बुधवार, 14 जुलाई 2010

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं

शिवलिंग पर गंगाजल की धारा चढाने से भोग ओर मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
महादेव, महादेव कहने वाले के पीछे-पीछे मैं (श्री कृष्ण) नाम श्रवण (सुनने) के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं, जो मनुष्य शब्द (महादेव, महादेव) का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है वह कोटि जन्म के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है। शिव शब्द कल्याणवाची है और कल्याण शब्द मुक्ति वाचक है मुक्ति भगवान शंकर से प्राप्त होती है, इस लिए भोले शंकर ‘‘शिव’’ कहलाते हैं। धन तथा बन्धुवों के नाश हो जाने के कारण शोक सागर में डुबा हुआ मनुष्य शिव शब्द का जब उच्चारण करता है तब सब प्रकार के कल्याण को प्राप्त करता है शिव वह मंगलमय नाम है जिस किसी की भी वाणी में रहता है वह करोडों जन्मों के पापों को नष्ट कर देते हैं। मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर कामनाओं की पूर्ति करने वाले महादेव शिव शंकर हैं इनके 16 सोमवार के व्रत भक्ति भावना के साथ रखता है उसकी कामना कभी अधुरी नहीं रहती है।
नारद मुनी ने ब्रहा्रा जी से पुछा कि कलयुग में मनुष्य के द्वारा भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने व इच्छा पूर्ति के लिए क्या कार्य किये जायें जो भोले शंकर जल्द प्रसन्न हो जायें और मनुष्यों को कष्टों से जल्द छुटकारा प्राप्त हो इस विषय पर शिव पुराण के रूद्र संहिता के 14 वें अध्याय में अन्न, फूल व जलधाराओं के महत्व को समझाया गया है।
- जो व्यक्ति लक्ष्मी की प्राप्ति की इच्छा रखता है उसे कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान शिव की पुजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति आयु की इच्छा रखता है वह एक लाख दुर्वाओं के द्वारा पूजन करें।
- जो पुत्र की इच्छा रखता है वह धतुरे के एक लाख फूलों से पूजा करें यदि लाल डंठल वाले धतुरे से पूजन हो तो अति शुभ फल दायक है।
- जो व्यक्ति यश की प्राप्ति चाहता है उसे एक लाख अगस्त्य के फूलों से पूजा करनी चाहिए।
- जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान शिव शंकर की पूजा करते हैं उन्हें भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते है। सफेद आंखे, अपमार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों से पूजा करने पर भी भोग व मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग सुलभ होते हैं।
- जो व्यक्ति चमेली से शिव जी की पूजा करते हैं उन्हें वाहन सुख की प्राप्ति होती है।
- जिन व्यक्तियों को पत्नी सुख प्राप्ति में बाधाऐं उत्पन्न होती हों उन्हें भगवान शंकर की बेला के फूलों से पूजन करना चाहिए भगवान शिव की कृप्या से अत्यन्त शुभ लक्ष्ण पत्नी की प्राप्ति होती है और इसी प्रकार स्त्रीयों को पति की प्राप्ति होती है।
- जूही के फूलों से शिव शंकर का पूजन किया जाये तो अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
- कनेर के फूलों से पूजन करें तो वस्त्रों की प्राप्ति होती है।
- शेफालिका या सेदुआरि के फूलों से पूजन किया जाये तो मन सदेव निर्मल रहता है।
- हार सिंगार के फूलों से जो व्यक्ति शिव पूजन करें उसको सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
उपरोक्त कार्य शिव मूर्ति के समक्ष किये जाने चाहिए।
- तिलों के द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियां दिये जाने से बडे बडे पातकों का नाश होता है।
- गेंहु से बने पकवान से भगवान शंकर की पुजा उत्तम मानी गई है। वंश की वृद्धि होती है।
- जो व्यक्ति मूंग से पूजा करते हैं उन्हें भगवान शंकर सुख प्रदान करते हैं।
