रविवार, 19 दिसंबर 2010

मेष राशि वाले जातको के लिये 2011
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मेष राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति राजसी प्रकृति के होते हैं। इसमें अग्नि तत्व की प्रधानता होती है, इनकी मानसिक स्थिति बहुत ही अच्छी होती है, इनके मस्तिष्क में हर पल नये नये विचार उभरते रहते हैं। नौकरी की दृष्टि से इनके लिए पुलिस विभाग, सेना, शल्य चिकित्सक, रसायनशास्त्री का काम लाभदायक और कामयाबी दिलाने वाला होता है।
मेष राशि की सहयोगी राशियाँ
मेष, सिंह, तुला, कुंभ, धनु, मीन। इस वर्ष इन राशि वाले लोगों के साथ आपका सामंजस्य स्थिर रहेगा। आपके तुला, कुंभ राशि वालों से सहयोग और प्रेम की परिपूर्णता के कारण श्रेष्ठ संबंध रखेगें। धनु, मीन, मेष व सिंह राशि के लोगों के साथ आपका अच्छा सहयोग व मानसिक स्थिरता रहेगी। यह राशियाँ आपके लिए विपरीत परिस्थितियों व भटकाव की स्थिति में सहायक होगी।
मेष राशि के शुभ अंक -आपकी राशि के शुभ अंक हैं 1, 2, 3, 6, तथा 9। इन शुभ दिनाँकों में यदि आप कार्य करते हैं या इन अंकों के लोगों से व्यापार या मित्रता करते हैं तो आपकी सफलता की पूर्ण संभावना बनती है।ऐसा नही है कि आप अन्य के साथ मित्रता न रखे मित्रता अवश्य करे परन्तु औरो से लाभ कम प्राप्त होगा
मेष राशि के भागयशाली अंक - 1 और 9 आपका भाग्यशाली अंक है। यह अंक आपके लिए विशेष सफलतादायक व शुभ रहेंगे।
मेष राशि के शुभ रंग-आपका शुभ रंग है लाल, पीला, नारंगी और सुनहरा (गोल्डन)
मेष राशि के शुभ रत्न व उपरत्न -आपका शुभ रत्न है मूंगा, मोती और पुखराज। इन्हें धारण कर आप अपने भाग्य के दरवाजे खोल सकते हैं। सौभाग्य को प्राप्त कर सकते हैं। मेष राशि वालो के लिये वर्ष 2011 लाभदायी उपरत्न हैं राक-क्रिस्टल, अम्बर, कहस्वा। किसी भी रतन को धारण करने से पहले शुद्व कराये,प्राणप्रतिष्ठा अवश्य कराने के साथ साथ नक्षत्र व दिन का ध्यान अवश्य रखे ।
मेष राशि वालो के लिये शुभ आराध्य देवता-यदि आप हनुमान जी, कार्तिकेय जी की पूजा-अर्चना करें तो विशेष रुप से लाभप्रद रहेगा।
मेष राशि वालो के लिये शुभ यंत्र्- आपके लिए मंगल यंत्र् की पूजा-उपासना करा अतिश्रेयस्कर रहेगा। यदि आप जीवन में शुभता लाना चाहते हैं तो प्रतिदिन मंगल यंत्र की पूजा करें। इस यंत्र को मंगलवार के दिन स्थापित करें और मंगल यंत्र की पूजा करें। इस यंत्र को मंगलवार के दिन स्थापित करें और मंगल यंत्र का नित्यप्रति जाप करें। ग्रहों का मंत्र जाप करने से भी ग्रह की शान्ति की जा सकती है. मंगल ग्रह की शान्ति के लिये " ऊँ भौ भौमाय नम:" का जाप किया जा सकता है. राम नाम का पाठ करने पर भी मंगल की अशुभता में कमी होती है. इस मंत्र का जाप प्रतिदिन या फिर प्रत्येक मंगलवार के दिन एक माला अर्थात 108 बार या अधिक किया जा सकता है मंगल के उपायों कि श्रेणी में अगला उपाय मंगल यन्त्र निर्माण व इसकी स्थापना का है. मंगल यन्त्र को तांबे के ताम्र पत्र पर या फिर भोज पत्र पर तथा विशेष परिस्थिति में इसे कागज पर भी बनाया जा सकता है. इनमें से किसी वस्तु पर इस यन्त्र को बनाने के लिये अनार की कलम व लाल चंदन, केसर, कस्तूरी की स्याही से इसका निर्माण किया जाता है यन्त्र निर्माण मंगलवार के दिन करना शुभ रहता है. मंगल यन्त्र के नौ खानों में निम्न अंक स्थापित किये जाते है. मंगल यन्त्र निम्न प्रकार का होता है. मंगल यन्त्र की संख्याऔं का योग किसी भी प्रकार किया जाये 21 ही आता है
मेष राशि वालो के लिये लाल किताब अनुसार वर्ष 2011मे राशि दोष उपचार -
तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गाय को खिलाएं। किसी भी वस्तु को मुफ्त ग्रहण न करें। लाल रंग का रुमाल हमेशा साथ रखें। विधवाओं की सहायता करें व आशीर्वाद प्राप्त करें। मीठी वस्तुओं का व्यापार न करें। मद्यपान व नषा से परहेज करें। दिन ढलने से पहले गेहूँ, गुड़ बालकों को दान करें। स्वर्ण आभूषण धारण करें। लाल चंदन धर्म स्थान में दें तथा मसूर की दाल भी। सुबह धर्म स्थान की सफाई करें। बाएं हाथ में चाँदी का छल्ला बिना जोड़ के धारण करें। घर में कैक्टस का पौधा लगाए। यदि घर में गार्डन न हो तो आप कुछ गमलों में पौधे लगाएं।
उपरोक्त उपायों को जीवन में अपनाकर आप अपनी राशि पर पड़ रहें मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं और शान्ति का अनुभव करेंगे। आपको समय रहते आवश्यक उपचार करने चाहिए।
मेष राशि वाले जातकों हेतु वर्ष 2011 मे उपयोगी टोटके
दाम्पत्य जीवन में तनाव हो तो उसे दूर करने के लिए आपको शुक्रवार के दिन किसी कन्या को बुलाकार सफेद मीठी वस्तु खिलानी चाहिए तथा यह प्रयोग ग्यारह बार करना चाहिए।
प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी के मन्दिर में जाकर बूंदी का प्रसाद चढ़ाकर बांटना आपके लिये शुभ रहेगा। इससे जीवन में जो अकस्मात् परेशानियाँ आ जाती है वह नहीं आयेगी।
जीवन में उन्नति,प्रगति के लिए आपको लाल रंग के कपड़े पहनना शुभ रहेगा। यदि आपका स्वभाव गर्म हो तो लाल वस्त्र को पहनने से परहेज करें तथा उपहार स्वरुप लाल रंग के वस्त्र एवं अन्य लाल रंग की वस्तुएँ किसी से भी नहीं लें। कोई भी महत्वपूर्ण कार्य मंगलवार को करें तो श्रेष्ठ फल प्राप्त होगा। मेष राशि के व्यक्तियों को शि़क्षा में सफलता के लिए घर में लाल रंग के पुष्प उत्पन्न करने वाले पौधे लगाने चाहिए।यदि आपका उत्साह कम रहता हो तो मंगलवार के दिन लाल चन्दन का तिलक लगाना चाहिए,और मंगल कि वस्तुओं का दान नही करना चाहियें
यदि आपकी नौकरी में व्यवधान आ रहा है तो हरे रंग के फूल एवं पत्तियों वालें पौधे घर में लगाकर उन्हें नियम से सींचे। मेष राशि वाले व्यक्तियों को जीवन में सभी प्रकार से उन्नति के लिए शिव मन्दिर में सोमवार के दिन कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए।
आप समस्या निदान के लिये सम्पर्क कर सकते है प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मोबाईल नम्बर 09359109683

