मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009


सन्तान कि इच्छा रखे लडका हो या लडकी ये सब भगवान के हाथ में है 278 व्यक्तियो ने लाभ प्रप्त किया हैं29 अक्टूबर- श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू रवियोग सायं 4.49 बजे तक। क्या आपको संतान की इच्छा हैं और आपने बडे बडे डाक्टरो कि सलाह और हजारो रूपये टेस्टों मे खर्च कर दिये और उसके पश्चात भी आप परेशान हैं सफलता आपसे कोसो दुर हैं। मै आपको अपने अनुभव के आधार पर सलाह दे रहा हूं कि आप 29 अक्टूबर 2009 को धूमधाम से तुलसी का विवाह को मन और आस्था के साथ मनाये अब तक लगभग 278 व्यक्तियो ने लाभ प्रप्त किया हैं आज इन्होको तुलसी मां और भगवान विष्णु से प्रसाद रूप में सन्तान कि प्राप्ति है सन्तान कि इच्छा रखे लडका हो या लडकी ये सब भगवान के हाथ में है परन्तु आपको अवगत करा दूं यदि आपने लडके कि इच्छा से गृभपात कराया है या भूर्ण हत्या के आप किसी प्रकार से अपराध मे लिप्त हैं तो आपको लाभ मिलने मे सन्देह हैं।
जैसे कन्या का विवाह करते हैं, वैसे ही धूमधाम से तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ करने का रिवाज है। तुलसी के पौधे को ओढ़नी पहना कर, सोलह श्रृंगार करके पूरे गाजे-बाजे के साथ तुलसी विवाह करवाया जाता है। खुले आकाश के नीचे चौराहे के निकट केले के चार खम्बों का विवाह मंडप बनाकर उसे वंदनवार और तोरण आदि से सजाया जाता है। विष्णु भगवान की मूर्ति के साथ सोने या चांदी की तुलसी की प्रतिमा बनाकर, फेरों के लिए पास ही हवन की वेदी बनाई जाती है। ज्योतिष शा7 के अनुसार शुभ विवाह मुहूर्त में योग्य ब्राह्मण के सहयोग से गोधूलि वेला में कन्यादान कुशकंडी हवन और अग्नि परिक्रमा आदि विधियों सहित भगवान विष्णु जी और तुलसी जी का विवाह संपन्न करवाया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर फिर स्वयं भोजन करने का विधान है यानी माता तुलसी के विवाह के समय भी बेटी के विवाह जैसा ही आयोजन, गीत-संगीत और विदाई आदि की रस्में होती हैं। इस दिन उपवास रखा जाता है। पूर्व जन्म के पापों को दूर करने के लिए एवं सौभाग्य, दीर्घायु, संतान सुख के लिए, संतान की शादी में आने वाली रुकावटों को दूर करने, कन्या प्राप्ति के लिए तुलसी विवाह अवश्य करवाना चाहिए। हमारे पूर्वज स्वर्ग में कामना करते हैं कि हमारे वंशज कन्या दान करके उन्हें मोक्ष दिलाएं, परंतु जिनके घर में कन्या न हो तो वे प्राणी तुलसी की शादी करके अपने पूर्वजों की कामना को पूरा कर सकते हैं।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

ग्रहो के खेल से जब बडे बडे राजा महाराजा नही बचपाये तो

ग्रहो के खेल से जब बडे बडे राजा महाराजा नही बचपाये तो हमारी और आपकी बिसात क्या है सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान किया। 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है यह सब चलता रहेगा और मै तथा आप इस चक्र को रोकने में सक्षम भी नहीं है परन्तु इतना अवश्य हैं कि आप और मैं ग्रहो के खेल को दुर से बैठ कर देख सकते हैं कभी कभी देखने मात्र से भी ग्रह चालो के फेर में फंस जाते हैं तो इस खेल को दुर से बचकर देखना चाहिऐ। हमने कहां था कि ममता का कलक्ता में रेलो का भार सम्भालां हैं जो ग्रहों के योग रेल विभाग के लिये ठिक नही हैं और आप सभी देख रहें हैं कि कार्यभार सम्भालने के बाद से कोइ न कोइ समस्या उत्पन्न हो रहीं हैं मेरे और आपके हाथ में क्या हैं राजा के ग्रहो का असर जनता पर पडता हैं एक पुरानी कहावत है। उत्तर प्रदेश में भी सूर्य+शनि की युति व 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे प्रवेश करने के कारण जनआक्रोश को बढाने के साथ साथ अनेक समस्या पैदा करगें हमारे सस्थानं के ज्योतिषियों ने गणना करके एक बार फिर साबित करने का प्रयास किया हैं ग्रहों के चक्र से कोई नहीं बचा हैं http://twitter.com पर 7:10 PM Oct 6th from web को लिखा गया हैं।सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है7:10 PM Oct 6th from web सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है7:09 PM Oct 6th from web छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है

