंबित ही रहेंगे। ओम वं वरुणाय नम: मंत्र का जाप करे

मीन- वैचारिक अस्थिरता बनी रहेगी। कार्यक्षेत्र में कुछ व्यवधान के पश्चात सफलता अर्जित करने में सफल होंगे। ओम पूष्णो नम: मंत्र का जाप करें।

यदि आप कुछ जानना चाहते है तो हमे मेल का सकते है। या फोन पर बात कर सकते है। मो--०९३५९१०९६८३---09808668008

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

गुरू के राशि परिवर्तन का प्रभाव

गुरू के राशि परिवर्तन का प्रभाव
गुरू नवग्रहों में ऐसा ग्रह है जो धर्म-अध्यात्म, बुद्धि-विवेक, ज्ञान, विवाह, पति, संतान, पुत्र सुख, बड़े भाई का कारक माना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से भी गुरू हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर में वसा, पाचन क्रिया, कान, हृदय सहित लीवर को प्रभावित करता है. इन सभी विषयों में गुरू का प्रभाव आपको अपनी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार मिलता है।
20 दिसम्बर रात 12 बजकर 15 मिनट पर गुरू अपनी नीच राशि मकर से निकलकर कुम्भ राशि में प्रवेश कर गये हैं गुरू का कुम्भ राशि में गोचर सामान्य शुभ नहीं माना जाता है। गुरू का मंगल व शनि से षडाष्टक सम्बन्ध बन रहा है जो अशुभ फलदायक कहा गया है। इन ग्रहों का सीधा प्रभाप राष्ट ीय सुरक्षा व्यसस्था एवं सुधार कार्यो पर पड सकता है एवं आर्थिक क्षेत्र के लिए भी यह योग शुभ फलदायी नहीं है। इस राशि में गुरू लगभग पांच महीने यानी 1 मई 2010 तक रहेगा. इस दौरान आप भी गुरू को आशा भरी नजरों से देख सकते हैं अगर आप अविवाहित हैं और शादी करना चाहते या फिर आप संतान के इच्छुक हैं. अगर आप नौकरी-व्यवसाय में उन्नति की आशा रखते हैं अथवा किसी ऋण से मुक्ति की कोशिश कर रहे हैं तब भी गुरू के राशि परिवर्तन को उम्मीद भरी नजरों से देख सकते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि इन सभी विषयों में शुभ और अपेक्षित परिणाम आपको अपनी राशि के अनुरूप प्राप्त होगा।
दिनांक 21 दिसम्बर 2009 को प्रातः 5 बजकर 23 मिनट पर वृश्चिक राशि से शुक्र धुन राशि में राशि परिवर्तन करगें बुध, राहु सूर्य शुक्र चारों ग्रह धनु राशि में युति करेंगे शुक्र अस्त सूर्य के साथ होने के कारण सभी ग्रहों फलों को प्रभावित किया जा रहा है राहु सूर्य ग्रहण योग का निर्माण कर रहे हैं। शुक्र के अस्त होने के कारण फिल्म/मनोरजन उद्योग को बडा झटका लगने के प्रबल योग बन रहे हैं इस योग के कारण अभिनैय के क्षेत्र में जनहानि हो सकती है।
कहा गया है- सर्पान्वितः स तु खगः शुभदोऽपि कष्टं।
दुःखं दशान्तयसमयें कुरूते विशेषात्।।
जो ग्रह राहु के साथ बैठता है वह ग्रह चाहे शुभ हो परन्तु कष्टकारक होते हैं, राहु सर्प है यह अपना जहर (विष) अपने साथ बैठने वाले ग्रहों को प्रदान करता है।
मेष राशि वाले जातकों के लिए गुरू का यह गोचर अत्यंत शुभ फलदायी रहेगा इसका कारण यह है कि आपकी राशि से एकादश भाव में गुरू का गोचर कर रहा है. इस स्थिति के कारण आपको धन का लाभ मिलेगा जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. सुख-सुविधाओं एवं मान-सम्मान में भी बढ़ोतरी होगी. मित्रों से भी लाभ की अच्छी संभावना रहेगी. अगर इन दिनों आपके विवाह की बात चल रही है तो आपका विवाह हो सकता है. अगर विवाहित हैं और संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं तो आपकी इच्छा पूरी हो सकती है.
उपाय ---विष्णु की पूजा कर सकते हैं तथा गुरू मंत्र का जप कर सकते हैं इससे शुभ फलों में वृद्धि होगी.
वृष राशि---आपको धैर्य एवं समझदारी से चलने का प्रयास करना होगा क्योंकि आपके लिए यह समय संघर्षमय रह सकता है. आपके लिए उचित होगा कि अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और सभी को आदर दें. इससे आपका मान- सम्मान बना रहेगा. आर्थिक परेशानियां भी इन दिनों सिर उठा सकती हैं नये निवेश सोच समझ कर करें. नई योजना पर कार्य शुरू करने की सोच रहे हैं तो अभी उसे टाल देना उचित रहेगा क्योंकि, इस विषय में भी गुरू का इस समय आपकी जन्म राशि से दसवें घर में होना शुभ नहीं है।
उपाय ---गणेश जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए गुरू की उपसना से भी आपको लाभ मिल सकता है।
मिथुन राशि--शुभ फलदायी भाग्य में वृद्धि होगी. धर्म एवं आध्यात्मिक दृष्टि से समय उत्तम रहेगा जिससे घर में धार्मिक कार्य सम्पन्न होंगे. भाई एवं संतान पक्ष से सहयोग प्राप्त होगा. आप अपने प्रयासों से मन की कुछ इच्छाओं को पूर्ण कर सकते हैं. बीते दिनों जिन समस्याओं से आप परेशान थे उनमें कमी महसूस करगें।
उपाय---विष्णु की आराधाना एवं गुरूवार के दिन व्रत व पूजा भी कर सकते हैं यह भी आपके लिए लाभप्रद रहेगा.
कर्क राशि ---आपको अपनी वाणी के साथ ही साथ क्रोध पर भी नियंत्रण रखना होगा अन्यथा घर-परिवार में जहां मुश्किलो का सामना करना पड़ सकता है कार्यक्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ सकता है. मान-सम्मान की हानि आपकी जन्म राशि से आठवें घर में गुरू का गोचर होना स्वास्थ्य के लिए कष्टकारी रह सकता है. ऐसे में, आपके लिए उचित होगा कि अपनी सेहत का ध्यान रखें तथा अनावश्यक भाग-दौड़ से बचें।
