हनुमान जयंती 6 अप्रैल 2012 शुक्रवार को हनुमानजी की विशेष पूजा, टोटका या उपाय करे
हिन्दू पंचांग के अनुसार हनुमान जयंती प्रतिवर्ष
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. जयंती (त्यौहार) पूरे भारतवर्ष में
श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जाता है. भक्तों की मन्नत पूर्ण करने वाले पवनपुत्र
हनुमान के जन्मोत्सव पर इनकी पूजा का बड़ा महातम्य होता है. आस्थावान भक्तों का
मानना है कि यदि कोई श्रद्धापूर्वक केसरीनंदन की पूजा करता है तो प्रभु उसके सभी
अनिष्टों को दूर कर देते हैं और उसे सब प्रकार से सुख, समृद्धि और एश्वर्य प्रदान करते
हैं. इस दिन हनुमानजी की पूजा में चमेली का तेल और लाल सिंदूर चढ़ाने का विधान है.
हनुमान जयंती पर कई जगह श्रद्धालुओं द्वारा झांकियां निकाली जाती है, जिसमें उनके जीवन चरित्र
का नाटकीय प्रारूप प्रस्तुत किया जाता है. यदि कोई इस दिन हनुमानजी की पूजा करता
है तो वह शनि के प्रकोप से बचा रहता है. मान्यता है कि इसी पावन दिवस को भगवान राम
की सेवा करने के उद्येश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र ने वानरराज केसरी और
अंजना के घर पुत्र रूप में जन्म लिया था
6 अप्रैल 2012 शुक्रवार को हनुमान जयंती के अवसर पर यदि
हनुमानजी की विशेष पूजा, टोटका या उपाय
करे तो इसका शीघ्र ही शुभ फल प्राप्त होता है।
हनुमान जयंती के दिन
या किसी मंगलवार को तेल, बेसन और उड़द
के आटे से बनाई हुई हनुमानजी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करके तेल और घी का दीपक
जलाएं तथा विधिवत पूजन कर पूआ, मिठाई आदि का
भोग लगाएं। इसके बाद 27 पान के पत्ते
तथा सुपारी आदि मुख शुद्धि की चीजें लेकर इनका बीड़ा बनाकर हनुमानजी को अर्पित
करें। इसके बाद इस मंत्र का जप करें-
मंत्र- नमो भगवते
आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।
फिर आरती, स्तुति करके अपने इच्छा बताएं और प्रार्थना
करके इस मूर्ति को विसर्जित कर दें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर व
दान देकर सम्मान विदा करें। यह टोटका करने से शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूरी होगी।
पंचमुख हनुमान
के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं।
पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी
भी अजर-अमर माने जाते हैं।
हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी
आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ
हैं। है।
हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है।
जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
श्री हनुमान का ऊर्ध्वमुख घोडे के समान हैं।
हनुमानजी का यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। मान्यता है कि
हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए। कष्ट में पडे भक्तों को वे शरण
देते हैं। ऐसे पांच मुंह वाले रुद्र कहलाने वाले हनुमान बडे कृपालु और दयालु हैं।
पंचमुखीहनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को
माना जाता हैं। रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसकी आराधना
से बल, कीर्ति,
आरोग्य और
निर्भीकता बढती है।
रामायण के अनुसार श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच
मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और
दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख
क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं।
ध्यान मग्न हनुमान स्वरुप:—-
हनुमानजी का ध्यान मग्न स्वरुप व्यक्ति को साधना में
सफलता प्रदान करने वाला, योग सिद्धि या प्रदान करने वाला मानागया हैं।
रामायणी हनुमान स्वरुप:—
रामायणी हनुमानजी का स्वरुप विद्यार्थीयो के लिये
विशेष लाभ प्रद होता हैं। जिस प्रकार रामायण एक आदर्श ग्रंथ हैं उसी प्रकार
हनुमानजी के रामायणी स्वरुप का पूजन विद्या अध्यन से जुडे लोगो के लिये लाभप्रद
होता हैं।
हनुमानजी का पवन पुत्र स्वरुप:–
हनुमानजी का पवन पुत्र स्वरुप के पूजन से आकस्मिक
दुर्घटना, वाहन इत्यादि की सुरक्षा हेतु उत्तम माना गया हैं। हनुमानजी के उस स्वरुप का
पूजन करने से
यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में केवल दो दिन मंगलवार और
शनिवार को ही हनुमानजी का विधिवत पूजन करें तब भी उसके जीवन की कई समस्याएं स्वत:
ही समाप्त हो जाएंगी। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए सुंदरकांड या हनुमान चालिसा
का पाठ या श्रीराम मंत्र का जप करना श्रेष्ठ उपाय है। इसके साथ ही श्रीराम के
अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना चाहिए।
सिंदूर हनुमानजी को अत्यंत प्रिय है। जो भक्त उन्हें सिंदूर अर्पित करता है उससे
भगवान प्रसन्न होते हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
हनुमानजी को सिंदूर क्यों अर्पित किया जाता है इस
संबंध में शास्त्रों में कई कथाएं बताई गई हैं, इन्हीं में बहुप्रचलित एक कथा इस
प्रकार है। रावण वध पश्चात जब श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान एवं अन्य सहित अयोध्या आए। जहां श्रीराम का
राज्याभिषेक हुआ। इसके पश्चात एक दिन हनुमानजी ने देखा कि माता सीता मांग में
सिंदूर लगा रही हैं। उत्सुकता वश बजरंगबली में माता से सिंदूर लगाने का कारण पूछा।
तब माता सीता ने बताया कि इस प्रकार सिंदूर लगाने से मेरे स्वामी श्रीराम को
स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की प्राप्ति होगी। यह सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि यदि वे
अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाएंगे तो उनके स्वामी श्रीराम की पूर्ण भक्ति प्राप्त
हो जाएगी। यही सोचकर उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया। इसी घटना के कारण
भगवान हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की प्रथा प्रारंभ हुई। ऐसी मान्यता है।
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