मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

सदा शुभ है होली

सदा शुभ है होली
यदि आपको बार-बार पैसे का नुकसान हो रहा हो तो आप होलिका दहन की शाम को मुख्यद्वार पर दोमुखी आटे का दीपक बनाएं, पहले चौखट पर थोड़ा सा गुलाल छिड़ककर उस पर दोमुखी दीपक जला कर रखें। साथ ही मन में अपनी आर्थिक हानि रोकने के लिए ईश्वर से निवेदन करें। जब दीपक जल चुके, ठंडा हो जाए तो उसे जलती होली पर रख आएं।
-घर में यदि कोई बीमार हो तो आप होली की रात्रि में चार गोमती चक्र लेकर शुद्ध करके दाएं हाथ की मुट्ठी में बांधकर सदस्य की बीमारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हुए ग्यारह परिक्रमा करें। होलिका को एक जोड़ा लौंग, घी में डुबोकर दो पान के पत्ते व थोड़ी सी मिश्री अर्पित करें। गोमती चक्र लाकर चांदी की तार में पीड़ित व्यक्ति के पलंग के चारों पाये में बांध दें। गंभीर से गंभीर रोग में फायदा होगा।
- यदि संतानपक्ष से चिंता हो तो संतान का सुख प्राप्त करने के लिए मंदिर में भगवान की पोशाक बनवाएं। होली के दिन यह संकल्प लें। आपकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।
- होली दहन के अगले दिन सर्वप्रथम अपने ईष्ट को गुलाल अर्पित करें। अपने निवास के ईशान कोण का पूजन कर गुलाल अर्पित करें। इससे निवास के सभी वास्तुदोष दूर हो जाएंगे। मित्रों के साथ होली खेलने के लिए हरे रंग का प्रयोग अवश्य करें।
- रोगमुक्त होने के लिए चौदह रुपए की सब्जी 23 बुधवार तक काली गाय को खिलाएं। होली के दिन से यह उपाय शुरू करें।
- व्यापार में तरक्की हो व कामों में रुकावट न आए, इसके लिए होली वाले दिन गणोश रुद्राक्ष धारण करें। ú गणपतये नम: का जाप मूंगे की माला से करें व चमत्कारी प्रभाव देखें।
- चांदी की डिबिया में शुद्ध बासमती चावल भरकर और ú नमो विष्णवे नम: जपते हुए होली वाली रात्रि को घर के भंडारगृह में रखने से भंडारघर सदा भरा रहता है। तिंजोरी में डिबिया को लाल कपड़े से बांधकर रखने पर तिजोरी कभी खाली नहीं रहती। धन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
- गृहक्लेश निवारण हेतु होली के दिन गौरीशंकर रुद्राक्ष पहनें। होली से शुरू करके प्रतिदिन तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं।
- भाग्यवृद्धि के लिए हनुमानजी के मंदिर में एक नागरपात्र (डंठल सहित बिना चूने कत्थे का), ग्यारह लोंग, एक बूंदी का लड्डू वर्क लगाकर, एक अनार चढ़ाएं। होली के दिन से आरंभ कर ग्यारह मंगलवार तक करें।
- होली के दिन गाय के आगे बांसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण का चित्र घर, दुकान या कार्यालय में लगाएं। इसके प्रभाव से कर्ज नहीं बढ़ेगा, बल्कि धीरे-धीरे उतर जाएगा।

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं शिव पुराण के रूद्र संहिता के 14 वें अध्याय में अन्न, फूल जलधाराओं के महत्व को समझाया गया है।
महादेव, महादेव कहने वाले के पीछे-पीछे मैं (श्री कृष्ण) नाम श्रवण (सुनने) के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं, जो मनुष्य शब्द (महादेव, महादेव) का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है वह कोटि जन्म के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है। शिव शब्द कल्याणवाची है और कल्याण शब्द मुक्ति वाचक है मुक्ति भगवान शंकर से प्राप्त होती है, इस लिए भोले शंकर ‘‘शिव’’ कहलाते हैं। धन तथा बन्धुवों के नाश हो जाने के कारण शोक सागर में डुबा हुआ मनुष्य शिव शब्द का जब उच्चारण करता है तब सब प्रकार के कल्याण को प्राप्त करता है शिव वह मंगलमय नाम है जिस किसी की भी वाणी में रहता है वह करोडों जन्मों के पापों को नष्ट कर देते हैं।
मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर कामनाओं की पूर्ति करने वाले महादेव शिव शंकर हैं इनके 16 सोमवार के व्रत भक्ति भावना के साथ रखता है उसकी कामना कभी अधुरी नहीं रहती है।
नारद मुनी ने ब्रहा्रा जी से पुछा कि कलयुग में मनुष्य के द्वारा भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने व इच्छा पूर्ति के लिए क्या कार्य किये जायें जो भोले शंकर जल्द प्रसन्न हो जायें और मनुष्यों को कष्टों से जल्द छुटकारा प्राप्त हो इस विषय पर शिव पुराण के रूद्र संहिता के 14 वें अध्याय में अन्न, फूल व जलधाराओं के महत्व को समझाया गया है।
- जो व्यक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति की इच्छा रखता है उसे कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान शिव की पुजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति आयु की इच्छा रखता है वह एक लाख दुर्वाओं के द्वारा पूजन करें।
- जो पुत्र की इच्छा रखता है वह धतुरे के एक लाख फूलों से पूजा करें यदि लाल डंठल वाले धतुरे से पूजन हो तो अति शुभ फल दायक है।
- जो व्यक्ति यश की प्राप्ति चाहता है उसे एक लाख अगस्त्य के फूलों से पूजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान शिव शंकर की पूजा करते हैं उन्हें भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते है। सफेद आंखे, अपमार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों से पूजा करने पर भी भोग व मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग सुलभ होते हैं।
- जो व्यक्ति चमेली से शिव जी की पूजा करते हैं उन्हें वाहन सुख की प्राप्ति होती है।
- जिन व्यक्तियों को पत्नी सुख प्राप्ति में बाधाऐं उत्पन्न होती हों उन्हें भगवान शंकर की बेला के फूलों से पूजन करना चाहिए भगवान शिव की कृप्या से अत्यन्त शुभ लक्ष्ण पत्नी की प्राप्ति होती है और इसी प्रकार स्त्रीयों को पति की प्राप्ति होती है।
- जूही के फूलों से शिव शंकर का पूजन किया जाये तो अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
- कनेर के फूलों से पूजन करें तो वस्त्रों की प्राप्ति होती है।
- शेफालिका या सेदुआरि के फूलों से पूजन किया जाये तो मन सदेव निर्मल रहता है।
- हार सिंगार के फूलों से जो व्यक्ति शिव पूजन करें उसको सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
उपरोक्त कार्य शिव मूर्ति के समक्ष किये जाने चाहिए।
- तिलों के द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियां दिये जाने से बडे बडे पातकों का नाश होता है।
- गेंहु से बने पकवान से भगवान शंकर की पुजा उत्तम मानी गई है। वंश की वृद्धि होती है।
- जो व्यक्ति मूंग से पूजा करते हैं उन्हें भगवान शंकर सुख प्रदान करते हैं।
- प्रियंगु (कंगनी) द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा भगवान शिव शंकर का पूजन करता है उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शान्ति के लिए जलधारा शुभ कारक कही गई है शत रूद्रिय मन्त्र से, रूद्री के ग्यारह पाठों से रूद्र मन्त्रों के जप से, पुरूषसूक्त से, छः ऋचा वाले रूद्रसूक्त से, महामृत्युज्जय मन्त्र से, गायत्री मन्त्र से, व शिव के शस्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अन्त में नमः पद जोड कर बने मत्रों के द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
जब व्यक्ति का मन अकारण ही उच्चट जाये, दुख बढ जाये, धर में कलह रहने लगे, उस समय व्यक्ति को उपरोक्त के अनुसार दूध की धारा शिव लिंग पर निरन्तर चढानी चाहिए।