- प्रियंगु (कंगनी) द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा भगवान शिव शंकर का पूजन करता है उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शान्ति के लिए जलधारा शुभ कारक कही गई है शत रूद्रिय मन्त्र से, रूद्री के ग्यारह पाठों से रूद्र मन्त्रों के जप से, पुरूषसूक्त से, छः ऋचा वाले रूद्रसूक्त से, महामृत्युज्जय मन्त्र से, गायत्री मन्त्र से, व शिव के शस्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अन्त में नमः पद जोड कर बने मत्रों के द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
जब व्यक्ति का मन अकारण ही उच्चट जाये, दुख बढ जाये, धर में कलह रहने लगे, उस समय व्यक्ति को उपरोक्त के अनुसार दूध की धारा शिव लिंग पर निरन्तर चढानी चाहिए।
- शिवलिंग पर सहस्त्रनाम मंत्रों के साथ धी की धारा चढाने से वंश की वृद्धि होती है।
- सुगन्धित तेल की धार शिवलिंग पर चढाने से भोगों की वृद्धि, शहद (मधु) से पूजा करने पर राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है।
- शिवलिंग पर ईख के रस की धार चढायी जाये तो भी सम्पूर्ण आन्नद की प्राप्ति होती है।
- गंगाजल की धारा शिवलिंग पर चढाने से भोग-मोक्ष दोनों फलों को देने वाली कही गई है और गंगाजल की धारा भगवान शिवशंकर को सर्व प्रिय है। जो भी जल आदि धाराऐं हैं वह महामृत्युज्जयमन्त्र से चढाई जानी चाहिए।
शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि श्रवण मास में किये गये पूजन व जल धाराओं से न केवल भगवान शिव की कृपा होती है बल्कि साधक पर मां गोरी, गणेश और लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। श्रद्धेय भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार ने लिखा है कि शिव की पूजा करके भी अपनी मुर्खतावश परम लाभ से व्यक्ति वच्चित रह जाता है। भगवान शिव शुद्ध सनातन, विज्ञानानन्दधन परब्रहा्र हैं, उनकी उपासना परमलाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए, सांसारिक लाभ हानि प्रारब्धवश होते रहते हैं इसके लिए चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। भगवान शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जायेंगें, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश हो जायेगा।

जन्म के शनि के अनुसार शनि का मुख्य फल मिलता है।

जन्म के शनि के अनुसार शनि का मुख्य फल मिलता है। जिसकी जन्म पत्रिका में ढैया शनि का संबंध शुभ प्रभावों से हो अथवा महादशा या अंतर्दशा शुभ हो, तो शनि का प्रभाव अशुभ नहीं होगा। यदि जातक को लघु कल्याणी शनि या साढे़साती शनि अशुभ हो और जन्मकुंडली में शनि अशुभ पाप पीड़ित हो, तो साढे़साती का फल बहुत ज्यादा शुभ होगा और ढैया शनि का फल उससे कुछ कम शुभ होगा। यह चिंता वृद्धि, अशांति, धन हानि, रोग, क्लेश करेगा। यदि जन्म का शनि उच्च का, स्वगृही, शुभ व वर्गोत्तमी हो, तो शुभ फल देगा। शनि अष्टमेश या मारकेश हो, तो उसकी साढे़साती या ढैया दशा अशुभ फलदायक होगी। जन्म का शनि कुंडली में लग्नेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर तीसरे, छठे या ग्यारहवें स्थान में हो, तो संपत्ति, सुख, व्यापार आदि में लाभकारी होता है।
शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय:
शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय, अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से बताए गए हैं जिनमें से कुछ उपायों का विवरण निम्नानुसार है।
-शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढे़साती या ढैया के दौरान मांस एवं मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- काले रंग के वस्त्र में 740 ग्राम काले उड़द और तांबे का सिक्का बांधकर बहते हुए पानी में बहाने से लाभ होता है।
- शनिवार को श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक व्रत करें।
