विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है।
करवा चौथः 07 अक्तूबर, 2009 को मनाया जायेगा यह कार्तिक कृष्णा चतुर्थी/कारक चतुर्थी/करवा चौथ के रूप में मनाते हैं। आप सभी जानते हैं कि करवाचौथ का पर्व मूल रूप से पति-पत्नी के बीच रिश्तों को और मजबूत करने का दिन होता है। खासकर जो नए जोड़े होते हैं, उनके लिए यह पर्व और भी मायने रखता है। एक-दूसरे को करीब से जानने और समझने का इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता है! लेकिन कुछ सालों से इसका स्वरूप काफी बदल गया है। करवा चैथ व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने प्राण बल्लभ की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना करके भगवान रजनीश (चंद्रमा) को अघ्र्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती हैं। इस व्रत में रात्रि बेला में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा का विधान है। इस दिन निर्जल व्रत रखकर चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अघ्र्य अर्पण कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। पीली मिट्टी की गौरी भी बनायी जाती है। कुछ स्त्रियां परस्पर चीनी या मिट्टी का करवा आदान प्रदान करती हैं। लोकाचार में कई स्त्रियां काली चिकनी मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी बनाकर डाल देती हैं अथवा आटे को घी में सेंककर चीनी मिलाकर लड्डू आदि बनाती हैं। पूरी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं।
नव विवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। चैथ का व्रत चैथ से ही प्रारंभ कराया जाता है। इसके बाद ही अन्य महीनों के व्रत करने की परम्परा है।नैवेद्य (भोग) में से कुछ पकवान ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करें तथा अपनी सासू मां को 13 लड्डू, एक लोटा, एक वस्त्र, कुछ पैसे रखकर एक करवा चरण छूकर दे दें। शेखावाटी (राजस्थान) में एक विशेष परम्परा है। वहां स्त्रियां कुम्हारों के यहां से करवा लाकर गेहूं या बाजरा भूनकर सथिया करके आटे की बनी हुई 13 मीठी टिक्कियां, एक गुड़ की डली और चार आने के पैसे या श्रद्धानुसार विवाह के साल टीका चावल लगाकर गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनती हैं। करवा तथा पानी का लोटा रोली पाटे पर रखती हैं और कहानी सुनकर करवा अपनी सास के पैरों में अर्पित करती हैं। सास न हो तो मंदिर में चढ़ाती हैं।उद्यापन करें तो 13 सुहागिन स्त्रियों को जिमावें। 13 करवा करें 13 जगह सीरा पूड़ी रखकर हाथ फेरें। सभी पर रुपया भी रखें। बायना जीमने वाली स्त्रियों को परोस दें। रुपया अपनी सास को दे दें। 13 करवा 13 सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बीच दे दें।करवा चैथ का व्रत भारतीय संस्कृति के उस पवित्र बंधन या प्यार का प्रतीक है जो पति पत्नी के बीच होता है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर माना गया है। यह व्रत पति पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय निवेदन और एक दूसरे के प्रति हर्ष, प्रसन्नता, अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। इस दिन स्त्रियां नव वधू की भांति पूर्ण शृंगार कर सुहागिन के स्वरूप में रमण करती हुई भगवान रजनीश से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं।स्त्रियां शृंगार करके ईश्वर के समक्ष व्रत के बाद यह प्रण भी करती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी तथा धर्म के मार्ग का अनुसरण करती हुई धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करेंगी।कुंआरी कन्याएं इस दिन गौरा देवी का पूजन करती हैं। शिव पार्वती के पूजन का विधान इसलिए भी है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही सौभाग्य उन्हें भी प्राप्त हो। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पांडवों के बनवास के समय जब अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत की ओर चले गए तो बहुत दिनों तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपदी को चिंता हुई। श्रीकृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिंता दूर करते हुए करवा चैथ का व्रत बताया तथा इस संबंध में जो कथा शिवजी ने पार्वती को सुनाई थी, वह भी सुनाई। कथा इस प्रकार है।इंद्रप्रस्थ नगरी में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चैथ के व्रत के समय वीरावती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, किंतु वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निढाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है। करवा चैथ का व्रत चंद्रमा देखकर ही खोलेगी। यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलाई तथा ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा जैसा दृश्य बना दिया और जाकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है, अघ्र्य दे दो। यह सुनकर वीरावती ने अघ्र्य देकर खाना खा लिया। नकली चंद्रमा को अघ्र्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका। एक बार इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चैथ का व्रत करने पृथ्वी पर आईं। इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इंद्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बताएं। इंद्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए करवा चैथ व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खंडित किए करेगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरावती ने करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि से संपन्न किया जिसके फलस्वरूप उसका पति बिलकुल ठीक हो गया। करवा चैथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है। सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि और धन-धान्य के इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधि पूर्वक करना चाहिए और इस दिन विभिन्न प्रकार के बधावे गाने चाहिए।
vah kya bat hai
जवाब देंहटाएंओह......अच्छा हुआ आज आपने मेल कर दिया वर्ना इस बबर के व्रत का मुझे पता ही नहीं चलता ....बहुत बहुत शुक्रिया ....!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपने मेल पढा आशा है सभी भाईयों बहनो का स्नेह इसी प्रकार मिलता रहेगा।
जवाब देंहटाएंbahut jandar,shandar,damdar likha.narayan narayan
जवाब देंहटाएंनये युगलों के लिए उत्तम जानकारी है।
जवाब देंहटाएं