उपाय---गुरूवार के दिन नवग्रह सूक्त का पाठ करना चाहिए. गुरूवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा गाय के घी का दीपक जलकर करनी चाहिए
सिंह राशि---आजीविका के क्षेत्र में सभी प्रकार की परेशानियां धीरे-धीरे कम होती जाएंगी और कामयाबी का रास्ता खुलेगा. आर्थिक परेशानियों भी दूर होंगी और आपने किसी से लोन लिया है तो उसे चुका देंगे. पारिवारिक समस्याएं भी बात-चीत व समझदारी से सुलझ सकती हैं। विवाह के इच्छुक हैं और घर में विवाह सम्बन्धी बात-चीत चल रही है तो इस अवधि में आपकी शादी होने की संभावना प्रबल है. सगे-सम्बन्धियों से सहयोग प्राप्त करना आसान होगा.
उपाय ---गुरू की शुभता का पूरा लाभ उठाने के लिए गायत्री मंत्र का जप करें,।
कन्या राशि---धैर्य एवं परिश्रम से कार्य करना उचित होगा राशि से छठे घर गुरू में है. इस गोचर के प्रभाव के कारण आपको स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है विशेष तौर पर पेट व त्वचा समबन्धी रोग आपके लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं. आप अगर किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सम्मिलित हो रहे हैं तो काफी मेहनत करनी होगी अन्यथा सफलता मिलना कठिन होगा. दाम्पत्य जीवन में भी समस्याएं उत्पन्न होंगी.
उपाय ---साई बाबा एवं गुरू की पूजा भी लाभकारी रहेगी.
तुला राशि---गुरू जन्म राशि से पांचवें घर में होना शुभ फलदायी रहेगा. गुरू के प्रभाव के कारण आपको भाग्य का सहयोग प्राप्त होगा. कई प्रकार की उलझनों को सुलझानें में सफल होंगे. नौकरी एवं व्यवसाय में लाभ की अच्छी संभावना रहेगी. कई नये कार्य भी इस अवधि में पूरे होंगे. आप चाहें तो इस समय निवेश भी कर सकते हैं. विवाह एवं संतान प्राप्ति के लिए भी गुरू का कुम्भ राशि में गोचर करना शुभ रहेगा.
उपाय -- गुरू के मंत्रों का जाप करें।
वृश्चिक राशि ---आपको कई प्रकार की परेशानियों से राहत मिलेगी परंतु मानसिक चिंताएं बढ़ेंगी. इस दौरान आप स्थान परिवर्तन कर सकते हैं अथवा नौकरी एवं व्यवसाय में बदलाव कर सकते हैं. कार्य क्षेत्र में सहकर्मियों से विवाद हो सकता है इसी प्रकार भाई-बंधुओं से भी मतभेद की स्थिति रह सकती है. आपकी मॉ को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है चिकित्सक से परामर्श करना श्रेयकर होगा. आपके लिए सलाह है कि धैर्य व परिश्रम से अपने कार्य पर ध्यान दें.।
उपाय --गुरू की पूजा करें तथा गायत्री मंत्र का जाप प्रतिदिन एक माला करें।
धनु राशि--आपकी जन्म राशि से तीसरे घर में गुरू होगे जिससे भाई-बहनों से मतभेद हो सकता है. सगे-सम्बन्धियों से भी किसी बात को लेकर मतांतर रह सकता है. इन दिनों आप शारीरिक थकान महसूस कर सकते हैं. आर्थिक स्थिति में अनुकूलता बनाये रखने के लिए तथा सम्मान प्राप्ति हेतु आपको अपने कार्य व्यवसाय पर मनोयोग से ध्यान देना होगा. आपके लिए सलाह है कि गुरू के इस गोचर की अवधि में लम्बी यात्रों से बचें.
उपाय --- केले के पेड पर घी का दीपक जलायें तथा जल दें हल्दी डालकर।
मकर राशि --आपकी जन्म राशि से दूसरे घर में गुरू का गोचर होना आपके लिए सुखद होगा. गुरू के इस गोचर के प्रभाव से धन का लाभ होगा. यह आपके आत्मविश्वास को भी बढ़ायेगा तथा व्यवहार में भी बदलाव महसूस करेंगे. आप अगर विवाह के योग्य हैं तो आपकी शादी हो सकती है. संतान के इच्छुक हैं तो आपकी इच्छा पूरी होगी. छात्रों को शिक्षा में शुभ परिणाम प्राप्त होंगे.
उपाय ---भगवान विष्णु की आराधाना एवं गुरूवार के दिन व्रत व पूजा भी कर सकते हैं यह भी आपके लिए लाभप्रद रहेगा.
कुम्भ राशि --प्रथम भाव में गुरू के होने के कारण आपको उन बातों से बचना चाहिए जिससे सम्मान की हानि हो सकती है. गुरू का यह गोचर कार्य क्षेत्र में अनचाहे स्थान पर स्थानांतरण करवा सकता है. कार्यों में संतुष्टि की कमी रह सकती है. आपके कार्य विलम्ब से पूरे होंगे तथा आपके कार्य को कम सराहा जा सकता है. इसके अलावा मेहनत के बावजूद सफलता नहीं मिलने से मन असंतुष्ट रह सकता है.
उपाय----गायत्री मंत्र का जप करें, सूर्य नमस्कार करें. गुरू ग्रह की पूजा एवं उपासना से फायदा होगा तथा गुरूवार के केले पेड को जल दें।
मीन राशि--बारहवें घर में गुरू का अशुभ कहलाता है. गुरू के इस गोचर के प्रभाव के कारण आपके घर में कई मांगलिक कार्य भी हो सकते हैं जिससे आपके व्यय बढ़ेंगे. इससे आपको आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. मित्रों द्वारा लगाये गये आरोप से मन दुरूखी रह सकता है. परिवर में जीवनसाथी एवं संतान से मतभेद हो सकता है. कोई पुराना रोग उभर सकता है.
उपाय----गायत्री मंत्र का जप करें, सूर्य नमस्कार करें. गुरू ग्रह की पूजा एवं उपासना से फायदा होगा तथा गुरूवार के केले पेड को जल दें।
जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में गुरू 6,8 ,12 स्थानों पर है उन्हें गुरू महाराज की प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए माथे पर हल्दी या केसर को गाय के दूध में मिला कर मस्तक पर लगाना चाहिए।
पं0 राजेश कुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य भृगु ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र सदर मेरठ कैंट

