सोमवार, 15 मार्च 2010

ज्वाला मुखी योग 20 मार्च 2010 को

ज्वाला मुखी योग 20 मार्च 2010 को
20 मार्च 2010 दिन शनिवार को दोपहर 12 बजकर 46 मिनट से पंचमी तिथि व भरणी नक्षत्र का सयोंग बन रहा है और इस संयोग से ज्वालामुखी योग का निर्माण होता है
मित्रों, ग्रहो, नक्षत्रों के खेल निराले हैं इनका विचार अवश्य करना चाहिए और जो व्यक्ति शुभ अशुभ का विचार करता है उसका समय साथ देता है जिसका उल्लेख हम यहां कर रहे हैं। जहां एक और 16 मार्च 2010 से नवरात्रि व्रत प्रारम्भ हो रहे हैं अनेक व्यक्ति अपने रूके हुए शुभ कार्यो को इस समय में करते हैं परन्तु 20 मार्च 2010 दिन शनिवार को दोपहर 12 बजकर 46 मिनट से पंचमी तिथि व भरणी नक्षत्र का सयोंग बन रहा है और इस संयोग से ज्वालामुखी योग का निर्माण होता है इस योग में किया गया प्रत्येक कार्य दुख दायक होता है, कहा गया है जो जन्में सो जीवे नहीं, बसे जो उजड जाय नारी पहने चूडला वह निशिचत विधवा हो जाये, गांव गया आवें नहीं कुंआ नीर न होय।

इस कारण हमारी सलाह है कि किसी भी प्रकार का शुभ कार्य 20 21 मार्च 2010 को न करें यदि सम्भव हो तो सम्भोग भी न करें क्योंकि इस योग में यदि संतान उत्पत्ति का बीजारोपण किया जाता है तो भविष्य में उसके परिणाम समाज व परिवार के लिये लाभदायक नहीं रहते हैं।

अशुभ ज्वालामुखी योग

23 अप्रैल को प्रात: 8.35 से दोपहर 1.51 तक

अशुभ ज्वालामुखी योग

26 जून को सायं 5.01 से रात्रि 9.57 तक

अशुभ ज्वालामुखी योग

1 सितम्बर को प्रात: 10.50 से दोपहर 1.18 तक

2 सितम्बर को प्रात: 10.42 से दोपहर 1.46 तक

अशुभ ज्वालामुखी योग6 दिसम्बर को सायं 5.54 से रात्रि 10.19 तक

शनिवार, 13 मार्च 2010

शक्ति के नौ रूपों की पूजा 16 मार्च 2010

शक्ति के नौ रूपों की पूजा 16 मार्च 2010
शक्ति के नौ रूपों की पूजा 16 मार्च 2010 इस साल एक भी सोमवती अमावस्या नहीं है। इस साल दो शनि अमावस्या जरूर हैं हमारे द्वारा दुर्गा सप्तशति,दुर्गा के नौ रूप हवन के लिये आहुति की सामग्री,वैदिक आहुति की सामग्री का उल्लेख भी ब्लाक में किया जा चूका है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 16 मार्च से नया विक्रम संवत् 2067 शुरू होगा। इस संवत् की महत्वपूर्ण बात यह है कि इस साल एक भी सोमवती अमावस्या नहीं है। इस साल दो शनि अमावस्या जरूर हैं। मौजूदा संवत् 2066 की विदाई सोमवती अमावस्या से हो रही है। 15 मार्च को सोमवती अमावस्या है। नया संवत् 2067 तेरह माह का है। एक वैशाख अधिक है। ज्येष्ठ और कार्तिक मास की अमावस्या शनिवार को आएगी। लोक मान्यता में शनि अमावस्या पर शनिदेव के दर्शन-पूजन का महत्व है। कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली पर शनिवार होने से शनि मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की संख्या अघिक रहने की उम्मीद रहेगी।
भारतीय कैलेंडर अनुसार 16 मार्च को सूर्योदय के साथ ही प्रारंभ होने वाले नववर्ष पर मंत्रोच्चार एवं शंख ध्वनि के साथ सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। सनातन संस्कृति को ध्यान में रखते हुए नववर्ष-संवत्सर प्रतिपदा महोत्सव (गुड़ी पड़वा) का आयोजन किया जाएगा।16 मार्च मंगलवार से हिन्दू नव संवत्सर की शुरूआत हो रही है। इसी दिन से चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे जिसका समापन 24 मार्च को रामनवमी पर होगा। मंगलवार 16 मार्च से शुरू हो रहे नव संवत्सर 2067 पर कई संगठनों द्वारा हिन्दू नव वर्ष का स्वागत किया जाएगा।
चैत्र मास की प्रतिपदा के दिन से ही नवरात्र, यानी देवी दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है। यह त्योहार पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा यानी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शैलपुत्री: नवरात्र के पहले दिन शैलपुत्रीकी पूजा की जाती है। शैल का अर्थ पहाड होता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, पार्वती पहाडों के राजा हिमवान की पुत्री थीं, इसलिए उन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है। ब्रह्मचारिणी : देवी दुर्गा ने इस रूप में एक हाथ में जल-कलश धारण किया है, तो दूसरे हाथ में गुलाब की माला। ब्रह्मचारिणी को विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है। देवी रुद्राक्ष की माला धारण करना पसंद करती हैं। चंद्रघंटा: नवरात्रके तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। देवी के इस रूप में दस हाथ और तीन आंखें हैं। आठ हाथों में शस्त्र हैं, तो दो हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं। देवी के इस रूप की पूजा कांचीपुरम [तमिलनाडु] में की जाती है। कूष्मांडा: देवी का यह रूप बाघ पर सवार है। इनकी दस भुजाएं हैं, जिनमें न केवल शस्त्र, बल्कि फूल माला भी सुसज्जित हैं। स्कंदमाता:देवी इस रूप में बाघ पर सवार हैं और अपने पुत्र स्कंद को भी साथ लिए हुई हैं। इस मुद्रा में वे दुष्टों का संहार करने को आतुर दिखाई देती हैं। कहते हैं कि कवि कालीदासने मेघदूतऔर रघुवंश महाकाव्य की रचना देवी स्कंदमाताके आशीर्वाद से ही की थी। कात्यायनी : देवी दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के आश्रम में तपस्या की थी, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पडा। कालरात्रि : नवरात्रपूजा के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा होती है। इस रूप में देवी गधे पर सवार हैं और उनके बाल बिखरे हुए हैं। यह देवी अज्ञानता के अंधकार को मिटाने वाली मानी जाती हैं। कलकत्ता में देवी कालरात्रि की सिद्धि-पीठ है। महागौरी: गौर वर्ण वाली देवी सफेद साडी धारण किए हुई हैं। उनके चेहरे पर दया और करुणाका भाव है। उनके हाथ में डमरू और त्रिशूल भी है। हरिद्वार के कनखल में महागौरी का ख्याति प्राप्त मंदिर है। सिद्धिदात्री: देवी इस रूप में कमल पर सवार हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे वरदान मिलते हैं।
आरती।।
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पडी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो मॉ करके सिंह सवारी।
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, है अष्ट भुजाओ वाली,
दुष्टो को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

मॉ बेटे का इस जग मे बडा ही निर्मल नाता।
पूत - कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता।

सब पे करूणा बरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियो के दुखडे निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना।
हम तो मांगे तेरे चरणो मे, इक छोटा सा कोना।

सबकी बिगडी बनाने वाली,लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को सवांरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।

चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली।
मॉ भर दो भक्ति रस प्याली,
अष्ट भुजाओ वाली, भक्तो के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।।( अम्बे तू०)