मेष राशि वाले व्यक्तियों पर 2011 में शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या पर एक नजर

मेष राशि वाले व्यक्तियों पर 2011 में शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या पर एक नजर
इस वर्ष 2011 में आप शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में नहीं है इसलिए आपको शनि शमन के उपाय करने की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु ‍िफर भी आप भविष्य मे शनि देव के प्रकोप से बचने के लिये प्रत्येक शनि वार के दिन निम्न लिखित उपाय अवश्य करे।
शनि के उपाय
शनि अशुभ फलों के उपाय
1. राजा दशरथ विरचित शनि स्तोत्र के सवा लक्ष जप।
2. शनि मंदिर या चित्र पूजन कर प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करें:-
नमस्ते कोण संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते वभु्ररूपाय, कृष्णाय च नमोस्तुते ।।
नमस्ते रौद्रदेहाय, नमस्ते चांतकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय, नमस्ते सौरये विभौ।।
नमस्ते मंदसंज्ञाय, शनैश्चर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरू में देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।
3. घर में पारद और स्फटिक शिवलिंग (अन्य नहीं) एक चौकी पर, शुचि बर्तन में स्थापित कर, विधानपूर्वक पूजा अर्चना कर, रूद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।
4. सुंदरकाण्ड का पाठ एवं हनुमान उपासना, संकटमोचन का पाठ करें।
5. हनुमान चालीसा, शनि चालीसा और शनैश्चर देव के मंत्रों का पाठ करें। ऊँ शं शनिश्चराय नम:।।
6. शनि जयंती पर, शनि मंदिर जाकर, शनिदेव का अभिषेक कर दर्शन करें।
7. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: के 23,000 जप करें फिर 27 दिन तक शनि स्तोत्र के चार पाठ रोज करें।
8. शनिवार को सायंकाल पीपल के पेड के नीचे मीठे तेल का दीपक जलाएं।
9. घर के मुख्य द्वार पर, काले घोडे की नाल, शनिवार के दिन लगावें।
आप समस्या निदान के लिये सम्पर्क कर सकते है प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मोबाईल नम्बर 09359109683

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

मेष राशि 2011, तिथियो का सब से ज्यादा महत्व होता है

मेष राशि वाले व्यक्तियों के लिये वर्ष 2011 के 12 महीनो कि तिथियो मे कोई शुभ कार्य न करे यह समय सभंल कर चलने का है व्यक्ति के जीवन में तिथियो का सब से ज्यादा महत्व होता है
जनवरी 2011 में अशुभ तिथियां 10,11,12,20,21,28,व २९
फरवरी 2011 में अशुभ तिथियां 7,8,16,17,24,25 व 26
मार्च 2011 में अशुभ तिथियां 6,7,8,16,17,24,व 25 अप्रैल 2011 में अशुभ तिथियां 2,3,4,12,13,20,21,29,व 30
मई 2011 में अशुभ तिथियां 1,9,10,18,19,27,व 28

जून 2011 में अशुभ तिथियां 5,6,7,14,15,23,14,व 25

जुलाई 2011 में अशुभ तिथियां 3,4,11,12,20,21,22,30,व 31

अगस्त 2011 में अशुभ तिथियां 7,8,9,17,18,26,27,व 28
सितम्बर 2011 में अशुभ तिथियां 4,5,13,14,15,23,व 24
अक्टुबर 2011 में अशुभ तिथियां 1,2,11,12,20,21,28,29,व 30

नवम्बर 2011 में अशुभ तिथियां 7,8,16,17,18,25,व 26

दिसम्बर 2011 में अशुभ तिथियां 4,5,14,15,22,23,व 31

आप समस्या निदान के लिये सम्पर्क कर सकते है
प० राजेश कुमार शर्मा
भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र मोबाईल नम्बर 09359109683

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

30 को शनि पुष्य का मंगलकारी योग तीन दशक बाद अद्भुत योग: शनि पुष्य नक्षत्र

30 को शनि पुष्य का मंगलकारी योग तीन दशक बाद अद्भुत योग: शनि पुष्य नक्षत्र इस बार दिवाली से एक हफ्ते पहले 30 अक्टूबर,10 को पूर्ण शनि पुष्य नक्षत्र का मंगलकारी योग धनवर्षा करेगा और गृहस्थ जीवन में खुशहाली लाएगा, शनिवार को सप्तमी के साथ सुबह 7 बजे से ही अष्टमी भी शुरू हो जाएगी, जिससे कार्तिक माह का यह शनिवार सभी राशि के जातकों के लिए विशेष फलदायी रहेगा। यह शनिवार का है और इस दिन इस मुहूर्त में की जाने वाली खरीदारी सुख, शांति व समृद्धिकारक रहेगी। बात पुष्य नक्षत्र की नहीं, शनि-पुष्य योग की है। इस साल दिवाली से एक हफ्ते पहले यानी 30 अक्टूबर 2010 को पूर्ण शनि पुष्य नक्षत्र योग बन रहा है। ये बेहद दुर्लभ योग है।

शनि ग्रह को न्याय का देवता माना जाता है। शनि एक क्रूर ग्रह है, साढ़ेसाती और ढैय्या में प्रभावित व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस वर्ष शनिवार 30 अक्टूबर 2010 को विशेष योग शनि पुष्य नक्षत्र योग बन रहा है। यह शनि की कृपा दिलाने वाला योग है।

वैसे तो हर 27 दिन में पुष्य नक्षत्र का योग बनता है परंतु दीपावली पूर्व आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे अधिक शुभ माना जाता है। यह योग जिस वार को आता है, उसके अनुसार फल प्रदान करता है। इस वर्ष यह योग शनिवार को आ रहा है, जो कि शनि की कृपा बरसाएगा। इस दिन शनि दोष से पीडि़त लोगों को शनि की पूजा करनी चाहिए और शनि संबंधी दान करने से कई परेशानियों से निजात मिलेगी।

शनि पुष्य नक्षत्र का योग पूर्व में सन् 1980 में आया था। इस वर्ष 30 अक्टूबर का दिन शनि से संबंधित कार्य करने वाले लोगों को विशेष लाभ प्राप्त होगा। जो व्यक्ति टेक्नोलॉजी या आइटी क्षेत्र, वाहन, लौहा, मशीनरी, न्याय क्षेत्र से जुड़े हैं उन्हें शनि के विशेष आराधना करनी चाहिए। इस दिन शनि देव को तेल चढ़ाएं और हनुमान चालिसा का पाठ करें। ऐसा करने पर सभी राशि वालों को शनि की कृपा प्राप्त होगी। इस दिन भूमि-भवन के नए सौदे विशेष फायदा देने वाले होंगे।

