बुधवार, 11 जनवरी 2012

बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।

बगला-मुखी साधन
शत्रुनाशिनी श्री बगलामुखी का परिचय व्यष्टिरूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा समष्टिरूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पीतांबरा विद्या के नाम से विखयात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रा माला, पीत पुष्प एवं पीत वस्त्र का विधान है। महाविद्याओं में इनका स्थान आठवां है। ''काला तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या घूमावती तथा। बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका एता दश महाविद्याः सिद्धविद्याः प्रकीर्तिताः।'' इनके ध्यान में बताया गया है कि ये सुधा समुद्र के मध्य स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। ये पीत वर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले पुष्पों की माला धारण करती हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्ना और दूसरे हाथ में मुद्गर है। बगलामुखी की साधना में बगलामुखी यंत्र का विशेष महत्व है। इस यंत्र को सिद्ध कर घर या कार्यालय में रखने से शत्रुओं का प्रभाव क्षीण हो जाता है। स्वतंत्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के अवतरण की कथा इस प्रकार है। सत्य युग में संपूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियों के जीवन पर आए संकट को देख कर भगवान महाविष्णु चिंतित हो गए। वह सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जा कर भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्री विद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट हो कर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तंभन कर दिया। भगवान विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण बगलामुखी महाविद्या वैष्णवी हैं। मंगलवारयुक्त चतुर्दशी की अर्ध रात्रि में इनका अवतरण हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शांति और समृद्धि के लिए पौष्टिक कर्म के साथ-साथ आभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानता के अभिप्राय से है; अन्यथा इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है। यजुर्वेद की काठक संहिता के अनुसार दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाली, सुंदर स्वरूपधारिणी विष्णु पत्नी त्रिलोक जगत् की ईश्वरी मानोता कही जाती है। स्तंभनकारिणी शक्ति व्यक्त और अव्यक्त सभी पदार्थों की स्थिति का आधार पृथ्वीरूपा शक्ति है। बगला उसी स्तंभनशक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। शक्तिरूपा बगला की स्तंभन शक्ति से द्युलोक वृष्टि प्रदान करता है। इसी शक्ति से आदित्य मंडल ठहरा हुआ है और इसी से स्वर्ग लोक भी स्तंभित है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में 'विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्' कह कर इसी शक्ति का समर्थन किया है। तंत्र में वही स्तंभन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है। श्री बगलामुखी को 'ब्रह्मास्त्र' के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक देश अथवा समाज में अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के मंत्र के समान कोई मंत्र फलदायी नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बड़वामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पांच मंत्र भेद हैं। कुंडिका तंत्र में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहां तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्या मानी जाती है, भोग्या नहीं। श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना, गुरु के सान्निध्य में रह कर सतर्कतापूर्वक, सफलता की प्राप्ति होने तक, करते रहना चाहिए। इसमें ब्रह्मचर्य का पालन और बाहर-भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। सनत्कुमार ने देवर्षि नारद को और नारद ने सांखयायन नामक परमहंस को इसका उपदेश दिया। सांखयायन ने 36 पटलों में उपनिबद्ध बगला तंत्र की रचना की। बगलामुखी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु और तीसरे उपासक परशुराम हुए तथा परशुराम ने यह विद्या आचार्य द्रोण को दी। मां बगलामुखी का मुखय पीठ दतिया में ग्वालियर व झांसी के मध्य है। यह पीतांबरा शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में वनखंडी, गंगरेट और कोटला में, मध्य प्रदेश में नलखेड़ा में, छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव में, उत्तर प्रदेश में वाराणसी में और महाराष्ट्र में मुंबई में मुम्बादेवी नाम से इनके मुखय शक्तिपीठ हैं। 
