मंगलवार, 29 सितंबर 2009

दीपावली--2009,दीपावली पर किए जाने वाले टोटके - कार्यसिद्धि के लिए


जिसके पास धन है उसी के सब मित्र होते हैं, उसी के सब भाई बंधु और पारिवारिक जन होते हैं। धनवान व्यक्ति को ही श्रेष्ठ व्यक्ति माना जाता है। जिसके पास धन हो, वह सुखपूर्वक अपना जीवन बिताता है। 1--आपका व्यवसाय यदि कम हो गया हो या किसी ने उसे बांध दिया हो, तो दीपावली से पूर्व धनतेरस के दिन पूजा स्थल पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर ‘धनदा यंत्र’ को स्थापित करें और धूप, दीप दिखाएं, नैवेद्य अर्पित करें। यह क्रिया करते समय मन ही मन श्रीं श्रीं मंत्र का जप करते रहें। प्रतिदिन नहा धोकर श्रीं यंत्र का निष्ठापूर्वक दर्शन करें।2--दीपावली पूजन के समय 501 ग्राम छुहारों का पूजन करें। उनका तिलक करें, धूप दीप से आरती उतारें, प्रसाद का भोग लगाएं और रात्रि भर पूजा स्थान पर रखा रहने दें। अगले दिन उन्हें लाल चमकीले या मखमली कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें। 51 दिन तक प्रतिदिन एक रुपया किसी भी मंदिर में माता लक्ष्मी को अर्पित करें। इससे वर्ष भर लक्ष्मी स्थिर रहती है।3--कोर्ट कचहरी में मुकदमा चल रहा हो तो पांच गोमती चक्रों को दीपावली के दिन पूजन पर रखें। जब तारीख पर कोर्ट जाना हो तो उन्हें जेब में रख कर जाएं, जाते समय मन ही मन ईश्वर से विजय की प्रार्थना करते रहें, सफलता प्राप्त होगी।4--यदि आपका उधार लिया हुआ पैसा कोई लंबे अरसे से नहीं लौटा रहा हो तो, उस व्यक्ति का नाम लेकर ग्यारह गोमती चक्र पर तिलक लगा कर, इष्ट देव का स्मरण कर, उससे निवेदन करें, कि मेरा पैसा जल्द से जल्द लौटा दो। इसके बाद पूजित गोमती चक्रों को पीपल के वृक्ष के पास जमीन में दबा दें।5--व्यापार में हानि, धन नाश, बढ़ते कर्ज, व्यापार में बाधा आदि से मुक्ति पाने के लिए। दीपावली के दिन श्वेतार्क गणपति को गंगाजल से स्नान कराकर लाल वस्त्र पर रखें। फिर उनके समीप लाल चंदन का एक टुकड़ा, ग्यारह धनदायी कौड़ियां, ग्यारह गोमती चक्र एवं तांबे की पादुकाएं या तांबे का एक टुकड़ा रखें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और सफेद कागज पर लाल चंदन से अपनी दुकान का नाम लिखकर इसी सामग्री के पास रखें। लाल चंदन की माला से ‘‘ॐ गं गणपतये नमः’’ का एक माला जप करें। लाल चंदन की माला न हो तो रुद्राक्ष की माला से भी जप कर सकते हैं। फिर सारी सामग्री को उसी लाल वस्त्र में लपेट कर पोटली बना लें और उसे लाल मौली या रिबन से बांधें, धूप दीप दिखाएं व व्यापार स्थल में उत्तर पूर्व दिशा में बांध दें। नित्य प्रातः व्यापार शुरू करने से पहले, उसे धूप दीप दिखाएं। ऐसा करते समय मन ही मन गणपति के पूर्वोक्त मंत्र का जप करते रहे। ऋण मुक्ति का यह बहुत प्रभावी उपाय है।6--गाय को प्रतिदिन दो रोटी तेल लगाकर गुड़ रखकर खिलाएं, पक्षियों को दाना व जल दें और अपनी आय में से दो गरीबों को भरपेट भोजन कराते रहें, लाभ होगा।7--कार्यसिद्धि के लिए कार्यसिद्धि यंत्र अत्यंत फलदायी है। अपनी मनोकामना को लाल चंदन से भोजपत्र पर लिख लें। लाल या पीले वस्त्र पर कार्यसिद्धि यंत्र स्थापित करें। अगरबत्तियां व घी का दीपक जलाएं और आरती उतारें। कार्य सिद्ध हो जाने पर प्रभु के नाम पर कोई सत्कार्य जैसे कार्य करने को कहें। उदाहरणतया पांच गरीबों को भोजन कराने, या घर में भजन कीर्तन कराने या फिर कोई भी सेवा करने का प्रण करें, कार्य सिद्ध हो जाने पर उसे भूलें नहीं।अब भोजपत्र को तह करके कार्यसिद्धि यंत्र के नीचे रख दें। नित्य प्रति पांच अगरबत्तियां जलाएं और प्रतिदिन इक्कीस बार यंत्र के सामने अपनी भोजपत्र पर लिखी मनोकामना को दोहराएं, अगरबत्तियों को मुख्यद्वार पर लगाएं। कुछ ही दिनों में आपका कार्य सिद्ध हो जाएगा।8--यदि कमाई का कोई जरिया न हो, तो एक गिलास कच्चे दूध में, चीनी डाल कर जामुन वृक्ष की जड़ में चढ़ाएं। यह क्रिया धनतेरस से शुरू करें और चालीस दिन लगातार करें। कभी-कभी सफाई कर्मचारी को चाय की 250 ग्राम पत्ती या सिगरेट दान करें। सफेद धागे में दीपावली पूजन के पश्चात तांबे का सिक्का गले में पहनें। उस दिन रसोईघर में बैठकर भोजन करें। लाभ स्वयं महसूस करेंगे।9--घर में यदि किसी दिन कोई बच्चा सुबह उठते ही बिना कारण रोने लगे तो प्रत्येक सदस्य को बीस मिनट तक ॐ का उच्चारण करना चाहिए।10--दीपावली पूजन में लकड़ी की एक डिब्बी में सिंदूर की एक परत बनाकर उस पर पांच गोमती चक्र रखें और फिर सिंदूर से पूरी डिब्बी को भरकर लाल वस्त्र में लपेटकर धन स्थान में रख दें। जीवन भर पैसे का अभाव नहीं रहेगा।