शनिवार, 28 नवंबर 2009

काल का अर्थ मृत्यु है। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है

जब राहु और केतु के घेरे में अन्य सभी ग्रह आ जाएं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। राहु को सर्प का मुंह तथा केतु को उसकी पूंछ कहते हैं। इसे नागपाश योग भी कहा जाता है। काल का अर्थ मृत्यु है। यदि अन्य ग्रह योग बलवान न हों, तो कालसर्प योग से प्रभावित जातक की मृत्यु शीघ्र हो जाती है या फिर जीवित रहने की अवस्था में उसे मृत्युतुल्य कष्ट होता है। कालसर्प योग से प्रभावित जातक को आजीवन भिन्न-भिन्न तरह के कष्टों, ऋण, बेरोजगारी, संतानहीनता, दाम्पत्य जीवन में सुख का अभाव आदि का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में नागपंचमी के दिन और भाद्रकृष्ण अष्टमी तथा भाद्रशुक्ल नवमी को सर्पों की विशेष पूजा का विधान है। पुराणों में शेषनाग का उल्लेख है जिस पर विष्णु भगवान शयन करते हैं।
सर्पों को देव योनि का प्राणी माना जाता है। नए भवन के निर्माण के समय नींव में सर्प की पूजा कर चांदी का सर्प स्थापित किया जाता है। वेद के अनेक मंत्र सर्प से संबंधित हैं। शौनक ऋषि के अनुसार जिस मनुष्य की धन पर अत्यधिक आसक्ति होती है
, वह मृत्यु के बाद नाग बनकर उस धन पर जा बैठता है।

  • सर्प कुल के नाग श्रेष्ठ होते हैं। नाग हत्या का पाप जन्म-जन्मांतर तक पीछा नहीं छोड़ता। नागवध का शाप संतान सुख में बाधक होता है। शाप से मुक्ति के लिए नाग का विधिवत् पूजन करके उसका दहन किया जाता है तथा उसकी भस्म के तुल्य स्वर्ण का दान किया जाता है।

  • शास्त्रों में सर्प को काल का पर्याय भी कहा गया है। मनुष्य का जीवन और मरण काल के आधीन है। काल सर्वथा गतिशील है, यह कभी किसी के लिए नहीं रुकता। काल प्राणियों को मृत्यु के पास ले जाता है और सर्प भी। कालसर्प योग संभवतः समय की गति से जुड़ा हुआ ऐसा ही योग है जो मनुष्य को परेशान करता है तथा उसके जीवन को संघर्षमय बना देता है।

  • राहु और केतु के बीच एक ओर अन्य सभी ग्रहों के आ जाने पर कालसर्प योग का निर्माण होता है। पाठकों के लाभार्थ, सन् 2008 से अब तक ग्रहों की यह स्थिति कब-कब बनी और आने वाले समय में वर्ष 2040 तक कब-कब बनेगी इसका एक संक्षिप्त और तालिकाबद्ध विवरण यहां प्रस्तुत है।
  1. 11.08.2008 - 16.12.2008 उदित 13.05.2013 - 10.09.2013 उदित
  2. 05.09.2016 - 26.12.2016 अनुदित 15.09.2017 - 01.02.2018 अनुदित
  3. 12.08.2018 - 20.09.2018 अनुदित 25.02.2020 - 24.05.2020 उदित
  4. 01.01.2021 - 26.03.2021 उदित 17.12.2021 - 23.04.2022 उदित
  5. 28.04.2025 - 22.07.2025 अनुदित 23.03.2026 - 11.07.2026 अनुदित
  6. 06.05.2034 - 01.08.2034 उदित 17.06.2035 - 09.08.2035 उदित
  7. 02.03.2036 - 04.07.2036 उदित 29.07.2038 - 12.12.2038 अनुदित
  8. 30.08.2039 - 05.12.2039 अनुदित

