आतंक का पर्याय भी कहा जाता है पवित्र, पीपल वृक्ष कोपीपल का सामान्य-पीपल एक सर्वज्ञात, सर्वत्र सुलभ, बिना किसी पोषण के स्वयं ही विशालकाय हो जाने में समर्थ और हिन्दूधर्म में चिर-प्राचीन-काल से पूज्य एक ऐसा वृक्ष है, जिसके साथ सर्वाधिक मान्यताएं, विश्वास, अन्ध विश्वास, लोक-कथाएं और पूजन-विधान प्रचलित है।यह वृक्ष बरगद और पाकर-गूलर की जाति का है। किन्तु इसके फल सबसे छोटे होते हैं। यह फल मुंगफली के छोटे दाने के बराबर होता है, जो बरगद-गूलर की भांति बजों से भरा होता है, ये बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकडों वर्षो तक खडा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हें। नाममात्र की वायु में भी ये दोलायमान हो उठते हैं। अन्य किसी पेड के पत्ते इस तरह नहीं हिलते-कांपते, जैसे पीपल के पत्ते थरथराते हुए हिलते रहते हैं। रामायण में राजा दशरथ की मनःस्थिति के वर्णन में दोलायमान पीपल पत्र की उपमा दी गयी है।‘‘पीपर पात सरिस मन डोला’’वसन्तु ऋतु में पीपल की नयी कोंपलें धानी रंग की चमक से बहुत ही शोभायमान लगती है। बाद में, वह हरा और फिर गहरा हरा हो जाता है।पीपल के पत्ते जानवरों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं, और लकडी ईधन के काम आती है। वैसे, हिन्दूधर्म की मान्यता है कि पीपल का वृक्ष (डाल, पत्ते, टहनी, तना आदि) काटना नहीं चाहिए। ब्राह्यणों में इस वर्जना को विशेष मान्यता प्राप्त है। यद्यपि अपने आप गिरे हुए टूटे-फूटे वृक्ष की लकडी ईधन के कामे में लायी जाती है तथापि वह वृक्ष पवित्र माना जाता है और इसे तोडने, काटने, जलाने वाले लोग, भय, शंका, वर्जना, अमगंल की दुष्कामना से प्रभावित रहते हैं।जहां तक काष्ठोपयोग की बात है, पीपल की लकडी किसी भी इमारती काम या फर्नीचर के लिए अनुकूल नहीं होती। होली या भट्टी में जलाने के अलावा, इसे लोग चूल्हे में जलाते भी भय-शंका में पड जाते हैं। कारण कि यह पेड देव-वृक्ष कहा जाता है। इस पर देवताओं का वास माना जाता है। और देवता चाहे न भी रहते हों, परन्तु इस वृक्ष पर भूत, प्रेत, पिचास और बेताल आदिका तथा डाकिनी-शाकिनी का निवास अवश्य माना जाता है। ब्रह्यराक्षस नाम का प्रेतयोनि प्राणी प्रचलित मान्यता के अनुसार पीपल के पेड पर निवास करता है। कारण चाहे जो भी हो, चाहे कोई वैज्ञानिक दुष्प्रभाव हो अथवा यह सब आध्यात्मिक निषेध, पीपलवृक्ष के नीचे रात में कोई सोता नहीं। पीपल-तले लघुशकां और अन्य कोई अशुद्ध, घृणित, अपवित्र कार्य करना मना है। ऐसा कई बार सुनने-पढने में आया है कि अमुक व्यक्ति ने पीपल के पेड तले लघुशंका करदी और उसी शाम घर पहुंचते-पहुंचते वही गंभीर रूप में किसी अज्ञात बीमारी का शिकार हो गया। ऐसे लोग ज्वर, उन्मत्ता, भ्रम, मूच्र्छा और ऐसी ही अन्य मनो-व्याधियों से ग्रस्त हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष पवित्र, पूज्य, देव स्थान माना जाता है, साथ ही प्रेतों का निवास भी होने के कारण यह आतंक का पर्याय कहा जाता है। शुभ और अशुभ दोनों तरह के कृत्य इसकी छाया में सम्पादित होते हैं।यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, पुराण कथा आदि के लिए पीपल की छाया श्रेष्ठ मानी गयी है। इसी तरह पीपल के नीचे मृतक का दशगात्र विधान (क्रिया-कर्म, पिण्डदान आदि) पूरा करने का प्रचलन है। हिन्दूधर्म में क्रिया-कर्मे के पश्चात् भूतात्मा की शान्ति के लिए, पीपल के वृक्ष में घट बांधने और सायंकाल उस पर दीपक जलाने का नियम है। इस विवेचना से सिद्ध होता हैकि पीपल वृक्ष को हमारे हिन्दू समाज में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है और यह असंदिग्ध रूप में पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।तन्त्र साधना में पीपल का महत्व- नवग्रहों में शनि सर्वाधिक पीडक होता है। शास्त्रों में लिखा है कि शनि-पीडा से त्राण पाने के लिए पीपल पर जल चढाना चाहिए। यही नहीं, शनिवार की संध्या को पीपल के नीचे बैठकर दीपक जलाना और पश्चिमाभिमुख होकर शनि की पूजा करना भी परम लाभकारी होता है।भूत-प्रेत, भैरव आदि की साधना- देव वर्ग से इतर प्रेतयोनि वाली शक्तियों, बैताल, भैरव आदि तथायक्षिणी-साधना के लिए पीपल की छाया, पीपल के पास जड के पास बैठना, अनिवार्य होता है।और कुछ न करें, पीपल वृक्ष पर नित्य स्नानोपरान्त एक लोटा जल चढाते रहें तो भी उसमें निवास करने वाली अद्ृश्य आत्मा प्रेतयोनि तृत्त होकर सहायक बन जाती है।देवोपासना और पीपल- कितने ही मन्दिर पीपल-वृक्ष के पास बने होते हें। कभी-कभी मन्दिर के पास पीपल स्वतः उग आता है। इसके विपरीत कभी-कभी श्रद्धालुजन पीपल के नीचे जड के पास स्थान बनाकर, कुछ मूर्तियों को स्थापित कर देते हैं। इस तरह पीपल वृक्ष और मूतियां दोनों की पूजा होने लगती है। यह भी एक बहुत अनुभूत सत्य हे कि पीपल की सेवा करने वाले व्यक्ति किसी न किसी चमत्कारिक ढंग से लाभान्वित अवश्य होते हैं।दारिद्र- निवारण के लिए- पीपल वृक्ष के नीचे शिव-प्रतिमा स्थापित करके, नित्य उस पर जल चढायें और पूजन अर्चन करें। कम से कम 5 या 11 माला मन्त्र का जप (ॐ नमः शिवाय) करें। कुछ दिन की नियमित-साधना से परिणाम सामने आ जाता है। प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को पूजना चाहिए, दिन में तो चन्दन पुष्प और अक्षत आदि का प्रयोग होता ही है।प्रत्येक पूर्णिमा को प्रातः काल पीपल के वृक्ष पर माँ लक्ष्मी का आगमन होता है। अतः आर्थिक स्थिरता हेतु यदि साधक प्रत्येक पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष के समीप जाकर माँ लक्ष्मी की उपासना करें तो उनकी कृपा प्राप्ति में कोई संदेह नही है। हनुमानजी के दर्शन- पीपल वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर, हनुमानजी का पूजन स्तवन, मगंलवार का व्रत, रात्रि में एकान्त शयन, ब्रह्मचर्य और मन्त्र का नियमित जप (ह्रीं हनुमते रामदूताय नमः) करने से हनुमानजी के दर्शन हो जाते हैं। परन्तु इस साधना साधक को आस्थावान साहसी, ब्रह्मचारी, संन्यासी और सात्विक होना चाहिए। हनुमानजी स्वप्न में अथवा प्रत्यक्ष में आकर दर्शन अवश्य देते हैं। दैनिक जागरण मेरठ में दि०05-11-2009 को मेरा यह लेख प्रकाशित हुआ है।छवी मेरी नहीं है इसमे मेरे द्धारा गुगल का सहयोग प्राप्त किया गया!