इस पुष्य मुहूर्त में जमीन या फ्लेट खरीदना, गृहप्रवेश, सभी वाहन, लोहे के सामान या फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम, मोबाइल, गारमेंट्स, बर्तन व सोने व चांदी के आभूषणों की खरीदी करना अतिशुभ रहेगा। इस दिन मुहूर्त के अनुसार सभी भौतिक सुविधाओं के सामानों की खरीदी की जा सकती है। वैसे आमतौर पर शनिवार को लोहा खरीदना शुभ नहीं माना जाता है, परन्तु इस दिन पूर्ण पुष्यनक्ष्त्र होने से सभी तरह के वाहनों और स्टील के सामानों की खरीद करना भी शुभ रहेगा। इस साल 3 नवंबर को धनतेरस से पहले शनि पुष्य पर खरीदी का एक और महायोग होने से शुभ योग है

12 राशियों पर शनि पुष्य याग का प्रभाव क्या रहेगा

मेष: पूरे दिन सर्वश्रेष्ठ व फलदायी, सफलता मिलेगी महत्वपूर्ण कार्यों में आ रहे विघ्न दूर होंगे।

वृष: मध्यमश्रेणी, मामूली अड़चन के बाद अचानक सुविधा मिलेगी। रूके हुऐ कार्य बनेगे अधिकारी वर्ग साथ देगा

मिथुन: मंगलकारी, धनलाभ का योग, नए संबंध बनेंगे। मकान-जमीन आदि खरीदने की संभावना है।

कर्क: जन्म से ही पुष्य,संतान,पदोन्नति, कार्य पूरे होंगे। पुष्य नक्षत्र तो कर्क राशि वालों के लिए सर्वाधिक शुभ होता है इसलिए संतान,पदोन्नति, जैसे कार्य पूरे होंगे। नयी परियोजना बनेंगी,जो निश्चित ही सफल होंगी।

सिंह: मन की अशांति व बाधाएं दूर होगी, नए दोस्त बनेंगे, जो भविष्य में आर्थिक तौर पर लाभ

कन्या: धन की सुविधा मिलेगी, विवाद से बचें।प्रेम सम्बन्धो मे तनाव बन सकता है

तुला: पूर्ण मंगलकारी, महिलाओं के लिए फलदायी सभी अटके काम बनेंगे, संतान संबंधी समस्याएं दूर होंगी

वृश्चिक: धनलाभ, अशुभ समाचार भी मिल सकता है, यात्रा टालें।

धनु: मंगलकारी, नए समाचार मिलेंगे, कार्य पूरे होंगे,पदोन्नति, आर्थिक तरक्की नए समाचार मिलेंगे।

मकर: आपसी विवाद से बचें, लड़ाई झगड़ें से दूर रहें यात्रा में सावधानी बरतें

कुंभ: मिलाजुला लेकिन पूर्ण सफल, कुछ अटके काम बनेंगे। नए मित्र बनेंगे। प्रॉपटी में पैसा लगाने की गलती न करें

मीन: पूर्णदृष्टि, यात्रा योग, धनलाभ होगा,अटका धन भी वापस मिलेगा। वाहन की खरीदारी संभव है।

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

Jyotishachayoan and take advantage of the experience.ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें।

प्रिय मित्रो/बहनो
आज नेट के माध्यम से सम्पर्क करना आसान होगया है जिसका लाभ सभी को उठाना चाहियें हम भी इस क्रम में हें और आप तक अपने सस्थांन / केन्द्र के जन कल्याण के विचारो से आपको अवगत करा रहें हैं। चाहते हैं कि आप हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें। हिन्दु शास्त्रो में कहां गया हैं नवरात्रो से लेकर गोवर्धन के पश्चात तक संसार को चलाने वाले सभी देवी देवता धरती पर रहकर जनकल्याण के कार्यो को करते हैं तथा उन भक्तो की सुनते हैं जो उन्हे अपने कष्टो के निवारणार्थ पुकारते हैं। यदि आप अपने लग्न चक्र , राशि के आधार पर जानना चाहते है कि आपको दीपावली पर क्या करना चाहिये जिससे आपके घर में लक्ष्मी का सदा निवास करे, प्रसन्न रहे तो हमारे को मेल पर नाम एवं जन्म तिथि जन्म समय जन्म स्थान भेजकर करे और ज्ञात करे। हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के द्धारा आपके नाम पिता के नाम व गोत्र व स्थान के साथ Sri Yantra,,Shiv Parivar,,Crystal Ganesh,,SriYantra(Mixed Metal),,Spatic Sri Yantra,,Spatic Ganesh,,Spatic Shiva Linga,,Spatic Ban Linga,,Spatic Crystal Nandi,,आदि यन्त्रो को वैदिक मन्त्रों के उच्चाण के साथ प्राण प्रतिष्ठा की जाती हैं। mo--09359109683

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बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

शारदीय नवरात्र दिनांक शुक्रवार 8 अक्टूबर, 2010 से आरंभ

दुर्गा-सप्तशती के पाठों को करके कोई भी भक्त मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है।स्वस्थ्य जीवन, सुखद परिवार व शक्ति, शत्रु से विजय और आरोग्यता के लिए माँ भगवती की आराधना प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा व विश्वास के साथ करनी व करानी चाहिए। शारदीय नवरात्र दिनांक शुक्रवार 8 अक्टूबर, 2010 से आरंभ होकर शनिवार दिनांक 16 अक्टूबर, 2010 को सम्पन्न होंगे।

शारदीय नवरात्र में शक्ति की पूजा करते हैं। शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं। व्रती प्रतिपदा से नवमी तक व्रत करते हैं।

8 अक्टूबर शुक्रवार से नवरात्र प्रारंभ हो जाएंगे। घट स्थापना आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को चित्रा नक्षत्र एवं वैद्धति योग रहित समय में द्विस्वभाव लग्न प्रात: या मध्याह्न में की जाती है। इस वर्ष 8 अक्टूबर 2010 को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा है परन्तु उस दिन चित्रा नक्षत्र एवं वैद्धति योग रहित लग्न का अभाव है। ऐसी स्थिति में या तो लाभ का चौघडि़या में घट स्थापना करनी चाहिए या अभिजित मुहू‌र्त्त में घट स्थापना करनी चाहिए और उस दिन लाभ का चौघडि़या है प्रात: 7.30 बजे से 9 बजे तक और अभिजित मुहूर्त है 12 बजकर 15 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजे तक है। परंतु इस दिन 12 बजकर 30 मिनट पर शुक्र वक्री हो रहा है। इसलिए इससे पहले घट स्थापना होना अति आवश्यक है।

8 अक्टूबर 2010 शुक्रवार को अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11.36 से 12.24 के बीच है। अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित करने के लिये शुद्ध देशी घी गाय का घी हो तो सर्वोत्तम है प्रयोग करनी चाहिए।