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है

कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। कर्म अर्थात् सद्कर्म, दीन दुखी, असहाय जीव की सेवा ही ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट उपासना है। जो व्यक्ति एक ओर प्राणियों पर अत्याचार करे, उनको सताए तथा बेईमानी, झूँठ चोर बाजारी को अपनाए तथा दूसरी ओर तिलक लगाकर घन्टों ईश्वर का भजन करे, वह लेखक की दृष्टि में सबसे अधम पापी है। निर्दोष असहाय को पीड़ा पहुँचाना, लेखक की दृष्टि में अधर्म है।
जो व्यक्ति तन, मन, धन से, सच्चे हृदय से असहाय, दीन व दुखियों की सहायता करता है, उनका उप्रकार करता है, उससे बढ़कर पुण्यात्मा कोई नहीं और न ही सद्कर्म अर्थात् “परोप्रकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं।”
-‘मनु’ ने ‘मनुस्मृति’ में लिखा है -
“सर्वभूतेषु चात्मान सर्वभूतानि चात्मनि।
संग पश्यन्नात्मयाजी स्वराज्यमधि गच्छति।।”
जो सब प्राणियों में स्वयं को तथा अपने में सबको देखता है तथा दूसरों के लिए स्वार्थ त्याग करता है वह स्वयं पर, अपनी इच्छाओं पर अधिकार प्राप्त कर लेता है।

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

सुख दु:ख का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है

हम जैसा कर्म करते हैं उसी के अनुरूप हमें ईश्वर सुख दु: देता है। सुख दु: का निर्घारण ईश्वर कुण्डली में ग्रहों स्थिति के आधार पर करता है। जिस व्यक्ति का जन्म शुभ समय में होता है उसे जीवन में अच्छे फल मिलते हैं और जिनका अशुभ समय में उसे कटु फल मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह शुभ समय क्या है और अशुभ समय किसे कहते हैं।अमावस्या में जन्म,संक्रान्ति में जन्म ,भद्रा काल में जन्म,कृष्ण चतुर्दशी में जन्म,समान जन्म नक्षत्र,सूर्य और चन्द्र ग्रहण में जन्म,सर्पशीर्ष में जन्म,गण्डान्त योग में जन्म ,त्रिखल दोष में जन्म,मूल में जन्म दोष,ज्योतिषशास्त्र में इन दोषों के अलावा कई अन्य योग और हैं जिनमें जन्म होने पर अशुभ माना जाता है इनमें से कुछ हैं यमघण्ट योग, वैधृति या व्यतिपात योग एव दग्धादि योग हें। इन योगों में अगर जन्म होता है तो इसकी शांति अवश्य करानी चाहिए।

शनिवार, 28 नवंबर 2009

काल का अर्थ मृत्यु है। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है

जब राहु और केतु के घेरे में अन्य सभी ग्रह आ जाएं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। राहु को सर्प का मुंह तथा केतु को उसकी पूंछ कहते हैं। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है। काल का अर्थ मृत्यु है। यदि अन्य ग्रह योग बलवान न हों, तो कालसर्प योग से प्रभावित जातक की मृत्यु शीघ्र हो जाती है या फिर जीवित रहने की अवस्था में उसे मृत्युतुल्य कष्ट होता है। कालसर्प योग से प्रभावित जातक को आजीवन भिन्न-भिन्न तरह के कष्टों, ऋण, बेरोजगारी, संतानहीनता, दाम्पत्य जीवन में सुख का अभाव आदि का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में नागपंचमी के दिन और भाद्रकृष्ण अष्टमी तथा भाद्रशुक्ल नवमी को सर्पों की विशेष पूजा का विधान है। पुराणों में शेषनाग का उल्लेख है जिस पर विष्णु भगवान शयन करते हैं।
सर्पों को देव योनि का प्राणी माना जाता है। नए भवन के निर्माण के समय नींव में सर्प की पूजा कर चांदी का सर्प स्थापित किया जाता है। वेद के अनेक मंत्र सर्प से संबंधित हैं। शौनक ऋषि के अनुसार जिस मनुष्य की धन पर अत्यधिक आसक्ति होती है
, वह मृत्यु के बाद नाग बनकर उस धन पर जा बैठता है।