- शनि से संबंधित वस्तुएं घर में स्थापित करें।
- लोहे की वस्तुएं दान करें।
- कर्क राशि वाले जातक तांबे का सिक्का मुख्य द्वारा के नीचे गाड़ें।
- शनि स्तोत्र का पाठ व जप करें।
- घर में भूरे पत्थर की शिला स्थापित करना शुभ है।
- शनि से संबंधित वस्तुएं (तेल, चमड़ा, तांबा, वस्त्र, लोहा, काले तिल आदि) दान में न लें।
- बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लें व उनकी सेवा करें।
- लोहे का बिना जोड़ वाला छल्ला दायें हाथ की बड़ी उंगली में पहनें।
- शुक्रवार की रात 750 ग्राम काले तिल भिगोकर सुबह शनिवार को काले घोड़े को खिलाएं।
- अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखें।
- पैतृक संपत्तियों का विक्रय किसी भी कीमत पर न करें।
- शनिवार को न तो लोहा खरीदें और न हीं बेचें।
- शनिवार को भी सूर्य को अर्घ्य दें।
- वृष राशि आदि में यदि साढ़ेसाती या ढैया हो, तो अमावस्या को किसी नाले में नीले फूल डालें।
- अपने मकान व बिस्तर के चारों कोनों पर लोहे की चार कीलें गाड़ें।
- घर के अंधेरे कमरों में लोहे के पात्रों में सरसों का तेल भरकर रखें।
- यदि संभव हो तो काला कुत्ता पालें।
- धन की रक्षा के लिए एक नारियल काले कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें।
- शनिवार को गुड़ में काले तिल के लड्डू बनाकर दान करें।
- शनिदोष निवारक यंत्र: किसी योग्य तांत्रिक या गुरु द्वारा प्रदत्त शनि दोष निवारक यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर घर में स्थापित करें या करवाएं। इसके अतिरिक्त इस यंत्र का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन व साधना कर गले या बाजू में बांधने से शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है।
- संपूर्ण बाधा मुक्ति यंत्र प्राप्त कर पूजा स्थल पर प्राणप्रतिष्ठित कर रखें एवं वहां नित्यप्रति धूप एवं दीप जलाएं।
- लाभकारी महिमा मंडित पारद माला: किसी योग्य तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित, महिमामंडित शुद्ध पारदमाला धारण करने से भी साढ़ेसाती, ढैया या शनि की दशा-अंतर्दशा के दोष निवारण में लाभ होता है।
- शनि दोष निवारक पिरामिड: किसी योग्य गुरु द्वारा निर्मित व प्राण-प्रतिष्ठित शनि पिरामिड का प्रयोग कर आप शनि की साढ़ेसाती या ढैया के दोष का निवारण कर सकते हैं।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

सूर्य-ग्रहण 11 जुलाई, 2010 को

भारतीय समय के अनुसार सूर्य-ग्रहण का समय 11 जुलाई, 2010 को 23:45 बजे से लेकर 12 जुलाई, 2010 को 2:20 बजे तक है। भारत में सूर्य ग्रहण दिखायी नहीं देगा,

शनिवार, 3 जुलाई 2010

नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है।
पुराणों के अनुसार, असुरराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाह विप्रचिर्ती नामक दानव के साथ हुआ था। इन दोनों के योग से राहु का जन्म हुआ। जन्मजात शूर-वीर, मायावी राहु प्रखर बुद्धि का था। कहा जाता है कि उसने देवताओं की पंक्ति में बैठकर समुद्र मंथन से निकले अमृत को छल से प्राप्त कर लिया। लेकिन इस सारे घटनाक्रम को सूर्यदेव तथा चंद्रदेव देख रहे थे। उन्होंने सारा घटनाक्रम भगवान विष्णु को बता दिया। तब क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। किंतु राहु अमृतपान कर चुका था, इसलिए मरा नहीं, बल्कि अमर हो गया। उसके सिर और धड़ दोनों ही अमरत्व पा गए। उसके धड़ वाले भाग का नाम केतु रख दिया गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्र से शत्रुता रखते हैं और दोनों छाया ग्रह बनकर सूर्य व चंद्र को ग्रहण लगाकर प्रभावित करते रहते हैं। कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारा राहु उच्च राशि में विराजमान है और हमें लाभ दे रहा है परन्तु नक्षत्रों के खेल में जब राहु जम जाता है तब उच्च का राहु भी हमें हानि पहुंचाने से नहीं चूकता है। ज्योतिष शास्त्रों में राहु केतु को छाया ग्रह, तमो ग्रह, नैसर्गिक पाप ग्रह एवं सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाने वाला ग्रह माना गया है। राहु के मित्र बुध-शुक्र और शनि है केतु के मंगल सूर्य मित्र है वही मंगल-राहु का शत्रु सूर्य, चन्द्र , गुरू सम कहे गये है। राहु के दोष बुध दुर करता है। राहु का फल शनि वत है।