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

साढे साति आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं


शनिदेव की माहदशा या साढे साति आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। शनिदेव प्रायः किसी को क्षति नहीं पहुंचाते लेकिन मतिभ्रम की स्थिति अवश्य पैदा करते है, ऐसी परस्थिति में शनि शांति के लिये उपाय रामबाण का कार्य करते हैं। शनिदेव से प्राप्त कष्टों से बचाव की जानकारियों के लिये आप भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर मेरठ कैन्ट से सम्पर्क कर सकते है।
ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को शनैश्चर कहा गया है। यह सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रहमाना गया है। यह ग्रहो में बड़ा है इसलिए यह एक राशि का भ्रमण करने में ढाई वर्ष तथा 12 राशियों का भ्रमण करने में लगभग 30 वर्ष का समय लगाता है। यह जैसा दिखता है, वैसा नहीं है। इसे एक उदासीन, निराशावादी, ढीठ और जिद्दी ग्रह भी माना गया है। शनि ग्रह की प्रकृति विशिष्ट है;हमारे धर्म ग्रन्थों में शनि को काना, बहराए, गूंगा, और अंधा माना गया है। शनि की गति मंद है। शनि की अपने पिता सूर्य से शत्रुता है।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

अंक ज्योतिष का वर्तमान रूप पाश्चात्य सभ्यता की ही देन है,

अंक ज्योतिष का वर्तमान रूप पाश्चात्य सभ्यता की ही देन है, जिसके अनुसार मूलांक का आधार जन्म तारीख है। तारीख के अंकों को, एक से अधिक अंक होने पर, जोड़ कर मूलांक निकाला जाता है।
अंक शास्त्र अर्थात् ‘न्यूमेरोलॉजी’ भविष्य कथन की एक पद्धति है। ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के बिना भी कई लोग इस शास्त्र का प्रयोग करते हैं। जन्मतिथि अथवा किसी खास अंक के ‘भाग्यशाली’ या लाभदायक सिद्ध होने पर लोग उसी तिथि को या अंक के आधार पर हर महत्वपूर्ण कार्य करने का प्रयास करते हैं ताकि उनका कार्य निर्विघ्न पूरा हो सके।
अंक शास्त्र से यह जाना जा सकता है कि आज का दिन आपके लिए कैसा रहेगा या किसी महीने की कौन सी तारीख आपके लिए अच्छी या बुरी रहेगी। इस तरह अंक शास्त्र का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे द्वारा अकं ज्योतिष के उपायो सहित जन्म कुन्डली बनाई जाती है,

प्रत्येक शनिवार को प्रातः

प्रत्येक शनिवार को प्रातः के समय बेलपत्र पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलकर शिवलिंग पर अर्पित करें, आपकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी। यह उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से शुरू करें। मनोकामना की पूर्ति के पश्चात् ईश्वर का धन्यवाद करें तथा मंदिर में प्रसाद चढ़ाएं।

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

विदेश यात्रा

चंद्र पर्वत से निकल कर शनि पर्वत की ओर जाने वाली रेखा विदेश यात्रा या विदेश से लाभ की सूचक होती है। ऐसी रेखा अक्सर आयात निर्यात का व्यवसाय करने वालों के हाथ में होती है।

बुधवार, 15 सितंबर 2010

चहल-पहल या गतिविधि ईशान में होनी चाहिए

वास्तु नियमों के अनुसार नैर्ऋत्य अन्य सभी कोणों से भारी और बंद होना चाहिए। चहल-पहल या गतिविधि ईशान में होनी चाहिए और नैर्ऋत्य स्थिर या रुका होना चाहिए। इसीलिए नैर्ऋत्य में भंडार गृह को सबसे अधिक मान्यता दी गई है। यदि नैर्ऋत्य में सीढ़ियां बना दी जाती हैं, तो यह कोण भारी और ऊंचा हो जाता है। लेकिन गतिविधि एवं किसी भी तल पर प्रवेश स्थान नैर्ऋत्य कोण हो जाता है। इसीलिए सीढ़ियां नैर्ऋत्य में शुभ नहीं होतीं, अपितु ईशान में सभी तलों पर सुप्रवेश प्रदान करती हैं।

बुधवार, 8 सितंबर 2010

किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो

किसी अगर किसी स्त्री जातिका का किसी कारणवश विवाह में विलम्ब हो रहा हो, तो नवरात्री में गौरी-पूजन करके निम्न मन्त्र का २१००० जप करना चाहिए-
“हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणी कान्त कान्तां सुदुर्लभाम।।”

शनिवार, 21 अगस्त 2010

रक्षा बन्धन का पर्व 24-08-2010 को है

श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षाबन्धन भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख त्यौहार है, जिस दिन बहनें अपनी रक्षा के लिए भाईयों की कलाई में राखी बाँधती है, गीता में कहा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योर्तिलिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।
रक्षा बन्धन का पर्व 24-08-2010 को है इस दिन भद्रा प्रात: 9-23 मिनट तक है और कहते है भद्रा में कोई शुभ कार्य नही करना चाहिये इस कारण बहनो को भाईयो के हाथो पर रक्षासूत्र 9-23 के पश्चात हि बांधना लाभ दायक होगा।
रक्षाबन्धन का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंततः इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। एक अन्य मान्यतानुसार राजा बालि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बालि के राज्य की रक्षा के लिये चले गये। तब लक्ष्मी जी ने ब्राह्मणी का रूप धारण कर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बालि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो राजा बालि ने लक्ष्मी जी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बालि ने भगवान इन्द्र से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दुःशासन द्वारा द्रौपदी-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। इसी प्रकार जब मुगल समा्रट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायँू ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख़्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। ऐसे ही न जाने कितने विश्वास के धागों से जुड़ा हुआ है राखी का पर्व।

