गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

दीपावली पूजन कैसे करें----2

मंत्र-पुष्पांजलि : ( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :- ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ । तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे । स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥ कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः । ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि । (हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।) प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :- क्षमा प्रार्थना : आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥ पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥ मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥ त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव । पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः । त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥ अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥ पूजन समर्पण : हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :- 'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः' (जल छोड़ दें, प्रणाम करें) विसर्जन : अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :- यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ । इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥ ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!! लक्ष्मीजी की आरती ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय... उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता । सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय... तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता । जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय... तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता । कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय... जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता । सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय... तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता । खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय... शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता । रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय... महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता । उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय... (आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।) परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है- 'पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥' पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है 'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।' भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है। परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं। पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न! पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है। इसके पश्चात अन्त में थाली में कपूर और घी का दीपक रखकर गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की आरती करें। स्वयं व परिवार के सभी सदस्यों को भी तिलक करें व रक्षा-सूत्रा हाथ में बांधें, इसके पश्चात् हाथ में पुष्प व चावल लेकर संकल्प करें, अपना नाम और गोत्रा बोलते हुये कि मैं सपरिवार आज दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी का पूजन, कुबेर व गौरी-गणपति के साथ धन-धान्यादि, पुत्रा-पौत्रादि, सुख समृद्धि हेतु कर रहा हूं। हाथ के पुष्प व चावल नीचे छोड़ दें। फिर निम्न प्रार्थना करें:- ’इन्द्र, पूषा, बृहस्पति हमारा कल्याण करें, पृथ्वी, जल अग्नि, औषधि हमारे लिये हितकारी हो, भगवान विष्णु हमारा कल्याण करे। अग्नि देवता,सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता, वायु देवता, वरूण देवा व इन्द्र आदि देवता हमारी रक्षा करें। सभी दिशाओं और पृथ्वी पर शांति रहे। हम गणेश जी, लक्ष्मी-नारायण, उमा-शिव, सरस्वती, इन्द्र, माता-पिता व कुल देवता ग्राम या नगर देवता, वास्तुदेवता, स्थान देवता, एवम् सभी देवताओं और ब्राहमणों को प्रमाण करते हैं। इसके बाद ’ओम श्री गणेशाय नमः‘ बोलते हुये गणेश जी का पुष्प, दूर्बादल आदि से पूजन करें। भगवान गणेश जी को नैवेद्य मिठाई, फल समर्पित करें। फिर पुष्प व चावल (अक्षत) हाथ में लेकर ओम भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः बोलते हुये माता पार्वती का पूजन करे, नैवेद्य व फल समर्पित करें। हाथ जोड़कर प्रणाम करें। तत्पश्चात् पुष्प व अक्षत हाथ में लेकर 16 बिन्दु अर्थात षोडशमात् का पूजन करें, पुष्प, चावल, फल, मिठाई, डोरी (कलावा) रोली आदि समर्पित करें, प्रमाण करें, प्रार्थना करें:- ’हे विष्णु प्रिये लक्ष्मी जी हमें धन-धान्य से परिपूर्ण रखें। आप ही सर्व हैं। हमें पूजन, मंत्रा, क्रिया नहीं आती, हम अपराधी हैं, पापी हैं। आपके इस पूजन में किसी प्रकार की, किसी भी वस्तु की कमी या त्राुटि हो, कमी हो तो हमें क्षमा करना। यह कहते हुये पुष्प और अक्षत लक्ष्मी जी पर अर्पित कर दें और फिर हाथ जोड़कर पूरी श्रद्धा से यह प्रार्थना करें कि भगवान गणेश जी व माता लक्ष्मी जी हमारे घर में स्थायी निवास करें और अन्य सभी देवी देवता हमें आर्शीवाद देते हुये अपने-अपने स्थान पर प्रस्थान करने की कृपा करें। इसके पश्चात् भोग लगाकर प्रसाद को घर में सबको बांटकर ग्रहण करें।

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