जीवनमें सफलता प्राप्त करने के लिए एक अच्छे संतान की आवश्यकता होती हैं। परन्तु-कुछ लोग संतान विहीन होते हैं और संतान की प्राप्ति के लिए अनेक प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति में संतान प्राप्ति हेतु यह यंत्र अत्यन्त चमत्कारिक है। इस यंत्र की प्रतिष्ठा पूजा करने से मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती है। और वह दीर्घायु और गुणवान होता है।संतान गोपाल यंत्र की साधना अत्यन्त प्रसिद्ध है जिन्हें संतान नहीं उत्पन्न होती है वे बालकृष्ण की मूर्ति के साथ संतान गोपाल यंत्र स्थापित करते हैं तथा उनके सामने संतानगोपाल स्तोत्र का पाठ करते हैं। कुछ लोग ’पुत्रोष्टि यज्ञ’ करते हैं पुत्रेष्टि यज्ञ एवं संतान गोपाल यंत्र के द्वारा अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है।
यंत्र का उपयोग
संतान गोपाल यंत्र को गुरुपुष्य नक्षत्र में पूजन एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात् संतान गोपाल स्त्रोत्र का पाठी करने से शीघ्र ही गृह में कुलीन एवं अच्छे गुणों से युक्त संतान की उत्पत्ति होती है तथा माता पिता की सेवा में ऐसी संतानें हमेशा तत्पर रहती हैं।
संतान गोपाल यंत्र को गोशाला में प्रतिष्ठित करके गोपालकृष्ण का मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से वध्या को भी शीघ्र ही पुत्ररत्न उत्पन्न होता है तथा सभी गुणों से सम्पन्न होता है।
- मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान पैदा करने में नहीं देता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो वह परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली सिद्ध होगी उत्त्म संतानप्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए वर्ष में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है
- गर्भाधान के लिए समय:
- ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित है
- यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर समागम करना चाहिए
- यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए
- कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है
- रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए
- निषिद्ध रात्रियाँ: पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, ऊत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं चाहिए शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए
- ज्यातिष शास्त्रो के आधर पर देखा जाये तो हमे ज्ञातहोता है संतान के सम्बन्ध्ा में क्या करना चाहिए हमारे पुर्वजो ने जो खोज कि है यदि उन्हे अपनाया जाये तो सफलता अवशय प्राप्त होती हैं ज्यातिष शास्त्रो के कुछ सूत्र माता पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है
- दिन में समागम करने से आयु व बल का बहुत ह्रास होता है गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं :
- रवि >> 8 से 9 >> 1.30 से 5
- सोम >> 10.30 se 12 >> 1.30 से 4
- मंगल >> 7.30 से 9 >> 10.30 से 1.30
- बुध >> 7.30 से 10 >> 3 से 4.30
- गुरु >> 12 से 1.30 >> 3 से 4
- शुक्र >> 9 से 10.30 >> 12 से 3.30
- शनि >> 9 से 12
- रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 14 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें
- गर्भधारण के पूर्व कर्तव्य
- रात्रि तथा समय कम-से-कम तीन दिन पूर्व निश्चित कर लेना चाहिए निश्चित रात्रि में शाम होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर सदगुरु व इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए संभव हो तो हवन करना चाहिए
- गर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है इसलिए इस सतत यज्ञ की भावना रखनी चाहिए, विलास की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए
- पति-पत्नी दोंनो को अपनी चित्तवृत्तियाँ परमात्मा में स्थिर करनी चाहिए व उत्तम आत्माओं को प्रार्थना करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए :’हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहीं सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओं ! हम दोंनो आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें हम दोंनो अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बानायेंगे ’
- पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में श्य्या पर चढ़े तत्पश्चात शय्या पर निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :
- अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति
- ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम्
- ‘हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ
- ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें
- चरक संहिता, शारीरस्थान : 8.8
- दोंनो गर्भ विषय में मन लगाकर रहें ऐसा करने से तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज ग्रहण करती है विधिपूर्वक गर्भधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है
- सर्व-कार्य-सिद्धि के लिये आदि कार्यों के लिए संपर्क करें प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683
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