24 अक्टूबर- सूर्यषष्ठी व्रत-छठ पूजा (बिहार, झारखंड), प्रतिहारषष्ठी व्रत (मिथिलांचल), डाला छठ (काशी), स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, रवियोग दिन-रात, शनिदेव दर्शन-पूजन, छाया-दान। व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।छठ पर्व मूलत: सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं की सूची में सूर्य ही एक मात्र देवता है जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। बाकी सभी देवताओं को कल्पना के आधार पर आकार दिया गया है।व्रतधारियों के मुताबिक छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की सकुशलता के लिए महिलाएं सामान्य तौर पर यह व्रत रखती हैं। वैसे तो छठ का व्रत पुरुष भी पूरे मनोभाव से रखते हैं।सूर्यदेव न केवल अन्न, फल आदि को पकाते हैं, बल्कि नदियों, समुद्रों से जल ग्रहण कर पृथ्वी पर वर्षा भी कराते हैं। संपूर्ण प्राणियों के वे पोषक हैं। साथ ही, उपासना करने पर वे सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने में भी सक्षम हैं। मान्यता है कि चर्म रोग, जिसमें कोढ़ के समान कठिन रोग भी सम्मिलित है, से छुटकारा पाने के लिए सूर्योपासना सर्वाधिक सशक्त साधन है। सूर्य की उपासना हमें दीर्घायु भी बनाती है। अथर्ववेद में कहा गया है- आकाश की पीठ पर उड़ते हुए अदिति (देवताओं की माता) के पुत्र सुंदर पक्षी सूर्य के निकट कुछ मांगने के लिए डरता हुआ जाता है। हे सूर्य! आप हमारी आयु दीर्घ करें। हमें कष्टों से रहित करें। हम पर आपकी अनुकंपा बनी रहे। ऐसे सभी प्राणियों के पोषक, दिवा रात्रि और ऋतु परिवर्तन के कारक, विभिन्न व्याधियों के विनाशक सूर्य-देव को हम सूर्य षष्ठी के पावन पर्व पर अपना नमस्कार निवेदित करते हैं। सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। वास्तव में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
"हिंदी" हैं हम, वतन है- हिंदोस्ताँ हमारा
मैने एक समाचार पत्र में पढा तो मन गद- गद हो गया वाराणसी में रहने वाली नाजनीन अंसारी और नजमा ने छठ पूजा की तैयारी पूरी कर ली है। वर्ष 2008 मे भी अंसारी परिवार के द्धारा छठ पूजा का आयोजन किया गया था इस वर्ष भी छठ पूजा के लिए खासा व्यस्त हैं छठ पूजा छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