बुधवार, 14 जुलाई 2010

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
महादेव, महादेव कहने वाले के पीछे-पीछे मैं (श्री कृष्ण) नाम श्रवण (सुनने) के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं, जो मनुष्य शब्द (महादेव, महादेव) का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है वह कोटि जन्म के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है। शिव शब्द कल्याणवाची है और कल्याण शब्द मुक्ति वाचक है मुक्ति भगवान शंकर से प्राप्त होती है, इस लिए भोले शंकर ‘‘शिव’’ कहलाते हैं। धन तथा बन्धुवों के नाश हो जाने के कारण शोक सागर में डुबा हुआ मनुष्य शिव शब्द का जब उच्चारण करता है तब सब प्रकार के कल्याण को प्राप्त करता है शिव वह मंगलमय नाम है जिस किसी की भी वाणी में रहता है वह करोडों जन्मों के पापों को नष्ट कर देते हैं। मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर कामनाओं की पूर्ति करने वाले महादेव शिव शंकर हैं इनके 16 सोमवार के व्रत भक्ति भावना के साथ रखता है उसकी कामना कभी अधुरी नहीं रहती है।
नारद मुनी ने ब्रहा्रा जी से पुछा कि कलयुग में मनुष्य के द्वारा भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने व इच्छा पूर्ति के लिए क्या कार्य किये जायें जो भोले शंकर जल्द प्रसन्न हो जायें और मनुष्यों को कष्टों से जल्द छुटकारा प्राप्त हो इस विषय पर शिव पुराण के रूद्र संहिता के 14 वें अध्याय में अन्न, फूल व जलधाराओं के महत्व को समझाया गया है।
- जो व्यक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति की इच्छा रखता है उसे कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान शिव की पुजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति आयु की इच्छा रखता है वह एक लाख दुर्वाओं के द्वारा पूजन करें।
- जो पुत्र की इच्छा रखता है वह धतुरे के एक लाख फूलों से पूजा करें यदि लाल डंठल वाले धतुरे से पूजन हो तो अति शुभ फल दायक है।
- जो व्यक्ति यश की प्राप्ति चाहता है उसे एक लाख अगस्त्य के फूलों से पूजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान शिव शंकर की पूजा करते हैं उन्हें भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते है। सफेद आंखे, अपमार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों से पूजा करने पर भी भोग व मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग सुलभ होते हैं।
- जो व्यक्ति चमेली से शिव जी की पूजा करते हैं उन्हें वाहन सुख की प्राप्ति होती है।
- जिन व्यक्तियों को पत्नी सुख प्राप्ति में बाधाऐं उत्पन्न होती हों उन्हें भगवान शंकर की बेला के फूलों से पूजन करना चाहिए भगवान शिव की कृप्या से अत्यन्त शुभ लक्ष्ण पत्नी की प्राप्ति होती है और इसी प्रकार स्त्रीयों को पति की प्राप्ति होती है।
- जूही के फूलों से शिव शंकर का पूजन किया जाये तो अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
- कनेर के फूलों से पूजन करें तो वस्त्रों की प्राप्ति होती है।
- शेफालिका या सेदुआरि के फूलों से पूजन किया जाये तो मन सदेव निर्मल रहता है।
- हार सिंगार के फूलों से जो व्यक्ति शिव पूजन करें उसको सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
उपरोक्त कार्य शिव मूर्ति के समक्ष किये जाने चाहिए।
- तिलों के द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियां दिये जाने से बडे बडे पातकों का नाश होता है।
- गेंहु से बने पकवान से भगवान शंकर की पुजा उत्तम मानी गई है। वंश की वृद्धि होती है।
- जो व्यक्ति मूंग से पूजा करते हैं उन्हें भगवान शंकर सुख प्रदान करते हैं।
- प्रियंगु (कंगनी) द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा भगवान शिव शंकर का पूजन करता है उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शान्ति के लिए जलधारा शुभ कारक कही गई है शत रूद्रिय मन्त्र से, रूद्री के ग्यारह पाठों से रूद्र मन्त्रों के जप से, पुरूषसूक्त से, छः ऋचा वाले रूद्रसूक्त से, महामृत्युज्जय मन्त्र से, गायत्री मन्त्र से, व शिव के शस्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अन्त में नमः पद जोड कर बने मत्रों के द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
जब व्यक्ति का मन अकारण ही उच्चट जाये, दुख बढ जाये, धर में कलह रहने लगे, उस समय व्यक्ति को उपरोक्त के अनुसार दूध की धारा शिव लिंग पर निरन्तर चढानी चाहिए।
- शिवलिंग पर सहस्त्रनाम मंत्रों के साथ धी की धारा चढाने से वंश की वृद्धि होती है।
- सुगन्धित तेल की धार शिवलिंग पर चढाने से भोगों की वृद्धि, शहद (मधु) से पूजा करने पर राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है।
- शिवलिंग पर ईख के रस की धार चढायी जाये तो भी सम्पूर्ण आन्नद की प्राप्ति होती है।
- गंगाजल की धारा शिवलिंग पर चढाने से भोग-मोक्ष दोनों फलों को देने वाली कही गई है और गंगाजल की धारा भगवान शिवशंकर को सर्व प्रिय है। जो भी जल आदि धाराऐं हैं वह महामृत्युज्जयमन्त्र से चढाई जानी चाहिए।
शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि श्रवण मास में किये गये पूजन व जल धाराओं से न केवल भगवान शिव की कृपा होती है बल्कि साधक पर मां गोरी, गणेश और लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। श्रद्धेय भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने लिखा है कि शिव की पूजा करके भी अपनी मुर्खतावश परम लाभ से व्यक्ति वच्चित रह जाता है। भगवान शिव शुद्ध सनातन, विज्ञानानन्दधन परब्रहा्र हैं, उनकी उपासना परमलाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए, सांसारिक लाभ हानि प्रारब्धवश होते रहते हैं इसके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। भगवान शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जायेंगें, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश हो जायेगा।

जन्म के शनि के अनुसार शनि का मुख्य फल मिलता है।

जन्म के शनि के अनुसार शनि का मुख्य फल मिलता है। जिसकी जन्म पत्रिका में ढैया शनि का संबंध शुभ प्रभावों से हो अथवा महादशा या अंतर्दशा शुभ हो, तो शनि का प्रभाव अशुभ नहीं होगा। यदि जातक को लघु कल्याणी शनि या साढे़साती शनि अशुभ हो और जन्मकुंडली में शनि अशुभ पाप पीड़ित हो, तो साढे़साती का फल बहुत ज्यादा शुभ होगा और ढैया शनि का फल उससे कुछ कम शुभ होगा। यह चिंता वृद्धि, अशांति, धन हानि, रोग, क्लेश करेगा। यदि जन्म का शनि उच्च का, स्वगृही, शुभ व वर्गोत्तमी हो, तो शुभ फल देगा। शनि अष्टमेश या मारकेश हो, तो उसकी साढे़साती या ढैया दशा अशुभ फलदायक होगी। जन्म का शनि कुंडली में लग्नेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर तीसरे, छठे या ग्यारहवें स्थान में हो, तो संपत्ति, सुख, व्यापार आदि में लाभकारी होता है।
शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय:
शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय, अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से बताए गए हैं जिनमें से कुछ उपायों का विवरण निम्नानुसार है।
-शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढे़साती या ढैया के दौरान मांस एवं मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- काले रंग के वस्त्र में 740 ग्राम काले उड़द और तांबे का सिक्का बांधकर बहते हुए पानी में बहाने से लाभ होता है।
- शनिवार को श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक व्रत करें।
- शनि से संबंधित वस्तुएं घर में स्थापित करें।
- लोहे की वस्तुएं दान करें।
- कर्क राशि वाले जातक तांबे का सिक्का मुख्य द्वारा के नीचे गाड़ें।
- शनि स्तोत्र का पाठ व जप करें।
- घर में भूरे पत्थर की शिला स्थापित करना शुभ है।
- शनि से संबंधित वस्तुएं (तेल, चमड़ा, तांबा, वस्त्र, लोहा, काले तिल आदि) दान में न लें।
- बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लें व उनकी सेवा करें।
- लोहे का बिना जोड़ वाला छल्ला दायें हाथ की बड़ी उंगली में पहनें।
- शुक्रवार की रात 750 ग्राम काले तिल भिगोकर सुबह शनिवार को काले घोड़े को खिलाएं।
- अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखें।
- पैतृक संपत्तियों का विक्रय किसी भी कीमत पर न करें।
- शनिवार को न तो लोहा खरीदें और न हीं बेचें।
- शनिवार को भी सूर्य को अर्घ्य दें।
- वृष राशि आदि में यदि साढ़ेसाती या ढैया हो, तो अमावस्या को किसी नाले में नीले फूल डालें।
- अपने मकान व बिस्तर के चारों कोनों पर लोहे की चार कीलें गाड़ें।
- घर के अंधेरे कमरों में लोहे के पात्रों में सरसों का तेल भरकर रखें।
- यदि संभव हो तो काला कुत्ता पालें।
- धन की रक्षा के लिए एक नारियल काले कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें।
- शनिवार को गुड़ में काले तिल के लड्डू बनाकर दान करें।
- शनिदोष निवारक यंत्र: किसी योग्य तांत्रिक या गुरु द्वारा प्रदत्त शनि दोष निवारक यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर घर में स्थापित करें या करवाएं। इसके अतिरिक्त इस यंत्र का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन व साधना कर गले या बाजू में बांधने से शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है।
- संपूर्ण बाधा मुक्ति यंत्र प्राप्त कर पूजा स्थल पर प्राणप्रतिष्ठित कर रखें एवं वहां नित्यप्रति धूप एवं दीप जलाएं।
- लाभकारी महिमा मंडित पारद माला: किसी योग्य तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित, महिमामंडित शुद्ध पारदमाला धारण करने से भी साढ़ेसाती, ढैया या शनि की दशा-अंतर्दशा के दोष निवारण में लाभ होता है।
- शनि दोष निवारक पिरामिड: किसी योग्य गुरु द्वारा निर्मित व प्राण-प्रतिष्ठित शनि पिरामिड का प्रयोग कर आप शनि की साढ़ेसाती या ढैया के दोष का निवारण कर सकते हैं।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