  • सर्प कुल के नाग श्रेष्ठ होते हैं। नाग हत्या का पाप जन्म-जन्मांतर तक पीछा नहीं छोड़ता। नागवध का शाप संतान सुख में बाधक होता है। शाप से मुक्ति के लिए नाग का विधिवत् पूजन करके उसका दहन किया जाता है तथा उसकी भस्म के तुल्य स्वर्ण का दान किया जाता है।

  • शास्त्रों में सर्प को काल का पर्याय भी कहा गया है। मनुष्य का जीवन और मरण काल के आधीन है। काल सर्वथा गतिशील है, यह कभी किसी के लिए नहीं रुकता। काल प्राणियों को मृत्यु के पास ले जाता है और सर्प भी। कालसर्प योग संभवतः समय की गति से जुड़ा हुआ ऐसा ही योग है जो मनुष्य को परेशान करता है तथा उसके जीवन को संघर्षमय बना देता है।

  • राहु और केतु के बीच एक ओर अन्य सभी ग्रहों के आ जाने पर कालसर्प योग का निर्माण होता है। पाठकों के लाभार्थ, सन् 2008 से अब तक ग्रहों की यह स्थिति कब-कब बनी और आने वाले समय में वर्ष 2040 तक कब-कब बनेगी इसका एक संक्षिप्त और तालिकाबद्ध विवरण यहां प्रस्तुत है।
  1. 11.08.2008 - 16.12.2008 उदित 13.05.2013 - 10.09.2013 उदित
  2. 05.09.2016 - 26.12.2016 अनुदित 15.09.2017 - 01.02.2018 अनुदित
  3. 12.08.2018 - 20.09.2018 अनुदित 25.02.2020 - 24.05.2020 उदित
  4. 01.01.2021 - 26.03.2021 उदित 17.12.2021 - 23.04.2022 उदित
  5. 28.04.2025 - 22.07.2025 अनुदित 23.03.2026 - 11.07.2026 अनुदित
  6. 06.05.2034 - 01.08.2034 उदित 17.06.2035 - 09.08.2035 उदित
  7. 02.03.2036 - 04.07.2036 उदित 29.07.2038 - 12.12.2038 अनुदित
  8. 30.08.2039 - 05.12.2039 अनुदित

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

संसार के न्यायाधिश के सामने माथा टेकना होगा

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अदालती फेर से मुक्त नहीं हो पा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने मायावती से सवाल किया है कि गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर गांव में अन्य लोगों की भूमि के साथ उनके भूखंड का अधिग्रहण क्यों नहीं किया गया। न्यायाधीश एच.एस.बेदी और जे.एम. पांचाल की खंडपीठ ने बादलपुर निवासी खजान सिंह की याचिका पर मायावती को मुख्यमंत्री नहीं वरन व्यक्तिगत हैसियत से जवाब देने के लिए नोटिस भेजा है। राज्य सरकार, गौतमबुद्ध नगर के डीएम और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण को भी नोटिस भेजा गया है,जिन्होंने जून 2007 में सिंह के भूखंड का अधिग्रहण करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। न्यायालय ने इस माह के आरंभ में मायावती के पिता प्रभु दयाल और भाई आनंद को भी नोटिस भेजा था। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2009 में अधिग्रहण के खिलाफ सिंह की याचिका को खारिज करके ग्रेटर नोएडा के विकास के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण को सही ठहराया था। याची खजान सिंह का आरोप है कि सरकार ने उनके सात हजार वर्गमीटर के भूखंड का अधिग्रहण कर लिया, जबकि मायावती के 39,369 वर्गमीटर के भूखंड को छोड़ दिया गया,जहां वह एक बंगला बनवा रही हैं। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया था कि मुख्यमंत्री के भूखंड को इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि वह आवासीय उपयोग के लिए था। सिंह के वकील अशोक माथुर ने भी दावा किया कि सिंह का भूखंड भी आवासीय उपयोग के लिए है। अब कौन क्या कहता है इस का हमे ज्ञान नहीं परन्तु हम कह चूके है http://twitter.com/bhrigujyotish # सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है 7:10 PM Oct 6th from web * Delete # सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है 7:09 PM Oct 6th from web * Delete #5अक्तूबर को मंगम कर्कराशि में प्रवेश और सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 17 अक्तूबर के बाद ग्रहो का खेल 11:05 PM Oct 5th from web पर क्या करे अगर को ना देखतो सम्भल जाओ मेरे भाई न जानें कौन सा ग्रह अपना रगं दिखा दे। मगर इतना जरूर हैं राहु शनि के फेर से कोई नही बचा हैं उत्तर प्रदेश्‍ा सरकार को अगर राहु शनि के प्रकोप से बचना हैं तो संसार के न्यायाधिश के सामने माथा टेकना होगा।छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

सोमवार, 9 नवंबर 2009

शत्रु पक्ष को बलविहीन करने के लिए

देवता मन्त्रों के आधीन होते हैं। अगर इन्हे विधि पूर्वक जपा जाय तो अदभुत लाभ होता है।

मुकद्दमें में सफलता प्राप्त करने के लिए तथा शत्रु पक्ष को बलविहीन करने के लिए: कागज पर हल्दी से निम्न लिखित मंत्र को लिख कर बगलामुखी यंत्र को उसी कागज में थैली से बांध दें। बगलामुखी का ध्यान कर मंत्र का पैतींस बार जप करें। यह प्रयोग पांच दिन तक करें। शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार से शुरू करें। प्रयोग समाप्ति के पश्चात यंत्र को दुर्गा मंदिर में चढ़ा दें।

मंत्र: हलीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां हलीं वाचं मुखं बंधय हलीं जिह्ना कीलय मारय श्रीत्य् हलीं पफट्।।

ह्लीं बगलामुखी सर्व दुश्तानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय

जिव्हां किलय बुद्धिं विनाशाय ह्लीं स्वाहा

बुधवार, 4 नवंबर 2009

आतंक का पर्याय भी कहा जाता है पवित्र, पीपल वृक्ष को

आतंक का पर्याय भी कहा जाता है पवित्र, पीपल वृक्ष को
पीपल का सामान्य-पीपल एक सर्वज्ञात, सर्वत्र सुलभ, बिना किसी पोषण के स्वयं ही विशालकाय हो जाने में समर्थ और हिन्दूधर्म में चिर-प्राचीन-काल से पूज्य एक ऐसा वृक्ष है, जिसके साथ सर्वाधिक मान्यताएं, विश्वास, अन्ध विश्वास, लोक-कथाएं और पूजन-विधान प्रचलित है।यह वृक्ष बरगद और पाकर-गूलर की जाति का है। किन्तु इसके फल सबसे छोटे होते हैं। यह फल मुंगफली के छोटे दाने के बराबर होता है, जो बरगद-गूलर की भांति बजों से भरा होता है, ये बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकडों वर्षो तक खडा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हें। नाममात्र की वायु में भी ये दोलायमान हो उठते हैं। अन्य किसी पेड के पत्ते इस तरह नहीं हिलते-कांपते, जैसे पीपल के पत्ते थरथराते हुए हिलते रहते हैं। रामायण में राजा दशरथ की मनःस्थिति के वर्णन में दोलायमान पीपल पत्र की उपमा दी गयी है।‘‘पीपर पात सरिस मन डोला’’वसन्तु ऋतु में पीपल की नयी कोंपलें धानी रंग की चमक से बहुत ही शोभायमान लगती है। बाद में, वह हरा और फिर गहरा हरा हो जाता है।पीपल के पत्ते जानवरों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं, और लकडी ईधन के काम आती है। वैसे, हिन्दूधर्म की मान्यता है कि पीपल का वृक्ष (डाल, पत्ते, टहनी, तना आदि) काटना नहीं चाहिए। ब्राह्यणों में इस वर्जना को विशेष मान्यता प्राप्त है। यद्यपि अपने आप गिरे हुए टूटे-फूटे वृक्ष की लकडी ईधन के कामे में लायी जाती है तथापि वह वृक्ष पवित्र माना जाता है और इसे तोडने, काटने, जलाने वाले लोग, भय, शंका, वर्जना, अमगंल की दुष्कामना से प्रभावित रहते हैं।जहां तक काष्ठोपयोग की बात है, पीपल की लकडी किसी भी इमारती काम या फर्नीचर के लिए अनुकूल नहीं होती। होली या भट्टी में जलाने के अलावा, इसे लोग चूल्हे में जलाते भी भय-शंका में पड जाते हैं। कारण कि यह पेड देव-वृक्ष कहा जाता है। इस पर देवताओं का वास माना जाता है। और देवता चाहे न भी रहते हों, परन्तु इस वृक्ष पर भूत, प्रेत, पिचास और बेताल आदिका तथा डाकिनी-शाकिनी का निवास अवश्य माना जाता है। ब्रह्यराक्षस नाम का प्रेतयोनि प्राणी प्रचलित मान्यता के अनुसार पीपल के पेड पर निवास करता है। कारण चाहे जो भी हो, चाहे कोई वैज्ञानिक दुष्प्रभाव हो अथवा यह सब आध्यात्मिक निषेध, पीपलवृक्ष के नीचे रात में कोई सोता नहीं। पीपल-तले लघुशकां और अन्य कोई अशुद्ध, घृणित, अपवित्र कार्य करना मना है। ऐसा कई बार सुनने-पढने में आया है कि अमुक व्यक्ति ने पीपल के पेड तले लघुशंका करदी और उसी शाम घर पहुंचते-पहुंचते वही गंभीर रूप में किसी अज्ञात बीमारी का शिकार हो गया। ऐसे लोग ज्वर, उन्मत्ता, भ्रम, मूच्र्छा और ऐसी ही अन्य मनो-व्याधियों से ग्रस्त हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष पवित्र, पूज्य, देव स्थान माना जाता है, साथ ही प्रेतों का निवास भी होने के कारण यह आतंक का पर्याय कहा जाता है। शुभ और अशुभ दोनों तरह के कृत्य इसकी छाया में सम्पादित होते हैं।यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, पुराण कथा आदि के लिए पीपल की छाया श्रेष्ठ मानी गयी है। इसी तरह पीपल के नीचे मृतक का दशगात्र विधान (क्रिया-कर्म, पिण्डदान आदि) पूरा करने का प्रचलन है। हिन्दूधर्म में क्रिया-कर्मे के पश्चात् भूतात्मा की शान्ति के लिए, पीपल के वृक्ष में घट बांधने और सायंकाल उस पर दीपक जलाने का नियम है। इस विवेचना से सिद्ध होता हैकि पीपल वृक्ष को हमारे हिन्दू समाज में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है और यह असंदिग्ध रूप में पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।तन्त्र साधना में पीपल का महत्व- नवग्रहों में शनि सर्वाधिक पीडक होता है। शास्त्रों में लिखा है कि शनि-पीडा से त्राण पाने के लिए पीपल पर जल चढाना चाहिए। यही नहीं, शनिवार की संध्या को पीपल के नीचे बैठकर दीपक जलाना और पश्चिमाभिमुख होकर शनि की पूजा करना भी परम लाभकारी होता है।भूत-प्रेत, भैरव आदि की साधना- देव वर्ग से इतर प्रेतयोनि वाली शक्तियों, बैताल, भैरव आदि तथायक्षिणी-साधना के लिए पीपल की छाया, पीपल के पास जड के पास बैठना, अनिवार्य होता है।और कुछ न करें, पीपल वृक्ष पर नित्य स्नानोपरान्त एक लोटा जल चढाते रहें तो भी उसमें निवास करने वाली अद्ृश्य आत्मा प्रेतयोनि तृत्त होकर सहायक बन जाती है।देवोपासना और पीपल- कितने ही मन्दिर पीपल-वृक्ष के पास बने होते हें। कभी-कभी मन्दिर के पास पीपल स्वतः उग आता है। इसके विपरीत कभी-कभी श्रद्धालुजन पीपल के नीचे जड के पास स्थान बनाकर, कुछ मूर्तियों को स्थापित कर देते हैं। इस तरह पीपल वृक्ष और मूतियां दोनों की पूजा होने लगती है। यह भी एक बहुत अनुभूत सत्य हे कि पीपल की सेवा करने वाले व्यक्ति किसी न किसी चमत्कारिक ढंग से लाभान्वित अवश्य होते हैं।दारिद्र- निवारण के लिए- पीपल वृक्ष के नीचे शिव-प्रतिमा स्थापित करके, नित्य उस पर जल चढायें और पूजन अर्चन करें। कम से कम 5 या 11 माला मन्त्र का जप (ॐ नमः शिवाय) करें। कुछ दिन की नियमित-साधना से परिणाम सामने आ जाता है। प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को पूजना चाहिए, दिन में तो चन्दन पुष्प और अक्षत आदि का प्रयोग होता ही है।प्रत्येक पूर्णिमा को प्रातः काल पीपल के वृक्ष पर माँ लक्ष्मी का आगमन होता है। अतः आर्थिक स्थिरता हेतु यदि साधक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष के समीप जाकर माँ लक्ष्मी की उपासना करें तो उनकी कृपा प्राप्ति में कोई संदेह नही है। हनुमानजी के दर्शन- पीपल वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर, हनुमानजी का पूजन स्तवन, मगंलवार का व्रत, रात्रि में एकान्त शयन, ब्रह्मचर्य और मन्त्र का नियमित जप (ह्रीं हनुमते रामदूताय नमः) करने से हनुमानजी के दर्शन हो जाते हैं। परन्तु इस साधना साधक को आस्थावान साहसी, ब्रह्मचारी, संन्यासी और सात्विक होना चाहिए। हनुमानजी स्वप्न में अथवा प्रत्यक्ष में आकर दर्शन अवश्य देते हैं। दैनिक जागरण मेरठ में दि०05-11-2009 को मेरा यह लेख प्रका‍शित हुआ है।छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009