हमारी एक गलती कई पिडियों को कर्ज में डूबो देती हैं

आज समाज में धनवान व्यक्ति के लिये सबकुछ माफ हैं जिसके पास धन (लक्ष्मी) नही हैं उसके न मित्र हैं न भाई न बन्धु स्वजन परिजन आदि सभी साथ छोड कर चले जाते है,धनहिन होना एक अलग बात हैं परन्तु यदि आप कर्जदार हैं तो आपके लिये कष्टदायक है कर्ज न उतरे- निरन्तर बढता रहें यह उससे भी ज्यादा दुख दायी हैं।मेरे पास पिछले एक वर्ष से एक बडे उधोगपति के परिवार के सदस्य जन्म पत्रियो को दिखाते चले आरहे थे और हर बार केवल एक प्रश्न गुरू जी हमारे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति कर्जदार क्यो बनता जा रहा हैं। जबकि परिवार अधिकतर व्यक्तियों के व्यापार भी ठिक हैं काम मिलने में भी हमको कोई ज्यादा परेशानियां नही आती हैं। इस परिवार के कई रिशतेदार प्रदेश व केन्द्र सरकार में उच्चअधिकरी हैं। मेरे द्धारा उन्हे कई उपाय कराये गये परन्तु कुछ समय लगता हैं कि लाभ हैं फिर ऐसा लगने लगता कि कर्ज नहीं उतरेगा। एक दिन परिवार के सभी सदस्यों की जन्म पत्रियों को देखने के लिये परिवार के एक सदस्य के घर पर मै गया ग्रहों कि दशा तथा कुन्डलियों के योगो को देखने के पश्चात ऐसा काई योग सामने नही आया जिससे लगे कि इनके परिवार पर कर्ज निरन्तर बढ रहा है। जिस दिन मैं उनके घर पर सभी कि जन्म पत्रियों को देख रहा था वह दिन था मंगलवार का तभी उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा गुरूजी अगर बुरा न माने तो मैं और मेरी पत्नी जरा बैंक चले जाये लोन के कागजों पर आज हस्ताक्षर हो गये तो आज ही लोन ऐकाउन्ट में आ जायेगा नहीं तो चार दिन की छुटटी हो जायेगी उस समय मैने कहा ठिक है अभी मैं चाय पी ही रहा था कि मुझे याद आया कि आज मंगलचार है यदि आज भी इन्होंने बैंक से कर्ज लिया तो यह कर्ज इन पर और चढ जायेगा तथा उतरने का नहीं है। मैंने फोन पर तुरन्त मना कि कि वह आज कर्ज न लें चाहे कुछ भी हो वह लोग बैंक से वापस चले आये उसके पश्चात मैंने उन्हें बताया कि आपके घर से लक्ष्मी के रूठने के कारण क्या हैं। कभी-कभी पूर्वजन्म के पाप स्वरूप जन्म कुण्डली में दुष्ट ग्रहों के योग से पर्याप्त श्रम सामर्थ्य करने पर भी अभीष्ट धन की प्राप्ति नहीं हो पाती। जीवन अभाव ग्रस्त हो जाता है। अत जिन कारणों से लक्ष्मी जी अप्रसन्न हो जाती हैं सर्वप्रथम उन्हें दूर करने का प्रयत्न चाहिए इसके उपरान्त ऐसी परिस्थितियों से त्राण के लिए और अभीष्ट धन की प्राप्ति के लिए हमारे ऋषिवरों ने जो उपाय बतायें हैं उनका यथा सम्भव उपयोग करने से अपनी श्री सम्पन्नता में वृद्धि कर सकते हैं।मंगलवार को ऋण लेने से लक्ष्मी का रूठना प्रारम्भ हो जाता है और बहुत काल तक ऐसा करने से लक्ष्मी पलायित हो जाती है। मंगलवार को लिया हुआ ऋण वापस जाने का नाम नहीं लेता और घर में ऋण का स्थायी वास हो जाता है और नये-नये ऋण लेने की स्थितियां पैदा करता रहता है। इसी प्रकार रविवार को जब हस्त नक्षत्र पडे तब व़द्धि योग और संक्रान्ति के पुण्यकाल में तथा जब मंगलाव को चतुर्थी, नवमी अथवा चतुर्दशी तिथि पडे तब भी ऋण नहीं लेना चाहिए इस दिन लिया हुआ ऋण उसके कुल में विद्यमान रहता है और लक्ष्मी के रूठने का प्रमुख कारण बनता है।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दीपावली के शुभ दिन ''लक्ष्मी गणेश'' के चिन्ह



दीपावली के शुभ दिन लक्ष्मी आप सभी के घर पर पधारे तथा धन-धान्य से संपन्न करती रहे। मेरी तथा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र समिति के सदस्यों कि ओर से आप सब शुभ हो, मंगलमयी हो, कल्याणकारी हो।साथ हि निवेदन भी जिस लक्ष्मी गणेश का आप पूजन करते हैं उन्हें उपहार के रूप में न दे''लक्ष्मी गणेश'' के चिन्ह

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

संसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं।


ंसार में जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं। धनवान व्यक्ति को ही श्रेष्ठ व्यक्ति माना जाता है। जिसके पास धन हो, वह सुखपूर्वक अपना जीवन बिताता है। धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति के लिए ऋग्वेद में वर्णित श्री सूक्त का पाठ एक ऐसी साधना है जो कभी निष्फल नहीं होती। मां लक्ष्मी के आह्वान एवं कृपा प्राप्ति के लिए श्री सूक्त पाठ की विधि द्वारा आप बिना किसी विशेष व्यय के भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की आराधना करके आत्मिक शांति एवं समृद्धि को स्वयं अनुभव कर सकते हैं।यदि संस्कृत में मंत्र पाठ संभव हो तो हिंदी में ही पाठ करें। दीपावली पर्व पांच पर्वों का महोत्सव है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैयादूज) तक पांच दिन चलने वाला दीपावली पर्व धन एवं समृद्धि प्राप्ति, व्यापार वृद्धि ऋण मुक्ति आदि उद्देष्यों की पूर्ति के लिए मनाया जाता है। श्री सूक्त का पाठ धन त्रयोदषी से भैयादूज तक पांच दिन संध्या समय किया जाए तो अति उत्तम है। धन त्रयोदषी के दिन गोधूलि वेला में साधक स्वच्छ होकर पूर्वाभिमुख होकर सफेद आसन पर बैठें। अपने सामने लकड़ी की पटरी पर लाल अथवा सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर एक थाली में अष्टगंध अथवा कुमकुम (रोली) से स्वस्तिक चिह्न बनाएं। गुलाब के पुष्प की पत्तियों से थाली सजाएं, संभव हो तो कमल का पुष्प भी रखें। उस गुलाब की पत्तियों से भरी थाली में मां लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान का चित्र अथवा मूर्ति रखें। साथ ही थाली में श्रीयंत्र, दक्षिणावर्ती शंख अथवा शालिग्राम में से जो भी वस्तु आपके पास उपलब्ध हो,रखें। सुगंधित धूप अथवा गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। थाली में शुद्ध घी का एक दीपक भी जलाएं। खीर अथवा मिश्री का नैवेद्य रखें। तत्पष्चात् निम्नलिखित विधि से श्री सूक्त की ऋचाओं का पाठ करें। ऋग्वेद में लिखा गया है कि यदि ऋचाओं का पाठ करते हुए शुद्ध घी से हवन भी किया जाए तो इसका फल द्विगुणित होता है।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी

17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है। इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।
रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

पति की दीर्घायु के लिए

पति की दीर्घायु के लिए शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को किसी सुहागिन को लाल सिंदूर की डिब्बी, इत्र गुलाब की शीशी, आधा किलो चने की दाल और केसर का पत्ता या डिब्बी दान करें। ऐसा हर महीने दो शुक्रवार करंे, महालक्ष्मी और नारायण की असीम कृपा से पति दीर्घायु होंगे।

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है।

विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है।
करवा चौथः 07 अक्तूबर, 2009 को मनाया जायेगा यह कार्तिक कृष्णा चतुर्थी/कारक चतुर्थी/करवा चौथ के रूप में मनाते हैं। आप सभी जानते हैं कि करवाचौथ का पर्व मूल रूप से पति-पत्नी के बीच रिश्तों को और मजबूत करने का दिन होता है। खासकर जो नए जोड़े होते हैं, उनके लिए यह पर्व और भी मायने रखता है। एक-दूसरे को करीब से जानने और समझने का इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता है! लेकिन कुछ सालों से इसका स्वरूप काफी बदल गया है। करवा चैथ व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने प्राण बल्लभ की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना करके भगवान रजनीश (चंद्रमा) को अघ्र्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं। इस व्रत में रात्रि बेला में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा का विधान है। इस दिन निर्जल व्रत रखकर चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अघ्र्य अर्पण कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। पीली मिट्टी की गौरी भी बनायी जाती है। कुछ स्त्रियां परस्पर चीनी या मिट्टी का करवा आदान प्रदान करती हैं। लोकाचार में कई स्त्रियां काली चिकनी मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी बनाकर डाल देती हैं अथवा आटे को घी में सेंककर चीनी मिलाकर लड्डू आदि बनाती हैं। पूरी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं।