सूर्य-ग्रहण 11 जुलाई, 2010 को

भारतीय समय के अनुसार सूर्य-ग्रहण का समय 11 जुलाई, 2010 को 23:45 बजे से लेकर 12 जुलाई, 2010 को 2:20 बजे तक है। भारत में सूर्य ग्रहण दिखायी नहीं देगा,

शनिवार, 3 जुलाई 2010

नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है।
पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिर्ती नामक दानव के साथ हुआ था। इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ। जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था। कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया। लेकिन इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे। उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया। तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए। उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं। कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारा राहु उच्च राशि में विराजमान है और हमें लाभ दे रहा है परन्तु नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है। ज्योतिष शास्त्रों में राहु केतु को छाया ग्रह, तमो ग्रह, नैसर्गिक पाप ग्रह एवं सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाने वाला ग्रह माना गया है। राहु के मित्र बुध-शुक्र और शनि है केतु के मंगल सूर्य मित्र है वही मंगल-राहु का शत्रु सूर्य, चन्द्र , गुरू सम कहे गये है। राहु के दोष बुध दुर करता है। राहु का फल शनि वत है।
राहु तमो ग्रह होने से काली व बुरी वस्तुओं का स्वामी है- आलस्य, मलिनता कृशता, अवसाद आदि दोष राहु के माने जाते हैं चोरी, डकैती काला जादू, भूत प्रेत से कार्य कराने में राहु सक्षम है जन हानि में राहु का दोष माना जाता है।राहु का स्नेह प्रेम, सहयोग में बिलकुल यकिन नहीं इसे किसी प्रकार के बन्धन में बाधना भी सम्भव नहीं है, सामाजिक पारिवारिक, धार्मिक राजनैतिक व नैतिक सम्बन्धों में विरोधाभास स्थतियों को पैदा करने में राहु को गर्व महसूस होता है।
राहु प्रधान व्यक्ति अवमानना और अवज्ञा जैसे कार्य करने से पिछे नहीं हटते हैं।राहु स्वार्थी, सुख लिप्सा व उच्चाकांक्षा व्यक्ति के मन में उत्पन्न करता है राहु प्रधान वाले व्यक्ति सदैव अपने हित लाभ के विषय में ही सोचते हैं। राहु कि धातु शीशा है यह दक्षिण दिशा का स्वामी है।
- राहु को भौतिक सुख व महत्वाकाक्षी मानने के साथ-साथ कुन्डली में 3.6.10.11 भाव में शुभ माना गया है अन्य भावों में यह अनिष्टा प्रदान करता है। कुछ विद्वान राहु का गुरू व शुक्र के साथ सम्बन्धों का लाभ प्रद मानते हैं। आप अपनी जन्म कुन्डली में राहु के नक्षत्र का ज्ञान कर निम्न लिखित स्थितियों से अवगत हो सकते हैं कि राहु आपके लिये किस स्थितियों में विराजमान है।
सूर्य के नक्षत्र में स्थित राहु
सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा पर यदि राहु हो तो जातक को राहु की दशा या अंतर्दशा में उच्च ज्वर, हृदय रोग, सिर में चक्कर, शरीर में झुनझुनाहट, संक्रामक रोग, शत्रुवृद्धि धन हानि, गृह-कलह आदि का सामना करना पड़ता है। उसके मन में अपने भागीदारों के प्रति शंका रहती है। उसका स्थान परिवर्तन, दूर गमन, संक्रामक रोग आदि होते हैं। सूर्य, जो नक्षत्रेश है, के साथ राहु के होने तथा सूर्य के अशुभ 6, 8, 12 स्थान में होने से ऐसा होता है। लेकिन, सूर्य जब शुभ स्थिति में हो तो प्रोन्नति, राज लाभ, प्रसिद्धि, यश तथा नाम प्रतिष्ठा एवं सम्मान में वृद्धि होती है। सूर्य के साथ राहु होने से ग्रहण का योग का निर्माण होता है यदि 6, 8, 12 भाव में ये योग बने और दशा हो तो सर्वाधिक अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।
चंद्र के नक्षत्र में स्थित राहु
चंद्र स्वयं अशुभ स्थिति 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो और राहु उसके नक्षत्र में हो तो राहु के चंद्र के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में अशुभ फल मिलता है। ऐसी स्थिति में जातक की जल में डूबने से मृत्यु, शीत रोग, टी. बी. या स्नोफिलियां हो सकता है। इसके अतिरिक्त पत्नी के रोग ग्रस्त होने या उसकी अकाल मृत्यु के साथ-साथ जातक के अंगों में सूजन अनचाहे स्थान पर स्थानांतरण राजभय की संभावना रहती है।
यदि राहु चन्द्र के साथ 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो या किसी भी भाव में चन्द्रमा के साथ राहु के होने से ग्रहण योग का निर्माण होता है जो अशुभ माना गया है यदि मंगल साथ है तो कष्ट कुछ कम हो जाते हैं।
मंगल के नक्षत्र में राहु
राहु मंगल के नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा पर होता है तो धन की हानि, अग्नि, चोर तथा डाकू के द्वारा नुकसान, मुकदमे में पराजय तथा पैसे की बर्वादी होती है। इस अवधि में किसी से शत्रुता, मित्र अथवा पार्टनर से धोखा मिलना, पुलिस या अन्य उच्चाधिकारी से विवाद आदि होते हैं। लेकिन मंगल यदि शुभ स्थिति में हो तो भूमि, भवन, और वाहन का लाभ, निर्माण कार्य, ठेकेदारी, बीमा, एजेंसी, जमीन जायदाद के कारोबार आदि से लाभ होता है।
बुध के नक्षत्र में राहु
राहु बुध के नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती पर हो तो व्यक्ति लोकप्रिय होता है, उसकी आय के कई साधन होते हैं, शासन सत्ता की प्राप्ति, दूर-दराज के लोगों से परिचय तथा उनके साथ कार्य करने की स्थिति बनती है। उसे संतान, वाहन आदि का सुख मिलता है। यदि बुध दुःस्थान 6, 8, 12 भाव में हो तो व्यक्ति को धोखेबाज, छली तथा कपटी बना देता है। उसकी बात पर लोग विश्वास नहीं करते। उसे थायरायड रोग भी हो सकता है।
बृहस्पति के नक्षत्र में राहु
राहु के बृहस्पति के नक्षत्र पुनर्वसु विशाखा या पूर्वभाद्र पर अवस्थित होने से शत्रु पर विजय और चुनाव में जीत होती है। इसके अतिरिक्त लक्ष्मी का आगमन, संतान की उत्पत्ति, परिवार में हर्ष, उल्लास, उमंग एवं सुख में वृद्धि आदि फल मिलते हैं। किंतु बृहस्पति के अशुभ भाव 6, 8, 12 या प्रभाव में होने पर व्यक्ति को अपमान, पराजय, संपत्ति की हानि, कार्य में बाधा बलात्कार जैसे आरोपों आदि का सामना करना पड़ता है।
शुक्र के नक्षत्र में राहु
राहु जब शुक्र के नक्षत्र भरणी, पूर्व फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा पर हो तो वाहन तथा मूल्यवान और सुंदर वस्तुओं का क्रय सुंदर फर्नीचर आदि से घर की सज्जा, आभूषण आदि का क्रय, संबंधियों से मधुर संबंध, स्त्री सुख, धन-आगमन, आदि परिणाम मिलते हैं। कन्या संतान सुख भी इसी अवधि में होता है। लेकिन शुक्र अशुभ स्थिति 6, 8, 12 में हो तो किसी स्त्री के द्वारा ब्लैकमेलिंग, बलात्कार के आरोप यौन रोग, स्त्री के कारण धन की क्षति आदि की संभावना रहती है।
शनि के नक्षत्र में राहु
राहु जब शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा या उत्तरभाद्र पर हो तो व्यक्ति अपयश, चोट, किसी गंभीर रोग, गठिया या वात से पीड़ा, पित्तजन्य दोष आदि से ग्रस्त तथा मंदिरा का व्यसनी हो सकता है। अपने पार्टनर के प्रति उसके मन में गलतफहमी रहती है। उसके तलाक स्थान परिवर्तन आदि की संभावना भी रहती है।
राहु के नक्षत्र में राहु
यदि राहु अपने नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा पर हो तो व्यक्ति मानसिक कष्ट, विष भय, स्वास्थ्य में गिरावट, जोड़ों के दर्द, चोट, भ्रम, दुश्ंिचताओं आदि से ग्रस्त होता है। इस अपधि में उसके परिवार में किसी बुजुर्ग की मृत्य,ु जीवन संगिनी का वियोग होता है। इसके अतिरिक्त उसके स्थान परिवर्तन और अपयश की संभावना रहती है। किंतु यदि राहु शुभ ग्रह की महादशा के अंतकाल में होता है तो आनंद, प्रोन्नति तथा विदेश भ्रमण आदि सुयोग देता है।
केतु के नक्षत्र में राहु
राहु केतु के नक्षत्र अश्विनी, मघा या मूल में हो तो जातक शंकालु, स्वभाव का होता है। उदसे सांप का भय होता है और उसकी हड्डी के टूटने तथा बवासीर की संभावना रहती है। उसे जीवन साथी से परेशानी तथा बड़े लोगों से शत्रुता रहती है और उसके धन तथा प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि जन्मकुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो तो व्यक्ति बहुमूल्य आभूषणों की खरीदारी करता है और उसे विवाह, प्रोन्नति, भूमि-भवन आदि का सुख प्राप्त होता है।
राहु कि शान्ति के लिए ओंम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवें नमः मंत्र का 18 हजार जप रात्रि के समय 4 माला प्रतिदिन करके 45 दिन में जप पूर्ण करना चाहिए उसके पश्चात दशांश से हवन राहु के हवन में दूर्वा घास की आहुतियां अवश्य देनी चाहिए। राहु का दान के- तिल काले, मूली, सरसों का तेल नीले या काले वस्त्र या कम्बल, कच्चा कोयला, सतनजा, गुरूवार शाम को दन हवन करना चाहिए

