शनिवार, 3 जुलाई 2010

नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है।
पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिर्ती नामक दानव के साथ हुआ था। इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ। जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था। कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया। लेकिन इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे। उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया। तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए। उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं। कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारा राहु उच्च राशि में विराजमान है और हमें लाभ दे रहा है परन्तु नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है। ज्योतिष शास्त्रों में राहु केतु को छाया ग्रह, तमो ग्रह, नैसर्गिक पाप ग्रह एवं सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाने वाला ग्रह माना गया है। राहु के मित्र बुध-शुक्र और शनि है केतु के मंगल सूर्य मित्र है वही मंगल-राहु का शत्रु सूर्य, चन्द्र , गुरू सम कहे गये है। राहु के दोष बुध दुर करता है। राहु का फल शनि वत है।
राहु तमो ग्रह होने से काली व बुरी वस्तुओं का स्वामी है- आलस्य, मलिनता कृशता, अवसाद आदि दोष राहु के माने जाते हैं चोरी, डकैती काला जादू, भूत प्रेत से कार्य कराने में राहु सक्षम है जन हानि में राहु का दोष माना जाता है।राहु का स्नेह प्रेम, सहयोग में बिलकुल यकिन नहीं इसे किसी प्रकार के बन्धन में बाधना भी सम्भव नहीं है, सामाजिक पारिवारिक, धार्मिक राजनैतिक व नैतिक सम्बन्धों में विरोधाभास स्थतियों को पैदा करने में राहु को गर्व महसूस होता है।
राहु प्रधान व्यक्ति अवमानना और अवज्ञा जैसे कार्य करने से पिछे नहीं हटते हैं।राहु स्वार्थी, सुख लिप्सा व उच्चाकांक्षा व्यक्ति के मन में उत्पन्न करता है राहु प्रधान वाले व्यक्ति सदैव अपने हित लाभ के विषय में ही सोचते हैं। राहु कि धातु शीशा है यह दक्षिण दिशा का स्वामी है।
- राहु को भौतिक सुख व महत्वाकाक्षी मानने के साथ-साथ कुन्डली में 3.6.10.11 भाव में शुभ माना गया है अन्य भावों में यह अनिष्टा प्रदान करता है। कुछ विद्वान राहु का गुरू व शुक्र के साथ सम्बन्धों का लाभ प्रद मानते हैं। आप अपनी जन्म कुन्डली में राहु के नक्षत्र का ज्ञान कर निम्न लिखित स्थितियों से अवगत हो सकते हैं कि राहु आपके लिये किस स्थितियों में विराजमान है।
सूर्य के नक्षत्र में स्थित राहु
सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा पर यदि राहु हो तो जातक को राहु की दशा या अंतर्दशा में उच्च ज्वर, हृदय रोग, सिर में चक्कर, शरीर में झुनझुनाहट, संक्रामक रोग, शत्रुवृद्धि धन हानि, गृह-कलह आदि का सामना करना पड़ता है। उसके मन में अपने भागीदारों के प्रति शंका रहती है। उसका स्थान परिवर्तन, दूर गमन, संक्रामक रोग आदि होते हैं। सूर्य, जो नक्षत्रेश है, के साथ राहु के होने तथा सूर्य के अशुभ 6, 8, 12 स्थान में होने से ऐसा होता है। लेकिन, सूर्य जब शुभ स्थिति में हो तो प्रोन्नति, राज लाभ, प्रसिद्धि, यश तथा नाम प्रतिष्ठा एवं सम्मान में वृद्धि होती है। सूर्य के साथ राहु होने से ग्रहण का योग का निर्माण होता है यदि 6, 8, 12 भाव में ये योग बने और दशा हो तो सर्वाधिक अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।
चंद्र के नक्षत्र में स्थित राहु
चंद्र स्वयं अशुभ स्थिति 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो और राहु उसके नक्षत्र में हो तो राहु के चंद्र के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में अशुभ फल मिलता है। ऐसी स्थिति में जातक की जल में डूबने से मृत्यु, शीत रोग, टी. बी. या स्नोफिलियां हो सकता है। इसके अतिरिक्त पत्नी के रोग ग्रस्त होने या उसकी अकाल मृत्यु के साथ-साथ जातक के अंगों में सूजन अनचाहे स्थान पर स्थानांतरण राजभय की संभावना रहती है।
यदि राहु चन्द्र के साथ 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो या किसी भी भाव में चन्द्रमा के साथ राहु के होने से ग्रहण योग का निर्माण होता है जो अशुभ माना गया है यदि मंगल साथ है तो कष्ट कुछ कम हो जाते हैं।
मंगल के नक्षत्र में राहु