11--धन की आय, नित्य निरोग रहना, स्त्री का अनुकूल तथा प्रियवादिनी होना, पुत्र का आज्ञा में रहना तथा धन पैदा करने वाली विद्या का ज्ञान - ये छः बातें इस मनुष्य लोक में सुखदायिनी होती हैं। विदुरनीतिलक्ष्मी जी धन, ऋद्धि- सिद्धि तथा ऐश्वर्ययिनी हैं। उनके बिना देवता भी श्रीहीन हो जाते हैं। पुराणों में कथा है कि जब लक्ष्मी जी इंद्र से असंतुष्ट होकर क्षीरसागर में चली गईं तो स्वर्ग ऐश्वर्यहीन हो गया। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया और समुद्र मंथन किया गया। समुद्र से लक्ष्मी जी के साथ चैदह रत्न भी प्राप्त हुए। लक्ष्मी जी ने विष्णु भगवान का वरण किया। देवताओं ने लक्ष्मी जी से निवेदन कर उनका पूजन किया और लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर धन ऐश्वर्य प्रदान किया। लक्ष्मी जी देवलोक में स्वर्गलक्ष्मी के नाम से, पाताललोक में नागलक्ष्मी, राजाओं के यहां राजलक्ष्मी तथा गृहस्थों के यहां गृहलक्ष्मी के रूप में जानी जाती हैं। आठों सिद्धियां प्रदान करने वाली अष्टलक्ष्मी इस प्रकार हैं- धन लक्ष्मी, ऐश्वर्यलक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और अधि लक्ष्मी।लक्ष्मी से संबंधित साधना हेतु दीपावली सर्वश्रेष्ठ समय है। दीपावली कालरात्रि होती है। इस दिन यंत्र-मंत्र-तंत्र की सिद्धि शीघ्र हो जाती है। इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा हर व्यक्ति करता है। दीपावली लक्ष्मीजी को रिझाने का दिन होता है।12--दीपावली की रात्रि में:श्री यंत्र, कुबेर यंत्र, कनक धारा श्री यंत्र या लक्ष्मी यंत्र को पूजा स्थल पर दीपावली पर स्थापित करें और वर्ष भर प्रतिदिन किसी भी लक्ष्मी मंत्र का एक माला जप करते रहें। इससे धन आगमन बना रहता है।13--धनदायक यंत्र: दीपावली की रात्रि को इस यंत्र को लाल चंदन से या कस्तूरी से या गोरोचन से अखंडित भोजपत्र पर अनार की कलम से लिखें और गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के साथ पूजा स्थल पर स्थापित करें और कमलगट्टे की माला से निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।बाद में इसी मंत्र को जपते हुए घी की आहुति 21 बार हवन में डालें। पूजन के पश्चात इसे धन रखने की जगह तिजोरी आदि में रखें। धन की बरकत बनी रहेगी।14--दीपावली के दिन अपने पूजा स्थल में प्राण प्रतिष्ठा युक्त श्री यंत्र या कनक धारा यंत्र की स्थापना करें और श्री सूक्तम के बारह पाठ करें और फिर प्रतिदिन दैनिक पूजा के साथ श्री सूक्तम के बारह पाठ करते रहें। इससे धनाभाव निश्चित रूप से दूर होता है।15--दीपावली के दिन कमलगट्टे की माला से ‘ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नमः’ मंत्र का जप करें। ऐसा करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर नियमित रूप से प्रतिदिन इससे एक माला जप करते रहें। इससे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।चैंतीसा यंत्र: यह यंत्र सुख समृद्धिदायक माना गया है। इसे दीपावली की रात्रि या रवि पुष्य या गुरु पुष्य के दिन केसर की स्याही और अनार की लेखनी से भोज पत्र पर लिखंे। इसके बाद इसकी षोडशोपचार पूजा करें। यंत्र लिखते समय लक्ष्मी जी के किसी मंत्र का जप करते रहें। फिर इसे घर में या अपनी दुकान में कहीं भी रख सकते हैं। इससे लक्ष्मी जी का आगमन बना रहता है।16--व्यापार हेतु लाभदायक: यदि आप निरंतर व्यापार में घाटे से परेशान हैं तो यह प्रयोग अवश्य करें। इस यंत्र को चांदी अथवा सोने के पत्र पर किसी शुभ मुहूर्त में खुदवाएं। इसके लिए धन त्रयोदशी का दिन श्रेष्ठ है। फिर दीपावली के एक दिन पूर्व अर्थात् कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में इसे शुद्ध स्थान पर स्थापित करें। सफेद आसन पर बैठकर और सफेद वस्त्र पहनकर ‘‘ॐ ह्रीं श्रीं नमः’’ मंत्र का किसी भी सफेद माला से दस माला जप करें। यंत्र पूजन के लिए सफेद फूलों का प्रयोग करें। यह प्रयोग आगे 21 दिन तक करें। ऐसा करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। फिर इसे अपनी तिजोरी में या धन रखने के स्थान पर रखें, व्यापार में लाभ मिलने लगेगा ।इस प्रकार अनेकानेक यंत्र-मंत्र-तंत्र हैं जिनकी साधना कर हम धन समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। दीपावली के दिन अथवा किसी भी शुभ मुहूर्त में कोई न कोई साधना अवश्य करनी चाहिए ताकि धनागमन बना रहे इस बात को कभी न भूलें- लक्ष्मी जी का चित्र में मेरा कोई योगदन नहीं हैं मेरी पोती ने नेट से लोड कि हैं