सन्तान कि इच्छा रखे लडका हो या लडकी ये सब भगवान के हाथ में है 278 व्यक्तियो ने लाभ प्रप्त किया हैं29 अक्टूबर- श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू रवियोग सायं 4.49 बजे तक। क्या आपको संतान की इच्छा हैं और आपने बडे बडे डाक्टरो कि सलाह और हजारो रूपये टेस्टों मे खर्च कर दिये और उसके पश्चात भी आप परेशान हैं सफलता आपसे कोसो दुर हैं। मै आपको अपने अनुभव के आधार पर सलाह दे रहा हूं कि आप 29 अक्टूबर 2009 को धूमधाम से तुलसी का विवाह को मन और आस्था के साथ मनाये अब तक लगभग 278 व्यक्तियो ने लाभ प्रप्त किया हैं आज इन्होको तुलसी मां और भगवान विष्णु से प्रसाद रूप में सन्तान कि प्राप्ति है सन्तान कि इच्छा रखे लडका हो या लडकी ये सब भगवान के हाथ में है परन्तु आपको अवगत करा दूं यदि आपने लडके कि इच्छा से गृभपात कराया है या भूर्ण हत्या के आप किसी प्रकार से अपराध मे लिप्त हैं तो आपको लाभ मिलने मे सन्देह हैं।
जैसे कन्या का विवाह करते हैं, वैसे ही धूमधाम से तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ करने का रिवाज है। तुलसी के पौधे को ओढ़नी पहना कर, सोलह श्रृंगार करके पूरे गाजे-बाजे के साथ तुलसी विवाह करवाया जाता है। खुले आकाश के नीचे चौराहे के निकट केले के चार खम्बों का विवाह मंडप बनाकर उसे वंदनवार और तोरण आदि से सजाया जाता है। विष्णु भगवान की मूर्ति के साथ सोने या चांदी की तुलसी की प्रतिमा बनाकर, फेरों के लिए पास ही हवन की वेदी बनाई जाती है। ज्योतिष शा7 के अनुसार शुभ विवाह मुहूर्त में योग्य ब्राह्मण के सहयोग से गोधूलि वेला में कन्यादान कुशकंडी हवन और अग्नि परिक्रमा आदि विधियों सहित भगवान विष्णु जी और तुलसी जी का विवाह संपन्न करवाया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर फिर स्वयं भोजन करने का विधान है यानी माता तुलसी के विवाह के समय भी बेटी के विवाह जैसा ही आयोजन, गीत-संगीत और विदाई आदि की रस्में होती हैं। इस दिन उपवास रखा जाता है। पूर्व जन्म के पापों को दूर करने के लिए एवं सौभाग्य, दीर्घायु, संतान सुख के लिए, संतान की शादी में आने वाली रुकावटों को दूर करने, कन्या प्राप्ति के लिए तुलसी विवाह अवश्य करवाना चाहिए। हमारे पूर्वज स्वर्ग में कामना करते हैं कि हमारे वंशज कन्या दान करके उन्हें मोक्ष दिलाएं, परंतु जिनके घर में कन्या न हो तो वे प्राणी तुलसी की शादी करके अपने पूर्वजों की कामना को पूरा कर सकते हैं।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