- शिवलिंग पर सहस्त्रनाम मंत्रों के साथ धी की धारा चढाने से वंश की वृद्धि होती है।
- सुगन्धित तेल की धार शिवलिंग पर चढाने से भोगों की वृद्धि, शहद (मधु) से पूजा करने पर राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है।
- शिवलिंग पर ईख के रस की धार चढायी जाये तो भी सम्पूर्ण आन्नद की प्राप्ति होती है।
- गंगाजल की धारा शिवलिंग पर चढाने से भोग-मोक्ष दोनों फलों को देने वाली कही गई है और गंगाजल की धारा भगवान शिवशंकर को सर्व प्रिय है। जो भी जल आदि धाराऐं हैं वह महामृत्युज्जयमन्त्र से चढाई जानी चाहिए।
शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि श्रवण मास में किये गये पूजन व जल धाराओं से न केवल भगवान शिव की कृपा होती है बल्कि साधक पर मां गोरी, गणेश और लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है।
श्रद्धेय भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने लिखा है कि शिव की पूजा करके भी अपनी मुर्खतावश परम लाभ से व्यक्ति वच्चित रह जाता है। भगवान शिव शुद्ध सनातन, विज्ञानानन्दधन परब्रहा्र हैं, उनकी उपासना परमलाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए, सांसारिक लाभ हानि प्रारब्धवश होते रहते हैं इसके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। भगवान शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जायेंगें, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश हो जायेगा।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

प्यार के प्रस्ताव करने का कोई समय या दिन नहीं होता

वेलेन्टाइन डे एक ऐसा दिन है जिस दिन प्रेमी /प्रेमिका एक दूसरे से अपने प्यार का इजहार करते हैं. वैसे प्यार के प्रस्ताव करने का कोई समय या दिन नहीं होता और आप जब चाहें कभी भी प्रेम का प्रस्ताव अपने प्रेमी /प्रेमिका के सम्मूख रख सकते हैं पर इस दिन की कुछ अलग ही बात है। ये दिन संत वेलेन्टाइन के नाम पर मनाया जाता है. इस दिन प्रेमी प्रेमिकाओं के बीच उपहार और ग्रीटिंग कार्ड्स का आदान प्रदान के साथ लाल गुलाब के फूल प्रेमी/प्रेमिका को दिये जाने का प्रचलन है लाल गुलाब प्रेम का प्रतिक माना गया हैं .
यह पर्व इंग्लैण्ड में सन् 1400 से 14 फरवरी को मनाया जाना प्रारम्भ हुआ, प्राचीन काल में इस दिन युवा प्रेमी अपने प्यार का इजहार पत्रों या संदेशों के माध्यम से अपनी प्रेमिका से करते थे. सभी प्रकार के राजनैतिक सामाजिक, जाति और धार्मिक बंधनों से मुक्त बड़े युवा तथा बच्चे सभी इसे बड़े प्रेम से मनाते हैं. युवा प्रेमी रंग, जाति, धर्म नहीं देखते बस दोस्ती प्रेम करने में विश्वास करती है. ‘वेलेन्टाइन डे’ केवल प्यार करने वाले ही नहीं मनाते बल्कि मित्रों में भी यह पर्व काफी लोकप्रिय हो रहा है. शादी-शुदा लोग भी इसे बड़े चाव से मनाने लगे हैं । पहले तो केवल पुरुष ही अपनी वेलेन्टाइन या प्रेमिका को संदेश और कार्ड भेजते थे आज युवतियां भी अपने प्रेमियों को मोहब्बत भरे कार्ड और उपहार भेजकर प्रेम का प्रस्ताव रखने लगी है।
प्रेम एक दिव्य, अलौकिक एवं वंदनीय तथा प्रफुल्लता देने वाली स्थिति है। प्रेम मनुष्य में करूणा , दुलार और स्नेह की अनुभूति देता है। ग्रहों के कारण मनुष्य प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से प्रेमी का दिल भी टूटता हैं। ज्योतिष शास्त्रों में प्रेम के योगों के बारे में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है, परन्तु जीवनसाथी के बारे में अपने से उच्च या निम्न का विस्तृत विवरण है। कोई भी स्त्री-पुरूष अपने उच्च या निम्न कुल में तभी विवाह करेगा जब वे दोनों प्रेम करते होंगे। आज की भौतिकवादी युवा पीढ़ी अधिकतर