राहु मंगल के नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा पर होता है तो धन की हानि, अग्नि, चोर तथा डाकू के द्वारा नुकसान, मुकदमे में पराजय तथा पैसे की बर्वादी होती है। इस अवधि में किसी से शत्रुता, मित्र अथवा पार्टनर से धोखा मिलना, पुलिस या अन्य उच्चाधिकारी से विवाद आदि होते हैं। लेकिन मंगल यदि शुभ स्थिति में हो तो भूमि, भवन, और वाहन का लाभ, निर्माण कार्य, ठेकेदारी, बीमा, एजेंसी, जमीन जायदाद के कारोबार आदि से लाभ होता है।
बुध के नक्षत्र में राहु
राहु बुध के नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती पर हो तो व्यक्ति लोकप्रिय होता है, उसकी आय के कई साधन होते हैं, शासन सत्ता की प्राप्ति, दूर-दराज के लोगों से परिचय तथा उनके साथ कार्य करने की स्थिति बनती है। उसे संतान, वाहन आदि का सुख मिलता है। यदि बुध दुःस्थान 6, 8, 12 भाव में हो तो व्यक्ति को धोखेबाज, छली तथा कपटी बना देता है। उसकी बात पर लोग विश्वास नहीं करते। उसे थायरायड रोग भी हो सकता है।
बृहस्पति के नक्षत्र में राहु
राहु के बृहस्पति के नक्षत्र पुनर्वसु विशाखा या पूर्वभाद्र पर अवस्थित होने से शत्रु पर विजय और चुनाव में जीत होती है। इसके अतिरिक्त लक्ष्मी का आगमन, संतान की उत्पत्ति, परिवार में हर्ष, उल्लास, उमंग एवं सुख में वृद्धि आदि फल मिलते हैं। किंतु बृहस्पति के अशुभ भाव 6, 8, 12 या प्रभाव में होने पर व्यक्ति को अपमान, पराजय, संपत्ति की हानि, कार्य में बाधा बलात्कार जैसे आरोपों आदि का सामना करना पड़ता है।
शुक्र के नक्षत्र में राहु
राहु जब शुक्र के नक्षत्र भरणी, पूर्व फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा पर हो तो वाहन तथा मूल्यवान और सुंदर वस्तुओं का क्रय सुंदर फर्नीचर आदि से घर की सज्जा, आभूषण आदि का क्रय, संबंधियों से मधुर संबंध, स्त्री सुख, धन-आगमन, आदि परिणाम मिलते हैं। कन्या संतान सुख भी इसी अवधि में होता है। लेकिन शुक्र अशुभ स्थिति 6, 8, 12 में हो तो किसी स्त्री के द्वारा ब्लैकमेलिंग, बलात्कार के आरोप यौन रोग, स्त्री के कारण धन की क्षति आदि की संभावना रहती है।
शनि के नक्षत्र में राहु
राहु जब शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा या उत्तरभाद्र पर हो तो व्यक्ति अपयश, चोट, किसी गंभीर रोग, गठिया या वात से पीड़ा, पित्तजन्य दोष आदि से ग्रस्त तथा मंदिरा का व्यसनी हो सकता है। अपने पार्टनर के प्रति उसके मन में गलतफहमी रहती है। उसके तलाक स्थान परिवर्तन आदि की संभावना भी रहती है।
राहु के नक्षत्र में राहु
यदि राहु अपने नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा पर हो तो व्यक्ति मानसिक कष्ट, विष भय, स्वास्थ्य में गिरावट, जोड़ों के दर्द, चोट, भ्रम, दुश्ंिचताओं आदि से ग्रस्त होता है। इस अपधि में उसके परिवार में किसी बुजुर्ग की मृत्य,ु जीवन संगिनी का वियोग होता है। इसके अतिरिक्त उसके स्थान परिवर्तन और अपयश की संभावना रहती है। किंतु यदि राहु शुभ ग्रह की महादशा के अंतकाल में होता है तो आनंद, प्रोन्नति तथा विदेश भ्रमण आदि सुयोग देता है।
केतु के नक्षत्र में राहु
राहु केतु के नक्षत्र अश्विनी, मघा या मूल में हो तो जातक शंकालु, स्वभाव का होता है। उदसे सांप का भय होता है और उसकी हड्डी के टूटने तथा बवासीर की संभावना रहती है। उसे जीवन साथी से परेशानी तथा बड़े लोगों से शत्रुता रहती है और उसके धन तथा प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि जन्मकुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो तो व्यक्ति बहुमूल्य आभूषणों की खरीदारी करता है और उसे विवाह, प्रोन्नति, भूमि-भवन आदि का सुख प्राप्त होता है।
राहु कि शान्ति के लिए ओंम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवें नमः मंत्र का 18 हजार जप रात्रि के समय 4 माला प्रतिदिन करके 45 दिन में जप पूर्ण करना चाहिए उसके पश्चात दशांश से हवन राहु के हवन में दूर्वा घास की आहुतियां अवश्य देनी चाहिए। राहु का दान के- तिल काले, मूली, सरसों का तेल नीले या काले वस्त्र या कम्बल, कच्चा कोयला, सतनजा, गुरूवार शाम को दन हवन करना चाहिए

1 टिप्पणी:

  1. aap ka lakh pada. aacha laga mera ekk person hai ke yadi rahu lagan mai ho to kya hota hai please batane ka kast kara.
    Thanks.
    Manoj kumar vyas.
    manojk_vyas@yahoo.co.in my mail id.
    Govt.Engineering college bikaner
    Bikaner.

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