ग्रहो के खेल से जब बडे बडे राजा महाराजा नही बचपाये तो

ग्रहो के खेल से जब बडे बडे राजा महाराजा नही बचपाये तो हमारी और आपकी बिसात क्या है सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान किया। 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है यह सब चलता रहेगा और मै तथा आप इस चक्र को रोकने में सक्षम भी नहीं है परन्तु इतना अवश्य हैं कि आप और मैं ग्रहो के खेल को दुर से बैठ कर देख सकते हैं कभी कभी देखने मात्र से भी ग्रह चालो के फेर में फंस जाते हैं तो इस खेल को दुर से बचकर देखना चाहिऐ। हमने कहां था कि ममता का कलक्ता में रेलो का भार सम्भालां हैं जो ग्रहों के योग रेल विभाग के लिये ठिक नही हैं और आप सभी देख रहें हैं कि कार्यभार सम्भालने के बाद से कोइ न कोइ समस्या उत्पन्न हो रहीं हैं मेरे और आपके हाथ में क्या हैं राजा के ग्रहो का असर जनता पर पडता हैं एक पुरानी कहावत है। उत्तर प्रदेश में भी सूर्य+शनि की युति व 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे प्रवेश करने के कारण जनआक्रोश को बढाने के साथ साथ अनेक समस्या पैदा करगें हमारे सस्थानं के ज्योतिषियों ने गणना करके एक बार फिर साबित करने का प्रयास किया हैं ग्रहों के चक्र से कोई नहीं बचा हैं http://twitter.com पर 7:10 PM Oct 6th from web को लिखा गया हैं।सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है7:10 PM Oct 6th from web सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है7:09 PM Oct 6th from web छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है

24 अक्टूबर- सूर्यषष्ठी व्रत-छठ पूजा (बिहार, झारखंड), प्रतिहारषष्ठी व्रत (मिथिलांचल), डाला छठ (काशी), स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, रवियोग दिन-रात, शनिदेव दर्शन-पूजन, छाया-दान। व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।छठ पर्व मूलत: सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं की सूची में सूर्य ही एक मात्र देवता है जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। बाकी सभी देवताओं को कल्पना के आधार पर आकार दिया गया है।व्रतधारियों के मुताबिक छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की सकुशलता के लिए महिलाएं सामान्य तौर पर यह व्रत रखती हैं। वैसे तो छठ का व्रत पुरुष भी पूरे मनोभाव से रखते हैं।सूर्यदेव न केवल अन्न, फल आदि को पकाते हैं, बल्कि नदियों, समुद्रों से जल ग्रहण कर पृथ्वी पर वर्षा भी कराते हैं। संपूर्ण प्राणियों के वे पोषक हैं। साथ ही, उपासना करने पर वे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने में भी सक्षम हैं। मान्यता है कि चर्म रोग, जिसमें कोढ़ के समान कठिन रोग भी सम्मिलित है, से छुटकारा पाने के लिए सूर्योपासना सर्वाधिक सशक्त साधन है। सूर्य की उपासना हमें दीर्घायु भी बनाती है। अथर्ववेद में कहा गया है- आकाश की पीठ पर उड़ते हुए अदिति (देवताओं की माता) के पुत्र सुंदर पक्षी सूर्य के निकट कुछ मांगने के लिए डरता हुआ जाता है। हे सूर्य! आप हमारी आयु दीर्घ करें। हमें कष्टों से रहित करें। हम पर आपकी अनुकंपा बनी रहे। ऐसे सभी प्राणियों के पोषक, दिवा रात्रि और ऋतु परिवर्तन के कारक, विभिन्न व्याधियों के विनाशक सूर्य-देव को हम सूर्य षष्ठी के पावन पर्व पर अपना नमस्कार निवेदित करते हैं। सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। वास्तव में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
"हिंदी" हैं हम, वतन है- हिंदोस्ताँ हमारा
मैने एक समाचार पत्र में पढा तो मन गद- गद हो गया वाराणसी में रहने वाली नाजनीन अंसारी और नजमा ने छठ पूजा की तैयारी पूरी कर ली है। वर्ष 2008 मे भी अंसारी परिवार के द्धारा छठ पूजा का आयोजन किया गया था इस वर्ष भी छठ पूजा के लिए खासा व्यस्त हैं छठ पूजा छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