प्रेम-विवाह की ओर आकर्षित हो रही है। कई बार प्रेम एक-दूसरे की देखी या फैशन के तौर पर भी होता है, किंतु जीवनपर्यंत निभ नहीं पाता। ग्रह अनुकूल नहीं होन के कारण ऐसी स्थिति बनती है। शास्त्रों मे प्रेम विवाह को गांधर्व विवाह के नाम से जाना गया है। किसी युवक-युवती के मध्य प्रेम की जो भावना पैदा होती है, वह सब उनके ग्रहों का प्रभाव ही होता है, जो कमाल दिखाती है। ग्रह हमारी मनोदशा, पसंद-नापसंद और रूचियों को वय करते और बदलते है। वर्तमान में प्रेम विवाह गंधर्व विवाह का ही परिवर्तित रूप है।
यदि प्रेम हो जाता है तो उसकी सफलता पंचमेश, सप्तमेश और लग्नेश, द्वादेश गृह के संबंधों पर निर्भर करती है। प्रेम के लिए तीसरे भाव का स्वामी का उच्च या बलवान होना बहुत ही आवश्यक है। यही जातक को हिम्मत प्रदान करता है पंचम भाव का स्वामी और सप्तम भाव का स्वामी एक साथ बैठा हो या दृष्टि संबंध हो रहा हो तो प्रेम निश्चित होता है। पंचम भाव प्रेम भावना का स्थान है तथा सप्तम भाव विवाह का स्थान होता है। प्रेम के लिए मंगल-शनि, मंगल-शुक्र, चंद्र-शुक्र की युक्ति भी इस योग को बढ़ावा देती है और योग बनाती है।
प्रेम के लिए जन्मकुण्डली के बारहवें भाव को भी देखें क्योंकि विवाह के लिए बारहवाँ भाव भी देखा जाता है। यह भाव शय्या सुख (स्त्री सुख) का भी है। इन भावों के साथ-साथ उन (एक, पाँच, सात) भावों के स्वामियों की स्थिति का पता करना होता है। यदि इन भावों के स्वामियों का संबंध किसी भी रूप में अन्य भावों से बन रहा हो तो निश्चित रूप से जातक प्रेम करता है।
1. लेग्नेश का पंचम से संबंध हो और जन्मपत्रिका में पंचमेश-सप्तमेश का किसी भी रूप मे संबंध हो। शुक्र, मंगल की युति, शुक्र की राशि में स्थिति और लग्न त्रिकोण का संबंध प्रेम संबंधो का सूचक है। पंचम या सप्तक भाव में शुक्र सप्तमेश या पंचमेश के साथ हो।
2. किसी की जन्मपत्रिका में लग्न, पंचम, सप्तम भाव व इनके स्वामियों और शुक्र तथा चन्द्रमा जातक के वैवाहिक जीवन व प्रेम संबंधों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। लग्न या लग्नेश का सप्तम और सप्तमेश का पंचम भाव व पंचमेश से किसी भी रूप में संबंध प्रेम संबंध की सूचना देता है। यह संबंध सफल होगा अथवा नहीं, इसकी सूचना ग्रह योगों की शुभ-अशुभ स्थिति देती है।
3. पंचम में मंगल भी प्रेम विवाह करवाता हैं। यदि राहु पंचम या सप्तम में हो तो प्रेम विवाह की संभावना होती हैं। सप्तम भाव में यदि मेष राशि में मंगल हो तो प्रेम विवाह होता हैं, सप्तमेश और पंचमेश एक-दूसरे के नक्षत्र पर हों तो भी प्रेम विवाह का योग बनता हैं।
4. पंचमेश तथा सप्तमेश कहीं भी, किसी भी तरह से द्वादशेश से संबंध बनायें लग्नेश या सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन अथवा आपस में युक्त होना अथवा दृष्टि संबंधं।
5 जैमिनी सूत्रानुसार दारा कारक और पुत्र कारक की युति भी प्रेम विवाह कराती है। पंचमेश और दाराकारक का संबंध भी प्रेम विाह करवाता है।
6 शुक्र व मंगल की स्थिति व प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुण्डली में सभी अनुकूल स्थितियाँ होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध बनना मुशकिल है।
7. सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प्रेम की असफलता दृष्टिगत होती है।
8. शुक्र का सूर्य के नक्षत्र में होना और उस पर चन्द्रमा का प्रभाव होने की स्थिति में प्रेम संबंध होने के उपरांत या परिस्थितिवश विवाह व प्रेेम सम्बन्ध हो जाने पर भी सफलता नहीं मिलती। शुक्र का सूर्य-चन्द्रमा के मध्य में होना असफल प्रेम का कारण है।