मंगलवार, 29 जून 2010

वह सफलता नही मिलेगी जो कंगना रनौत ने अपने विचारो मे सजो रखी है

ज्योतिषी ने बदली कंगाना की फिल्म की रीलिज डेट,29 जुलाई 2010 को संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, गणाधिप चतुर्थी व्रत है। ज्योतिषी के कहने पर कंगना रनौत ने अपनी फिल्म वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई की रिलीज तारीख बदलवा दी है। निर्माता एकता कपूर की यह फिल्म अब 30 जुलाई के बजाए 29 जुलाई को रिलीज होगी। कंगना रनौत के ज्योतिषी के अनुसार 29 जुलाई को रिलीज होने से फिल्म को अच्छी सफलता मिलेगी। यह बात जानकर कंगना ने एकता को फोन पर सारी बात बताई। एकता भी ज्योतिषियों में विश्वास रखती है। यह फिल्म अगर 12-40 से पहले सिनेमा घरो मे चली तो वह सफलता प्राप्त नही होगी जिसकी आशा कि जा रही है कहां जाता है कि ग्रह अपना खेल खेलते है और वह अपना कार्य करेगे बस देखना यह है कि 29 जुलाई 2010 के प्रदर्शन पर क्या होगा यह देखा जाता कि फिल्म के बारे मे सबसे पहले प्रचार कब किया गया मुझे मेरे मित्रो ने इस बारे में जो बताया वह समय ठिक नही था राहु काल मे प्रचार प्रारम्भ किया गया ,वह सफलता नही मिलेगी जो कंगना रनौत ने अपने विचारो मे सजो रखी है

रविवार, 6 जून 2010

शनि की साढ़ेसाती ढैया, दशा, अंतर्दशा आदि में अनेक दुख भोगने पड़ते हैं अमावस्या पर