नव विवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। चैथ का व्रत चैथ से ही प्रारंभ कराया जाता है। इसके बाद ही अन्य महीनों के व्रत करने की परम्परा है।नैवेद्य (भोग) में से कुछ पकवान ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करें तथा अपनी सासू मां को 13 लड्डू, एक लोटा, एक वस्त्र, कुछ पैसे रखकर एक करवा चरण छूकर दे दें। शेखावाटी (राजस्थान) में एक विशेष परम्परा है। वहां स्त्रियां कुम्हारों के यहां से करवा लाकर गेहूं या बाजरा भूनकर सथिया करके आटे की बनी हुई 13 मीठी टिक्कियां, एक गुड़ की डली और चार आने के पैसे या श्रद्धानुसार विवाह के साल टीका चावल लगाकर गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनती हैं। करवा तथा पानी का लोटा रोली पाटे पर रखती हैं और कहानी सुनकर करवा अपनी सास के पैरों में अर्पित करती हैं। सास न हो तो मंदिर में चढ़ाती हैं।उद्यापन करें तो 13 सुहागिन स्त्रियों को जिमावें। 13 करवा करें 13 जगह सीरा पूड़ी रखकर हाथ फेरें। सभी पर रुपया भी रखें। बायना जीमने वाली स्त्रियों को परोस दें। रुपया अपनी सास को दे दें। 13 करवा 13 सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बीच दे दें।करवा चैथ का व्रत भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन या प्यार का प्रतीक है जो पति पत्नी के बीच होता है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर माना गया है। यह व्रत पति पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय निवेदन और एक दूसरे के प्रति हर्ष, प्रसन्नता, अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। इस दिन स्त्रियां नव वधू की भांति पूर्ण शृंगार कर सुहागिन के स्वरूप में रमण करती हुई भगवान रजनीश से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं।स्त्रियां शृंगार करके ईश्वर के समक्ष व्रत के बाद यह प्रण भी करती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी तथा धर्म के मार्ग का अनुसरण करती हुई धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करेंगी।कुंआरी कन्याएं इस दिन गौरा देवी का पूजन करती हैं। शिव पार्वती के पूजन का विधान इसलिए भी है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही सौभाग्य उन्हें भी प्राप्त हो। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पांडवों के बनवास के समय जब अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत की ओर चले गए तो बहुत दिनों तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपदी को चिंता हुई। श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिंता दूर करते हुए करवा चैथ का व्रत बताया तथा इस संबंध में जो कथा शिवजी ने पार्वती को सुनाई थी, वह भी सुनाई। कथा इस प्रकार है।इंद्रप्रस्थ नगरी में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चैथ के व्रत के समय वीरावती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, किंतु वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निढाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है। करवा चैथ का व्रत चंद्रमा देखकर ही खोलेगी। यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलाई तथा ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा जैसा दृश्य बना दिया और जाकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है, अघ्र्य दे दो। यह सुनकर वीरावती ने अघ्र्य देकर खाना खा लिया। नकली चंद्रमा को अघ्र्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका। एक बार इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चैथ का व्रत करने पृथ्वी पर आईं। इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इंद्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बताएं। इंद्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए करवा चैथ व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खंडित किए करेगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरावती ने करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि से संपन्न किया जिसके फलस्वरूप उसका पति बिलकुल ठीक हो गया। करवा चैथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है। सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि और धन-धान्य के इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधि पूर्वक करना चाहिए और इस दिन विभिन्न प्रकार के बधावे गाने चाहिए।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

दान कैसा हो और क्यों हो ?


दान कैसा हो और क्यों हो ?

जब से हमारे द्धारा नेट पर ब्लाक के माध्यम से आप सभी के सम्पर्क में आये हैं तो अनेक प्रश्नो को लिये हुए मेल प्राप्त हो रहे है सभी का उत्तर एक साथ नही दिया जा सकता इस कारण एक प्रश्न का उत्तर यहां देने का प्रयास है।

श्रीमद्भगवदगीता में भगवान कहते है
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम।। श्रीमद्भगवदगीता (अ0 17)
जीवन में दान देना ही कर्तव्य/धर्म है - इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे पात्र व्यक्ति को दिया जाता है, जिसमें प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है। तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतपः क्रियाः ।
दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकांक्षिभि।। श्रीमद्भगवदगीता (अ0 17)
तत् शब्द का उच्चारण कर , फल की इच्छा नहीं रखते हुए, मुमुक्षुजन यज्ञ, तप, दान आदि विविध कर्म करते है। बहुत से शिष्यो का प्रश्न होता हैं मुक्ति कैसे मिलती है दान कर्तव्य समझकर योग्य व्यक्ति को बिना किसी अपेक्षा के देना चाहिए। दान करने से अहंकार का नाश होता है। अहंकार के अभाव में, अन्तःकरण की पूर्वार्जित वासनाएं नष्ट हो जाती हैं और नई वासनाएं उत्पन्न नहीं होती। यह भी मुक्ति का एक मार्ग है। "दानशीलता ऐसा प्रयास है, जिसके जरिए आप अपने जीवन का दायरा बढ़ाने और अपने चारों ओर के समस्त तत्वों को समाहित करने का प्रयास करते हैं। इसके जरिए आप दूसरों की जरुरतों को उतना ही महत्त्वपूर्ण मानने की कोशिश करता हैं जितनी कि आपकी खुद की जरुरतें हैं। हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें। हिन्दु शास्त्रो में कहां गया हैं नवरात्रो से लेकर गोवर्धन के पश्चात तक संसार को चलाने वाले सभी देवी देवता धरती पर रहकर जनकल्याण के कार्यो को करते हैं तथा उन भक्तो की सुनते हैं जो उन्हे अपने कष्टो के निवारणार्थ पुकारते हैं। यदि आप अपने लग्न चक्र , राशि के आधार पर जानना चाहते है कि आपको दीपावली पर क्या करना चाहिये जिससे आपके घर में लक्ष्मी का सदा निवास करे, प्रसन्न रहे तो हमारे को मेल पर नाम एवं जन्म तिथि जन्म समय जन्म स्थान भेजकर करे और ज्ञात करे।