15 अप्रैल से 14 मई, 2010 के बीच की अवधि को अधिक वैशाख मास (मलमास) कहा जाएगा। मलमास बना पुरुषोत्तम मास एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जब अधिकमास उत्पन्न हुआ, तब स्वामी रहित होने के कारण उसे मलमास कहा गया। सर्वत्र निंदा होने पर वह वैकुण्ठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई। मलमास की पीड़ा देखकर भगवान विष्णु उसे सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास ले गए। मलमास का दुख जानने के बाद भगवान श्रीकृष्ण उसे वरदान देते हुए बोले,
मैं अब मलमास का स्वामी हो गया हूं,
इसलिए आज से यह मेरे पुरुषोत्तम नाम से जाना जाएगा। सांसारिक कार्यो से परहेज पुरुषोत्तम मास में सारे काम भगवान को प्रसन्न करने के लिए निष्काम भाव से ही किए जाते हैं। इससे प्राणी में पवित्रता का संचार होता है। इस मास में किसी कामना की पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन या विवाह,
मुंडन,
यज्ञोपवीत,
नींव-
पूजन,
गृह-
प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा निषिद्ध हैं। भगवान विष्णु की उपासना अधिक मास में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की उपासना,
जप,
व्रत,
दान आदि करना चाहिए। संतों का कहना है कि अधिक (
पुरुषोत्तम)
मास में की गई साधना हमें ईश्वर के निकट ले जाती है।