हमारी एक गलती कई पिडियों को कर्ज में डूबो देती हैं

आज समाज में धनवान व्यक्ति के लिये सबकुछ माफ हैं जिसके पास धन (लक्ष्मी) नही हैं उसके न मित्र हैं न भाई न बन्धु स्वजन परिजन आदि सभी साथ छोड कर चले जाते है,धनहिन होना एक अलग बात हैं परन्तु यदि आप कर्जदार हैं तो आपके लिये कष्टदायक है कर्ज न उतरे- निरन्तर बढता रहें यह उससे भी ज्यादा दुख दायी हैं।मेरे पास पिछले एक वर्ष से एक बडे उधोगपति के परिवार के सदस्य जन्म पत्रियो को दिखाते चले आरहे थे और हर बार केवल एक प्रश्न गुरू जी हमारे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति कर्जदार क्यो बनता जा रहा हैं। जबकि परिवार अधिकतर व्यक्तियों के व्यापार भी ठिक हैं काम मिलने में भी हमको कोई ज्यादा परेशानियां नही आती हैं। इस परिवार के कई रिशतेदार प्रदेश व केन्द्र सरकार में उच्चअधिकरी हैं। मेरे द्धारा उन्हे कई उपाय कराये गये परन्तु कुछ समय लगता हैं कि लाभ हैं फिर ऐसा लगने लगता कि कर्ज नहीं उतरेगा। एक दिन परिवार के सभी सदस्यों की जन्म पत्रियों को देखने के लिये परिवार के एक सदस्य के घर पर मै गया ग्रहों कि दशा तथा कुन्डलियों के योगो को देखने के पश्चात ऐसा काई योग सामने नही आया जिससे लगे कि इनके परिवार पर कर्ज निरन्तर बढ रहा है। जिस दिन मैं उनके घर पर सभी कि जन्म पत्रियों को देख रहा था वह दिन था मंगलवार का तभी उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा गुरूजी अगर बुरा न माने तो मैं और मेरी पत्नी जरा बैंक चले जाये लोन के कागजों पर आज हस्ताक्षर हो गये तो आज ही लोन ऐकाउन्ट में आ जायेगा नहीं तो चार दिन की छुटटी हो जायेगी उस समय मैने कहा ठिक है अभी मैं चाय पी ही रहा था कि मुझे याद आया कि आज मंगलचार है यदि आज भी इन्होंने बैंक से कर्ज लिया तो यह कर्ज इन पर और चढ जायेगा तथा उतरने का नहीं है। मैंने फोन पर तुरन्त मना कि कि वह आज कर्ज न लें चाहे कुछ भी हो वह लोग बैंक से वापस चले आये उसके पश्चात मैंने उन्हें बताया कि आपके घर से लक्ष्मी के रूठने के कारण क्या हैं। कभी-कभी पूर्वजन्म के पाप स्वरूप जन्म कुण्डली में दुष्ट ग्रहों के योग से पर्याप्त श्रम सामर्थ्य करने पर भी अभीष्ट धन की प्राप्ति नहीं हो पाती। जीवन अभाव ग्रस्त हो जाता है। अत जिन कारणों से लक्ष्मी जी अप्रसन्न हो जाती हैं सर्वप्रथम उन्हें दूर करने का प्रयत्न चाहिए इसके उपरान्त ऐसी परिस्थितियों से त्राण के लिए और अभीष्ट धन की प्राप्ति के लिए हमारे ऋषिवरों ने जो उपाय बतायें हैं उनका यथा सम्भव उपयोग करने से अपनी श्री सम्पन्नता में वृद्धि कर सकते हैं।मंगलवार को ऋण लेने से लक्ष्मी का रूठना प्रारम्भ हो जाता है और बहुत काल तक ऐसा करने से लक्ष्मी पलायित हो जाती है। मंगलवार को लिया हुआ ऋण वापस जाने का नाम नहीं लेता और घर में ऋण का स्थायी वास हो जाता है और नये-नये ऋण लेने की स्थितियां पैदा करता रहता है। इसी प्रकार रविवार को जब हस्त नक्षत्र पडे तब व़द्धि योग और संक्रान्ति के पुण्यकाल में तथा जब मंगलाव को चतुर्थी, नवमी अथवा चतुर्दशी तिथि पडे तब भी ऋण नहीं लेना चाहिए इस दिन लिया हुआ ऋण उसके कुल में विद्यमान रहता है और लक्ष्मी के रूठने का प्रमुख कारण बनता है।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दीपावली के शुभ दिन ''लक्ष्मी गणेश'' के चिन्ह



दीपावली के शुभ दिन लक्ष्मी आप सभी के घर पर पधारे तथा धन-धान्य से संपन्न करती रहे। मेरी तथा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र समिति के सदस्यों कि ओर से आप सब शुभ हो, मंगलमयी हो, कल्याणकारी हो।साथ हि निवेदन भी जिस लक्ष्मी गणेश का आप पूजन करते हैं उन्हें उपहार के रूप में न दे''लक्ष्मी गणेश'' के चिन्ह

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

संसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं।


ंसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं। धनवान व्यक्ति को ही श्रेष्ठ व्यक्ति माना जाता है। जिसके पास धन हो, वह सुखपूर्वक अपना जीवन बिताता है। धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी निष्फल नहीं होती। मां लक्ष्मी के आह्वान एवं कृपा प्राप्ति के लिए श्री सूक्त पाठ की विधि द्वारा आप बिना किसी विशेष व्यय के भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की आराधना करके आत्मिक शांति एवं समृद्धि को स्वयं अनुभव कर सकते हैं।यदि संस्कृत में मंत्र पाठ संभव हो तो हिंदी में ही पाठ करें। दीपावली पर्व पांच पर्वों का महोत्सव है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैयादूज) तक पांच दिन चलने वाला दीपावली पर्व धन एवं समृद्धि प्राप्ति, व्यापार वृद्धि ऋण मुक्ति आदि उद्देष्यों की पूर्ति के लिए मनाया जाता है। श्री सूक्त का पाठ धन त्रयोदषी से भैयादूज तक पांच दिन संध्या समय किया जाए तो अति उत्तम है। धन त्रयोदषी के दिन गोधूलि वेला में साधक स्वच्छ होकर पूर्वाभिमुख होकर सफेद आसन पर बैठें। अपने सामने लकड़ी की पटरी पर लाल अथवा सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर एक थाली में अष्टगंध अथवा कुमकुम (रोली) से स्वस्तिक चिह्न बनाएं। गुलाब के पुष्प की पत्तियों से थाली सजाएं, संभव हो तो कमल का पुष्प भी रखें। उस गुलाब की पत्तियों से भरी थाली में मां लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान का चित्र अथवा मूर्ति रखें। साथ ही थाली में श्रीयंत्र, दक्षिणावर्ती शंख अथवा शालिग्राम में से जो भी वस्तु आपके पास उपलब्ध हो,रखें। सुगंधित धूप अथवा गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। थाली में शुद्ध घी का एक दीपक भी जलाएं। खीर अथवा मिश्री का नैवेद्य रखें। तत्पष्चात् निम्नलिखित विधि से श्री सूक्त की ऋचाओं का पाठ करें। ऋग्वेद में लिखा गया है कि यदि ऋचाओं का पाठ करते हुए शुद्ध घी से हवन भी किया जाए तो इसका फल द्विगुणित होता है।