सोमवार, 28 सितंबर 2009

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापाप

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापापआज सुबह मै पूजा में बैठा हि था कि मोबाईल बजने लगा मेरे शिष्य का फोन था कह रहा था कि यहां पर जागरण में छपा हैं कि पुतला जला तो मौत हैं मुझे भी पढने कि इच्छा हुई फैक्स मिला पढने में नही आया फिर थोडी देर में फोन आया तो कहां आप इसे हाथ सें लिख कर भेजो बेचारे ने मेहनत करी पढा आर्श्चय हुआ फिर सोचा यह जानकारियां सभी को हो इस कारण लिख रहां हूं। जागरण टीम, बैजनाथ/धर्मशाला : देशभर में भले ही विजयदशमी की धूम हो मगर एक जगह ऐसी भी है जहां लंकापति रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है। यह इलाका है कांगड़ा जिले का बैजनाथ जहां मान्यता है कि यदि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो मृत्यु निश्चित है। शिवनगरी के नाम से मशहूर बैजनाथ में रावण के चरित्र का एक और पहलू भी उजागर होता है। महापंडित रावण ज्ञानी, पराक्रमी, तपस्वी व शिवभक्त था। यही कारण है कि बैजनाथ में आज भी दशहरे वाले दिन रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है। मान्यता के अनुसार रावण ने कुछ वर्ष बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। शिव के सामने उनके परमभक्त के पुतले को जलाना उचित नहीं था और ऐसा करने पर दंड तत्काल मिलता था, लिहाजा रावणदहन यहां नहीं होता। 1967 में बैजनाथ में एक कीर्तन मंडली ने क्षेत्र में दशहरा मनाने का निर्णय लिया। 1967 में दशहरे की परंपरा शुरू होने के एक साल के भीतर यहां इस उत्सव को मनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले व रावण के पुतले को आग लगाने वालों की या तो मौत होने लगी या उनके घरों में भारी तबाही हुई। यह सिलसिला 1973 तक चलता रहा। 1973 में तो बैजनाथ में प्रकृति ने भी कहर बरपाया तथा पूरे क्षेत्र में फसलों को बर्बाद कर दिया। इन घटनाओं को देखते हुए बैजनाथ में दशहरा मनाना बंद कर दिया गया। बैजनाथ स्थित मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रावण द्वारा कैलाश से लंका ले जाए जा रहे उसी शिवलिंग से जोड़ा जाता है, जो उसे शिव की घोर तपस्या के बाद वरदान के रूप में मिला था। शिव द्वारा बीच रास्ते में शिवलिंग को भूमि में न रखने की शर्त को पूरा न कर पाने के कारण यह शिव लिंग बैजनाथ में स्थापित हो गया। इसके बाद रावण ने बैजनाथ में भगवान शिव की फिर तपस्या की। बैजनाथ में बिनवा पुल के पास स्थित एक मंदिर को रावण का मंदिर है जिसमें शिवलिंग व उसी के पास एक बड़े पैर का निशान है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। इसके बाद शिव मंदिर के पूर्वी द्वार में खुदाई के दौरान एक हवन कुंड भी निकला था। इस कुंड के समक्ष रावण ने हवन कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।