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

संसार के न्यायाधिश के सामने माथा टेकना होगा

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अदालती फेर से मुक्त नहीं हो पा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने मायावती से सवाल किया है कि गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर गांव में अन्य लोगों की भूमि के साथ उनके भूखंड का अधिग्रहण क्यों नहीं किया गया। न्यायाधीश एच.एस.बेदी और जे.एम. पांचाल की खंडपीठ ने बादलपुर निवासी खजान सिंह की याचिका पर मायावती को मुख्यमंत्री नहीं वरन व्यक्तिगत हैसियत से जवाब देने के लिए नोटिस भेजा है। राज्य सरकार, गौतमबुद्ध नगर के डीएम और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण को भी नोटिस भेजा गया है,जिन्होंने जून 2007 में सिंह के भूखंड का अधिग्रहण करने के लिए अधिसूचना जारी की थी। न्यायालय ने इस माह के आरंभ में मायावती के पिता प्रभु दयाल और भाई आनंद को भी नोटिस भेजा था। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2009 में अधिग्रहण के खिलाफ सिंह की याचिका को खारिज करके ग्रेटर नोएडा के विकास के लिए सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण को सही ठहराया था। याची खजान सिंह का आरोप है कि सरकार ने उनके सात हजार वर्गमीटर के भूखंड का अधिग्रहण कर लिया, जबकि मायावती के 39,369 वर्गमीटर के भूखंड को छोड़ दिया गया,जहां वह एक बंगला बनवा रही हैं। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया था कि मुख्यमंत्री के भूखंड को इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि वह आवासीय उपयोग के लिए था। सिंह के वकील अशोक माथुर ने भी दावा किया कि सिंह का भूखंड भी आवासीय उपयोग के लिए है। अब कौन क्या कहता है इस का हमे ज्ञान नहीं परन्तु हम कह चूके है http://twitter.com/bhrigujyotish # सूर्य+शनि की युति के उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है 7:10 PM Oct 6th from web * Delete # सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 10 अक्तूबर 2009 को शुक्र भी कन्याराशि मे ग्रहो का खेल क्या कराये देखते है 7:09 PM Oct 6th from web * Delete #5अक्तूबर को मंगम कर्कराशि में प्रवेश और सूर्य+शनि की युति के कारण उत्तरप्रदेश सरकार को अभी परेशान करेगे 17 अक्तूबर के बाद ग्रहो का खेल 11:05 PM Oct 5th from web पर क्या करे अगर को ना देखतो सम्भल जाओ मेरे भाई न जानें कौन सा ग्रह अपना रगं दिखा दे। मगर इतना जरूर हैं राहु शनि के फेर से कोई नही बचा हैं उत्तर प्रदेश्‍ा सरकार को अगर राहु शनि के प्रकोप से बचना हैं तो संसार के न्यायाधिश के सामने माथा टेकना होगा।छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!

सोमवार, 9 नवंबर 2009

शत्रु पक्ष को बलविहीन करने के लिए

देवता मन्त्रों के आधीन होते हैं। अगर इन्हे विधि पूर्वक जपा जाय तो अदभुत लाभ होता है।

मुकद्दमें में सफलता प्राप्त करने के लिए तथा शत्रु पक्ष को बलविहीन करने के लिए: कागज पर हल्दी से निम्न लिखित मंत्र को लिख कर बगलामुखी यंत्र को उसी कागज में थैली से बांध दें। बगलामुखी का ध्यान कर मंत्र का पैतींस बार जप करें। यह प्रयोग पांच दिन तक करें। शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार से शुरू करें। प्रयोग समाप्ति के पश्चात यंत्र को दुर्गा मंदिर में चढ़ा दें।

मंत्र: हलीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां हलीं वाचं मुखं बंधय हलीं जिह्ना कीलय मारय श्रीत्य् हलीं पफट्।।

ह्लीं बगलामुखी सर्व दुश्तानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय

जिव्हां किलय बुद्धिं विनाशाय ह्लीं स्वाहा

बुधवार, 4 नवंबर 2009

आतंक का पर्याय भी कहा जाता है पवित्र, पीपल वृक्ष को

आतंक का पर्याय भी कहा जाता है पवित्र, पीपल वृक्ष को
पीपल का सामान्य-पीपल एक सर्वज्ञात, सर्वत्र सुलभ, बिना किसी पोषण के स्वयं ही विशालकाय हो जाने में समर्थ और हिन्दूधर्म में चिर-प्राचीन-काल से पूज्य एक ऐसा वृक्ष है, जिसके साथ सर्वाधिक मान्यताएं, विश्वास, अन्ध विश्वास, लोक-कथाएं और पूजन-विधान प्रचलित है।यह वृक्ष बरगद और पाकर-गूलर की जाति का है। किन्तु इसके फल सबसे छोटे होते हैं। यह फल मुंगफली के छोटे दाने के बराबर होता है, जो बरगद-गूलर की भांति बजों से भरा होता है, ये बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकडों वर्षो तक खडा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हें। नाममात्र की वायु में भी ये दोलायमान हो उठते हैं। अन्य किसी पेड के पत्ते इस तरह नहीं हिलते-कांपते, जैसे पीपल के पत्ते थरथराते हुए हिलते रहते हैं। रामायण में राजा दशरथ की मनःस्थिति के वर्णन में दोलायमान पीपल पत्र की उपमा दी गयी है।‘‘पीपर पात सरिस मन डोला’’वसन्तु ऋतु में पीपल की नयी कोंपलें धानी रंग की चमक से बहुत ही शोभायमान लगती है। बाद में, वह हरा और फिर गहरा हरा हो जाता है।पीपल के पत्ते जानवरों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं, और लकडी ईधन के काम आती है। वैसे, हिन्दूधर्म की मान्यता है कि पीपल का वृक्ष (डाल, पत्ते, टहनी, तना आदि) काटना नहीं चाहिए। ब्राह्यणों में इस वर्जना को विशेष मान्यता प्राप्त है। यद्यपि अपने आप गिरे हुए टूटे-फूटे वृक्ष की लकडी ईधन के कामे में लायी जाती है तथापि वह वृक्ष पवित्र माना जाता है और इसे तोडने, काटने, जलाने वाले लोग, भय, शंका, वर्जना, अमगंल की दुष्कामना से प्रभावित रहते हैं।जहां तक काष्ठोपयोग की बात है, पीपल की लकडी किसी भी इमारती काम या फर्नीचर के लिए अनुकूल नहीं होती। होली या भट्टी में जलाने के अलावा, इसे लोग चूल्हे में जलाते भी भय-शंका में पड जाते हैं। कारण कि यह पेड देव-वृक्ष कहा जाता है। इस पर देवताओं का वास माना जाता है। और देवता चाहे न भी रहते हों, परन्तु इस वृक्ष पर भूत, प्रेत, पिचास और बेताल आदिका तथा डाकिनी-शाकिनी का निवास अवश्य माना जाता है। ब्रह्यराक्षस नाम का प्रेतयोनि प्राणी प्रचलित मान्यता के अनुसार पीपल के पेड पर निवास करता है। कारण चाहे जो भी हो, चाहे कोई वैज्ञानिक दुष्प्रभाव हो अथवा यह सब आध्यात्मिक निषेध, पीपलवृक्ष के नीचे रात में कोई सोता नहीं। पीपल-तले लघुशकां और अन्य कोई अशुद्ध, घृणित, अपवित्र कार्य करना मना है। ऐसा कई बार सुनने-पढने में आया है कि अमुक व्यक्ति ने पीपल के पेड तले लघुशंका करदी और उसी शाम घर पहुंचते-पहुंचते वही गंभीर रूप में किसी अज्ञात बीमारी का शिकार हो गया। ऐसे लोग ज्वर, उन्मत्ता, भ्रम, मूच्र्छा और ऐसी ही अन्य मनो-व्याधियों से ग्रस्त हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष पवित्र, पूज्य, देव स्थान माना जाता है, साथ ही प्रेतों का निवास भी होने के कारण यह आतंक का पर्याय कहा जाता है। शुभ और अशुभ दोनों तरह के कृत्य इसकी छाया में सम्पादित होते हैं।यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, पुराण कथा आदि के लिए पीपल की छाया श्रेष्ठ मानी गयी है। इसी तरह पीपल के नीचे मृतक का दशगात्र विधान (क्रिया-कर्म, पिण्डदान आदि) पूरा करने का प्रचलन है। हिन्दूधर्म में क्रिया-कर्मे के पश्चात् भूतात्मा की शान्ति के लिए, पीपल के वृक्ष में घट बांधने और सायंकाल उस पर दीपक जलाने का नियम है। इस विवेचना से सिद्ध होता हैकि पीपल वृक्ष को हमारे हिन्दू समाज में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है और यह असंदिग्ध रूप में पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।तन्त्र साधना में पीपल का महत्व- नवग्रहों में शनि सर्वाधिक पीडक होता है। शास्त्रों में लिखा है कि शनि-पीडा से त्राण पाने के लिए पीपल पर जल चढाना चाहिए। यही नहीं, शनिवार की संध्या को पीपल के नीचे बैठकर दीपक जलाना और पश्चिमाभिमुख होकर शनि की पूजा करना भी परम लाभकारी होता है।भूत-प्रेत, भैरव आदि की साधना- देव वर्ग से इतर प्रेतयोनि वाली शक्तियों, बैताल, भैरव आदि तथायक्षिणी-साधना के लिए पीपल की छाया, पीपल के पास जड के पास बैठना, अनिवार्य होता है।और कुछ न करें, पीपल वृक्ष पर नित्य स्नानोपरान्त एक लोटा जल चढाते रहें तो भी उसमें निवास करने वाली अद्ृश्य आत्मा प्रेतयोनि तृत्त होकर सहायक बन जाती है।देवोपासना और पीपल- कितने ही मन्दिर पीपल-वृक्ष के पास बने होते हें। कभी-कभी मन्दिर के पास पीपल स्वतः उग आता है। इसके विपरीत कभी-कभी श्रद्धालुजन पीपल के नीचे जड के पास स्थान बनाकर, कुछ मूर्तियों को स्थापित कर देते हैं। इस तरह पीपल वृक्ष और मूतियां दोनों की पूजा होने लगती है। यह भी एक बहुत अनुभूत सत्य हे कि पीपल की सेवा करने वाले व्यक्ति किसी न किसी चमत्कारिक ढंग से लाभान्वित अवश्य होते हैं।दारिद्र- निवारण के लिए- पीपल वृक्ष के नीचे शिव-प्रतिमा स्थापित करके, नित्य उस पर जल चढायें और पूजन अर्चन करें। कम से कम 5 या 11 माला मन्त्र का जप (ॐ नमः शिवाय) करें। कुछ दिन की नियमित-साधना से परिणाम सामने आ जाता है। प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को पूजना चाहिए, दिन में तो चन्दन पुष्प और अक्षत आदि का प्रयोग होता ही है।प्रत्येक पूर्णिमा को प्रातः काल पीपल के वृक्ष पर माँ लक्ष्मी का आगमन होता है। अतः आर्थिक स्थिरता हेतु यदि साधक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष के समीप जाकर माँ लक्ष्मी की उपासना करें तो उनकी कृपा प्राप्ति में कोई संदेह नही है। हनुमानजी के दर्शन- पीपल वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर, हनुमानजी का पूजन स्तवन, मगंलवार का व्रत, रात्रि में एकान्त शयन, ब्रह्मचर्य और मन्त्र का नियमित जप (ह्रीं हनुमते रामदूताय नमः) करने से हनुमानजी के दर्शन हो जाते हैं। परन्तु इस साधना साधक को आस्थावान साहसी, ब्रह्मचारी, संन्यासी और सात्विक होना चाहिए। हनुमानजी स्वप्न में अथवा प्रत्यक्ष में आकर दर्शन अवश्य देते हैं। दैनिक जागरण मेरठ में दि०05-11-2009 को मेरा यह लेख प्रका‍शित हुआ है।छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!