राहु तमो ग्रह होने से काली व बुरी वस्तुओं का स्वामी है- आलस्य, मलिनता कृशता, अवसाद आदि दोष राहु के माने जाते हैं चोरी, डकैती काला जादू, भूत प्रेत से कार्य कराने में राहु सक्षम है जन हानि में राहु का दोष माना जाता है।राहु का स्नेह प्रेम, सहयोग में बिलकुल यकिन नहीं इसे किसी प्रकार के बन्धन में बाधना भी सम्भव नहीं है, सामाजिक पारिवारिक, धार्मिक राजनैतिक व नैतिक सम्बन्धों में विरोधाभास स्थतियों को पैदा करने में राहु को गर्व महसूस होता है।
राहु प्रधान व्यक्ति अवमानना और अवज्ञा जैसे कार्य करने से पिछे नहीं हटते हैं।राहु स्वार्थी, सुख लिप्सा व उच्चाकांक्षा व्यक्ति के मन में उत्पन्न करता है राहु प्रधान वाले व्यक्ति सदैव अपने हित लाभ के विषय में ही सोचते हैं। राहु कि धातु शीशा है यह दक्षिण दिशा का स्वामी है।
- राहु को भौतिक सुख व महत्वाकाक्षी मानने के साथ-साथ कुन्डली में 3.6.10.11 भाव में शुभ माना गया है अन्य भावों में यह अनिष्टा प्रदान करता है। कुछ विद्वान राहु का गुरू व शुक्र के साथ सम्बन्धों का लाभ प्रद मानते हैं। आप अपनी जन्म कुन्डली में राहु के नक्षत्र का ज्ञान कर निम्न लिखित स्थितियों से अवगत हो सकते हैं कि राहु आपके लिये किस स्थितियों में विराजमान है।
सूर्य के नक्षत्र में स्थित राहु
सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी या उत्तराषाढ़ा पर यदि राहु हो तो जातक को राहु की दशा या अंतर्दशा में उच्च ज्वर, हृदय रोग, सिर में चक्कर, शरीर में झुनझुनाहट, संक्रामक रोग, शत्रुवृद्धि धन हानि, गृह-कलह आदि का सामना करना पड़ता है। उसके मन में अपने भागीदारों के प्रति शंका रहती है। उसका स्थान परिवर्तन, दूर गमन, संक्रामक रोग आदि होते हैं। सूर्य, जो नक्षत्रेश है, के साथ राहु के होने तथा सूर्य के अशुभ 6, 8, 12 स्थान में होने से ऐसा होता है। लेकिन, सूर्य जब शुभ स्थिति में हो तो प्रोन्नति, राज लाभ, प्रसिद्धि, यश तथा नाम प्रतिष्ठा एवं सम्मान में वृद्धि होती है। सूर्य के साथ राहु होने से ग्रहण का योग का निर्माण होता है यदि 6, 8, 12 भाव में ये योग बने और दशा हो तो सर्वाधिक अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।
चंद्र के नक्षत्र में स्थित राहु
चंद्र स्वयं अशुभ स्थिति 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो और राहु उसके नक्षत्र में हो तो राहु के चंद्र के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में अशुभ फल मिलता है। ऐसी स्थिति में जातक की जल में डूबने से मृत्यु, शीत रोग, टी. बी. या स्नोफिलियां हो सकता है। इसके अतिरिक्त पत्नी के रोग ग्रस्त होने या उसकी अकाल मृत्यु के साथ-साथ जातक के अंगों में सूजन अनचाहे स्थान पर स्थानांतरण राजभय की संभावना रहती है।
यदि राहु चन्द्र के साथ 6, 8, 12 भाव में विराजमान हो या किसी भी भाव में चन्द्रमा के साथ राहु के होने से ग्रहण योग का निर्माण होता है जो अशुभ माना गया है यदि मंगल साथ है तो कष्ट कुछ कम हो जाते हैं।
मंगल के नक्षत्र में राहु
राहु मंगल के नक्षत्र मृगशिरा, चित्रा या धनिष्ठा पर होता है तो धन की हानि, अग्नि, चोर तथा डाकू के द्वारा नुकसान, मुकदमे में पराजय तथा पैसे की बर्वादी होती है। इस अवधि में किसी से शत्रुता, मित्र अथवा पार्टनर से धोखा मिलना, पुलिस या अन्य उच्चाधिकारी से विवाद आदि होते हैं। लेकिन मंगल यदि शुभ स्थिति में हो तो भूमि, भवन, और वाहन का लाभ, निर्माण कार्य, ठेकेदारी, बीमा, एजेंसी, जमीन जायदाद के कारोबार आदि से लाभ होता है।