9 पंचम व सप्तम भाव के स्वामी ग्रह यदि धीमी गति के ग्रह हों तो प्रेम संबंधों का योग होने या चिरस्थायी प्रेम की अनुभूति को दर्शाता है। इस प्रकार के जातक जीवनभर प्रेम प्रसंगों को नहीं भूलते चाहे वे सफल हों या असफल।
10 पुरूष की कुंडली है, तो शुक्र व स्त्री की कुंडली है, तो गुरू विवाह व प्रेम का कारक माना गया है। इसलिए सप्तमेश, शुक्र या गुरू अस्त, नीच या बलहीन हो तो विवाह व प्रेम के योग नहीं बन पाते। बनते भी हैं, तो शादी होने के बाद भी वैवाहिक जीवन में अभाव रहता है।
11 लग्नेश अस्त हो, सूर्य दूसरे स्थान में और शनि बारहवें स्थान में हो तो विवाह सुख में अल्पता दर्शात है।
12 पंचम स्थान पर मंगल, सूर्य, राहु, शनि जैसे एक से अधिक पापी ग्रहों की दृष्टि विवाह व प्रेम सुख में कमी लाती है।
13 शुक्र और चंद्र, शुक्र और सूर्य की युति सप्तम स्थान में हो व मंगल शनि की युति लग्न में हो, तो प्रेम/विवाह का सुख प्राप्त नहीं होता।
14 अष्टम स्थान में बुध-शनि की युति वाले पुरूष, विवाह सुख नहीं पाते या होता भी है, अल्प होता है।
15 पंचम स्थान में मंगल, लाभ स्थान में शनि तथा पापकर्तरी में शुक्र होने से प्रेम व विवाह सुख में अल्पता आती है।
16 राहु पंचम भाव में विराजमान हो पंचम व सप्तमेश की युति प्रेम कि क्रियाओं में बाधक होता है।
ग्रहों के योगों से स्पष्ट है कि यदि आपकी जन्म कुण्डली में ग्रहों कि प्रेम सम्बन्धित स्थितियां अनुकूल नहीं है तो आपको प्रेम प्रस्ताव प्रेमिका के सम्मुख रखना मंहगा भी पड सकता है।
मूंलाक 1 के जातकों के लिए अंक 4 व 8 मित्र अंक हैं तथा सम अंक 2, 3, 7, 9 हैं इन्हें प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं परन्तु अंक 1 के शत्रु 5 व 6 है इस मूंलाक के जातकों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूलांक2 के जातकों के लिए मित्र अंक 7, सम अंक 1, 3, 4, 6 है इन्हें प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं शत्रु अंक 5 व 8 हैं इन्हें प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूलांक 3 के जातकों के लिए मित्र अंक 6, 9 सम अंक 1, 2, 5, 7 हैं इन्हें प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं। शत्रु अंक 4 व 8 हैं।
मूंलाक 4 के जातकों के लिए मित्र अंक 1, 8 व सम अंक 2, 6, 7, 9 है इन्हें प्रेम प्रस्ताव रख सकते हें तथा अंक 3 व 5 अंक शत्रु हैं इन्हों के सम्मुख प्रस्ताव न रखें।
मूंलाक 5 के जातकों के लिये मित्र अंक 3, 9, सम अंक 1, 6, 7, 8 वालों को प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं शत्रु अंक 2 व 4 है इन मूंलाक वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूंलाक 6 के जातकों के लिये मित्र अंक 3, 9 सम अंक 2, 4, 5, 6 वालों को प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं परन्तु 1 और 8 अकों के मूंलाक वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूंलाक 7 के जातकों के लिये मित्र अंक 2, 6 तथा सम अंक 3, 4, 5, 8 वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं परन्तु शत्रु अंक 1 और 9 के मूंलाक वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूंलाक 8 के जातकों के लिये मित्र अंक 1, 4 सम अंक 2, 5, 7, 9 के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं परन्तु शत्रु अंक 3, 6 के मूंलाक वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।
मूंलाक 9 के जातकों के लिये मित्र अंक 3, 6 हैं सम अंक 2, 4, 5, 8 हैं इन अंकों के जातकों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव रख सकते हैं परन्तु शत्रु अंक 1 और 7 अकों वालों के सम्मुख प्रेम प्रस्ताव न रखें।