अब बगला-साधन के मन्त्र, ध्यान, यंत्र, जप-होम स्तव एवं कवच!
बगला-मुखी-ध्यान----
मध्येसुधाब्धिमणिमण्डरत्नवेदी
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम!
पीताम्बराभरणमाल्यभूषितांगीं
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम!!
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं
वामें शत्रून परिपीडयन्तीम!
गदाभिवातेन च दक्षिणेन
पीताम्बराढ यां द्विभुजा नमामि !!
सुधा-सागर के मणिमय मण्डल में रत्ननिर्मित वेदी के ऊपर जो सिंहासन है , बगला मुखी देवी उस पर विराजमान हैं! वे पीतावर्णा हैं तथा पीतवस्त्र, पीतवर्ण के आभूषण तथा पीतवर्ण की ही माला को धारण किये हुए हैं! उनके एक हाथ में मुंगर तथा दूसरे हाथ में शत्रु की जिह्वा है! वे अपने बायें हाथ में शत्रु की हिह्वा के अग्रभाग को धारण करके दायें हाथ के गदाघात से शत्रु को पीड़ित कर रही हैं! वे बगलामुखी देवी पीत वस्त्रों से विभूषित तथा दो भुजा वाली है!
बगलामुखी-स्तव--------
बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी!
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी !!
भैरवी भीमनयनान महेशगृहिणी शुभा!
दशनामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठ्येद्यदि !
स भवेत् मन्त्र सिद्धश्च देवी पुत्र इव क्षितौ !
१ बगला, २ सिद्ध विद्या, ३ दुष्ट निग्रह कारिणी, ४ स्तंभिनी, ५-आकर्षिणी, ६--उच्चाटन, ७--भैरवी, ८-भीमनयना, ९ महेश गृहिणी तथा १० -=शुभादशनामात्मक देवी-स्तोत्र का जो मनुष्य पाठ करता है अथवा दूसरे से पाठ करवाता है, वह मन्त्र सिद्ध होकर देवी-पुत्र की भाँती पृथ्वी पर विचारण करता है!
बगलामुखी कवच-----
ॐ ह्रीं मे हृदयं पादौ श्री बगलामुखी!
ललाटे सततं पातु दुष्टग्रहनिवारिणी!!
"ॐ ह्रीं " यह बीज मेरे हृदय की रक्षा करो, बगलामुखी दोनों पावों की रखा करेन तथा दुष्ट ग्रह निवारिणी मेरे लातात की सदैव रखा करें!
रसानां पातु कौमारी भैरवी चक्षुधोर्म्मम !
कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णों शंकरभामिनी!!
कौमारी, मेरी जीभ की, भैरवी नेत्रों की, महेशानी कमर तथा पीठ की एवं शंका-भामिनी मेरे कानों की रक्षा करें!
वर्ज्जतानि तु स्थानानि यानि च कवचेन हि!
तानि सर्व्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी!!
जिन स्थानों का कवच में वर्णन नहीं किया गया है, स्तम्भिनी देवी उन सब स्थानों की रक्षा करें!
अज्ञातं कवचं देवी यो भजेदबगलामुखीम!
शास्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सत्यं ण संशय!!
इस कवच को जाने बिना जो मनुष्य बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी शस्त्राघात से मृतु हो जाती है, इसमें संदेह नहीं है! यह सत्य है, सत्य है!
मन्त्र----
ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्व्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय जिह्वां कीले कीले बुद्धि नाशय ह्लीं स्वाहा!
इस मन्त्र के द्वारा "बगालामुखि" की पूजा तथा जप आदि करना चाहिये! बगला मुखी माता को "कमला" भी कहते हैं!
बगालामुखि --पूजन का यंत्र---------
पहले त्रिकोण बनाकर, उसके बाहर षटकोण अंकित करके वृत्त तथा अष्टदल पद्म को अंकित करे! उसके बहिर्भाग में भूपुर अंकित करके यंत्र को प्रस्तुत करना चाहिए! यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र के ऊपर लिखना चाहिए!
बजलामुखी के निर्मित्त जप-होम---------------
पीत वस्त्र धारण कर. हल्दी की गाँठ से निर्मित अर्थात जिसमें हल्दी की गाँठ लगी हुई हों, ऐसे माला से प्रतिदिन एक लाख की संख्या में मन्त्र का जप करें तथा पीत वर्ण के पुष्पों से उसका दशांश होम करना चाहिए!
 प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683

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