बुध के नक्षत्र में राहु
राहु बुध के नक्षत्र आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती पर हो तो व्यक्ति लोकप्रिय होता है, उसकी आय के कई साधन होते हैं, शासन सत्ता की प्राप्ति, दूर-दराज के लोगों से परिचय तथा उनके साथ कार्य करने की स्थिति बनती है। उसे संतान, वाहन आदि का सुख मिलता है। यदि बुध दुःस्थान 6, 8, 12 भाव में हो तो व्यक्ति को धोखेबाज, छली तथा कपटी बना देता है। उसकी बात पर लोग विश्वास नहीं करते। उसे थायरायड रोग भी हो सकता है।
बृहस्पति के नक्षत्र में राहु
राहु के बृहस्पति के नक्षत्र पुनर्वसु विशाखा या पूर्वभाद्र पर अवस्थित होने से शत्रु पर विजय और चुनाव में जीत होती है। इसके अतिरिक्त लक्ष्मी का आगमन, संतान की उत्पत्ति, परिवार में हर्ष, उल्लास, उमंग एवं सुख में वृद्धि आदि फल मिलते हैं। किंतु बृहस्पति के अशुभ भाव 6, 8, 12 या प्रभाव में होने पर व्यक्ति को अपमान, पराजय, संपत्ति की हानि, कार्य में बाधा बलात्कार जैसे आरोपों आदि का सामना करना पड़ता है।
शुक्र के नक्षत्र में राहु
राहु जब शुक्र के नक्षत्र भरणी, पूर्व फाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा पर हो तो वाहन तथा मूल्यवान और सुंदर वस्तुओं का क्रय सुंदर फर्नीचर आदि से घर की सज्जा, आभूषण आदि का क्रय, संबंधियों से मधुर संबंध, स्त्री सुख, धन-आगमन, आदि परिणाम मिलते हैं। कन्या संतान सुख भी इसी अवधि में होता है। लेकिन शुक्र अशुभ स्थिति 6, 8, 12 में हो तो किसी स्त्री के द्वारा ब्लैकमेलिंग, बलात्कार के आरोप यौन रोग, स्त्री के कारण धन की क्षति आदि की संभावना रहती है।
शनि के नक्षत्र में राहु
राहु जब शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा या उत्तरभाद्र पर हो तो व्यक्ति अपयश, चोट, किसी गंभीर रोग, गठिया या वात से पीड़ा, पित्तजन्य दोष आदि से ग्रस्त तथा मंदिरा का व्यसनी हो सकता है। अपने पार्टनर के प्रति उसके मन में गलतफहमी रहती है। उसके तलाक स्थान परिवर्तन आदि की संभावना भी रहती है।
राहु के नक्षत्र में राहु
यदि राहु अपने नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति या शतभिषा पर हो तो व्यक्ति मानसिक कष्ट, विष भय, स्वास्थ्य में गिरावट, जोड़ों के दर्द, चोट, भ्रम, दुश्ंिचताओं आदि से ग्रस्त होता है। इस अपधि में उसके परिवार में किसी बुजुर्ग की मृत्य,ु जीवन संगिनी का वियोग होता है। इसके अतिरिक्त उसके स्थान परिवर्तन और अपयश की संभावना रहती है। किंतु यदि राहु शुभ ग्रह की महादशा के अंतकाल में होता है तो आनंद, प्रोन्नति तथा विदेश भ्रमण आदि सुयोग देता है।
केतु के नक्षत्र में राहु
राहु केतु के नक्षत्र अश्विनी, मघा या मूल में हो तो जातक शंकालु, स्वभाव का होता है। उदसे सांप का भय होता है और उसकी हड्डी के टूटने तथा बवासीर की संभावना रहती है। उसे जीवन साथी से परेशानी तथा बड़े लोगों से शत्रुता रहती है और उसके धन तथा प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि जन्मकुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो तो व्यक्ति बहुमूल्य आभूषणों की खरीदारी करता है और उसे विवाह, प्रोन्नति, भूमि-भवन आदि का सुख प्राप्त होता है।
राहु कि शान्ति के लिए ओंम भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवें नमः मंत्र का 18 हजार जप रात्रि के समय 4 माला प्रतिदिन करके 45 दिन में जप पूर्ण करना चाहिए उसके पश्चात दशांश से हवन राहु के हवन में दूर्वा घास की आहुतियां अवश्य देनी चाहिए। राहु का दान के- तिल काले, मूली, सरसों का तेल नीले या काले वस्त्र या कम्बल, कच्चा कोयला, सतनजा, गुरूवार शाम को दन हवन करना चाहिए