जो व्यक्ति तन, मन, धन से, सच्चे हृदय से असहाय, दीन व दुखियों की सहायता करता है, उनका उप्रकार करता है, उससे बढ़कर पुण्यात्मा कोई नहीं और न ही सद्कर्म अर्थात् “परोप्रकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं।”
-‘मनु’ ने ‘मनुस्मृति’ में लिखा है -
“सर्वभूतेषु चात्मान सर्वभूतानि चात्मनि।
संग पश्यन्नात्मयाजी स्वराज्यमधि गच्छति।।”
“सर्वभूतेषु चात्मान सर्वभूतानि चात्मनि।
संग पश्यन्नात्मयाजी स्वराज्यमधि गच्छति।।”
जो सब प्राणियों में स्वयं को तथा अपने में सबको देखता है तथा दूसरों के लिए स्वार्थ त्याग करता है वह स्वयं पर, अपनी इच्छाओं पर अधिकार प्राप्त कर लेता है।
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