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या पर मनाई जाने वाली शनि जयंती इस बार शनिवार को मनेगी। शनैश्चर जयंती का संयोग चार साल बाद बना है। शनि की जयंती 12 जून को है। इस दिन सर्वार्थसिद्धि अमृतयोग भी बन रहा है। 2003 और उसके बाद 2006 में शनिवार को शनि जयंती आई थी। इस साल के बाद अगला योग सन् 2013 में बनेगा। कन्या तुला राशि पर साढ़े साती तो मिथुन और कुंभ राशि पर ढैया चल रही है। इन राशि वालों को शनि महाराज का पूजन कर तेल से अभिषेक करना चाहिए। शनि साधकों के लिए भी यह विशेष दिन है। इस दिन पूजा-अभिषेक करने से शनि महाराज की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शनि जयंती पर हनुमानजी की आराधना और पीपल-बरगद के पूजन का भी खास महत्व है।
शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय:
शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय, अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से बताए गए हैं जिनमें से कुछ उपायों का विवरण निम्नानुसार है।
- शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढे़साती या ढैया के दौरान मांस एवं मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- काले रंग के वस्त्र में 740 ग्राम काले उड़द और तांबे का सिक्का बांधकर बहते हुए पानी में बहाने से लाभ होता है।
- शनिवार को श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक व्रत करें।
- शनि से संबंधित वस्तुएं घर में स्थापित करें।
- लोहे की वस्तुएं दान करें।
- शनि स्तोत्र का पाठ व जप करें।
- घर में भूरे पत्थर की शिला स्थापित करना शुभ है।
- शनि से संबंधित वस्तुएं (तेल, चमड़ा, तांबा, वस्त्र, लोहा, काले तिल आदि) दान में न लें।
- बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लें व उनकी सेवा करें।
- लोहे का बिना जोड़ वाला छल्ला दायें हाथ की बड़ी उंगली में पहनें।
- शुक्रवार की रात 750 ग्राम काले तिल भिगोकर सुबह शनिवार को काले घोड़े को खिलाएं।
- अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखें।
- पैतृक संपत्तियों का विक्रय किसी भी कीमत पर न करें।
- शनिवार को न तो लोहा खरीदें और न हीं बेचें।
- शनिवार को भी सूर्य को अघ्र्य दें।
- वृष राशि आदि में यदि साढ़ेसाती या ढैया हो, तो अमावस्या को किसी नाले में नीले फूल डालें।
- अपने मकान व बिस्तर के चारों कोनों पर लोहे की चार कीलें गाड़ें।
- घर के अंधेरे कमरों में लोहे के पात्रों में सरसों का तेल भरकर रखें।
- यदि संभव हो तो काला कुत्ता पालें।
- धन की रक्षा के लिए एक नारियल काले कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें।
- शनिवार को गुड़ में काले तिल के लड्डू बनाकर दान करें।
- शनिदोष निवारक यंत्र: किसी योग्य तांत्रिक या गुरु द्वारा प्रदत्त शनि दोष निवारक यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर घर में स्थापित करें या करवाएं। इसके अतिरिक्त इस यंत्र का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन व साधना कर गले या बाजू में बांधने से शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है।
- शनि पीड़ा निवारक यंत्र को किसी पत्थर के चैकोर टुकड़े पर काली स्याही से लिखकर रोगी अथवा शनि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से सात बार घुमाकर ‘‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ मंत्रा का उच्चारण करते हुए किसी कुएं में डालने से शनि की दशा, अंतर्दशा, ढैया या साढ़ेसाती की पीड़ा का शमन होता है। जो व्यक्ति यह प्रयोग करेगा उसे अपनी सुरक्षा के लिए बाद में सवा पाव मदिरा बहते पानी में प्रवाहित करनी पड़ेगी, अन्यथा उसे कष्ट होगा।
- संपूर्ण बाधा मुक्ति यंत्र प्राप्त कर पूजा स्थल पर प्राणप्रतिष्ठित कर रखें एवं वहां नित्यप्रति धूप एवं दीप जलाएं।
- लाभकारी महिमा मंडित पारद माला: किसी योग्य तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित, महिमामंडित शुद्ध पारदमाला धारण करने से भी साढ़ेसाती, ढैया या शनि की दशा-अंतर्दशा के दोष निवारण में लाभ होता है।
- शनि दोष निवारक पिरामिड: किसी योग्य गुरु द्वारा निर्मित व प्राण-प्रतिष्ठित शनि पिरामिड का प्रयोग कर आप शनि की साढ़ेसाती या ढैया के दोष का निवारण कर सकते हैं।
- शनि दोष निवारक पारद शिवलिंग के अचूक प्रयोग: शनि की महादशा, अंतर्दशा, ढैया एवं साढेसाती तथा पंचम शनि के दोष निवारण हेतु पारद शिवलिंग की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पारद शिवलिंग की उपासना व्यक्ति को निरोगी बनाती है। असाद्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह एक अचूक उपाय है। जिस व्यक्ति को मारकेश की दशा चल रही हो, उसके लिए यह प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।
प्रयोग विधि: रोग से मुक्ति व शनि की साढे़साती तथा अन्य सभी दशाओं की पीड़ा से रक्षा के उद्देश्य से पारद शिवलिंग की अर्चना करने वाले साधकों को रात्रि में सवा नौ बजे के उपरांत सवा पाव दूध से पारद शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के समय निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
मंत्र: ‘‘ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः पारदेशंय्यजामहे,
सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। ॐ र्वारुकमिव बंधनान्मृत्यो र्मुक्षीय मा{मृतात् भूर्भुवः स्वः ॐ जूं सः हौं ॐ।।’’
- शनिदोष निवारण हेतु हनुमान प्रयोग: दीपावली या शनिपुष्य या किसी भी शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में तिल का सवा किलो तेल चढ़ाएं तथा निम्नलिखित मंत्र का यथासंभव जप करें।
मंत्र: ‘‘ॐ ऐं ओं ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रः ॐ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत, प्रेत पिशाच, ब्रह्म राक्षस, शाकिनी डाकिनी, यक्षिणी, पूतना, मारी, महामारी राक्षस, भैरव, बेताल, ग्रह, राक्षसादि कान्, शिक्षय, महा माहेश्वर रुद्रावतार, ॐ ह्रं पफट् स्वाहा।’’
- रत्न धारण द्वारा: किसी योग्य तांत्रिक गुरु या रत्न विशेषज्ञ से 5 से 9 मासा तक का शुद्ध नीलम प्राप्त कर किसी भी शनिवार को या शनि पुष्य नक्षत्र या शनि जयंती को धारण करना चाहिए। यदि जन्मकुंडली में शनि प्रधान ग्रह हो अथवा, यदि सूर्य के साथ बैठा हो, अथवा यदि मेष आदि राशि में स्थित हो अथवा यदि अपने भाव से छठे या आठवें स्थान में स्थित हो अथवा यदि जातक का जन्म मेष, वृष, तुला, अथवा वृश्चिक लग्न में हुआ हो तो उस स्थिति में भी नीलम धारण किया जा सकता है।
- जड़ी-बूटी: किसी भी शनिवार को अथवा शनि पुष्य, रवि पुष्य, गुरु पुष्य, शनि जयंती, शनि पूर्णिमा या शनि अमावस्या को अथवा दशहरे, दीपावली, होली या किसी भी ग्रहण के समय शमी वृक्ष की जड़ तांत्रिक विधि विधान द्वारा प्राप्त कर तथा तांत्रोक्त विधि से ही पूजा-अर्चना कर गले या दायीं भुजा में शनि स्तोत्र का जप करते हुए धारण करने से सभी प्रकार की शनि पीड़ा में लाभ होता है। यह प्रयोग अनुभूत है।
आम धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती ढैया, दशा, अंतर्दशा आदि में अनेक दुख भोगने पड़ते हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। शनि एक ओर शुभ स्वगृही व मित्र राशियों में शुभ फल प्रदान करता है, तो दूसरी ओर क्रूर होने, वक्री होने, शत्रु ग्रह में एवं शत्रु राशि में होने पर अशुभ फल प्रदान करता है। यदि किसी जातक की शनि की महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो और उस अवधि में जातक की राशि में ढैया या साढ़ेसाती शनि का प्रवेश हो जाए, तो जातक के लिए वह समय बहुत ही शुभ होता है।