मंगलवार, 22 सितंबर 2009

दीपावली पर इस बार तिथियों की उलझन,लक्ष्मी का वाहन

दीपावली पर इस बार तिथियों की उलझन,,भारतीय परंपरा में उल्लू माना जाता है, लेकिनइस बार तिथियों की उलझन कुछ ऐसी हो गई है कि उदयकाल में अलग तिथि रहेगी और शाम को अलग। दीपोत्सव शाम की तिथियों के आधार पर मनाए जाने से इसके पांचों त्योहार एक दिन पहले ही मना लिए जाएंगे।2001 में भी यहीं संयोग था : दीपोत्सव के एक दिन पहले मनाने की स्थिति 2001 में भी बन चुकी है। तब 12, 13, 14, 15 व 16 नवंबर को उदयकाल व पर्वकाल में अलग तिथियां होने से एक दिन पूर्व मनाया गया था। अब 2020 में दीपोत्सव एक दिन पूर्व मनाया जाएगा। यहां रोचक बात यह है कि 2001 की भांति 2020 में भी दीपोत्सव की तारीख 12 से 16 नवंबर तक।‘17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है। इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।पंचांगों के आधार पर लिखा जा सकता हैं। प्रदोश काल ---सायं काल 05-47 से 08-20 तक रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक सर्वश्रेष्ठ समय रात्रि के 07से 7-55 बजे तक इस समय में प्रदोषकाल,एवं स्थिर लग्न वृषभ तथा शनिदेव कि राशि कुम्भ का स्थिर नवांश भी रहेगा।लक्ष्मी का वाहन वैसे तो भारतीय परंपरा में उल्लू माना जाता है, लेकिन भारतीय ग्रंथों में ही इनके कुछ अन्य वाहनों का उल्लेख है। महालक्ष्मी सोस्त में गरूड़ को इनका वाहन बताया गया है, जबकि अथर्ववेद के वैवर्त में हाथी को लक्ष्मी का वाहन कहा गया है।प्राचीन यूनान की महालक्ष्मी एथेना का वाहन भी उल्लू है, लेकिन प्राचीन यूनान में धन संपदा की देवी के तौर पर पूजी जाने वाली हेरा का वाहन मयूर है।लक्ष्मी पूजन के बारे में मार्कंडेय पुराण के अनुसार लक्ष्मी का पूजन सर्वप्रथम नारायण ने किया। बाद में ब्रह्मा फिर शिव समुद्र मंथन के समय विष्णु उसके बाद मनु और नाग तथा अंत में मनुष्यों ने लक्ष्मी पूजन शुरू किया। उत्तर वैदिक काल से ही लक्ष्मी पूजन होता रहा है।

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