रविवार, 27 सितंबर 2009

2009 में अहोई अष्टमी की तिथि 11 अक्टूबर को है।


अहोई अष्टमी व्रत पूजन
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। इस दिन से दीपावली का पर्व प्रारंभ हो जाता है। इस वर्ष सन् 2009 में अहोई अष्टमी की तिथि 11 अक्टूबर को है। इस व्रत को वे स्त्रियां करती हैं, जिनके सन्तान होती हैं।
बच्चों की मां दिन भर व्रत रखें। सायंकाल अष्ट कोष्ठकी अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएं। उस पुतली के पास सेई तथा सेई के बच्चों के चित्र भी बनाएं, जैसा कि पुस्तक में स्याऊ माता का चित्र दिया गया है या अहोई अष्टमी का चित्र मंगवा कर लगा लें तथा उसका पूजन कर सूर्यास्त के बाद अर्थात् तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चैक पूर कर एक लोटे में जल भरकर एक पटले पर कलश की भांति रख कर पूजा करें। अहोई माता का पूजन करके माताएं कहानी सुनें।
पूजा के लिए चांदी की अहोई पेंडल के रूप में बनाएं, जिसे स्याऊ भी कहते हैं। डोरे में चांदी के मोती रूपी दाने डलवा लें फिर अहोई की रोली, चावल दूध व भात से पूजा करें और जल से भरे लोटे पर सतिया बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा रुपये का वायना निकालकर रख लें और सात दानें गेहूं लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला को गले में पहन लें। जो वायना निकाल कर रखा था उसे सासू जी के पांव लगाकर आदर पूर्वक उन्हें दे देवें।
इसके बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर स्वयं भोजन करें। दीपावली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतार कर उसका गुड़ से भोग लगावें और जल के छींटे देकर मस्तक झुकाकर रख दें। जितने बेटे हों उतनी बार तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार चांदी के दो-दो दाने अहोई में डालती जाएं। ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित नए मंगल करती रहती है। उस दिन पण्डितों को पेठा, दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
अहोई का उजमन - जिस स्त्री के बेटा हुआ हो, अथवा बेटे का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूड़ियां रखकर उन पर थोड़ा हलवा रखें। साथ ही एक पीली साड़ी और ब्लाउज उस पर रुपये रखकर थाल के चारों तरफ हाथ फेर श्रद्धापूर्वक सास जी के पांव लगाकर वह सामान सास जी को देवें, साड़ी तथा रुपये सासु जी अपने पास रख लें तथा हलवा पूरी का वायना बांट दें। बहन बेटी के यहां भी वायना भेजना चाहिए।
कथा- एक नगर में एक साहूकार रहा करता था। उसके सात लड़के थे। एक दिन उसकी स्त्री ख्दान में मिट्टी खोदने के लिए गई और ज्यों ही उसने मिट्टी में कुदाल मारी त्यों ही सेही के बच्चे कुदाल की चोट से सदा के लिए सो गए। इसके बाद उसने कुदाल को स्याहूं के खून से सना देखा, तो उसे सेही के बच्चों के मर जाने का बड़ा दुःख हुआ परन्तु वह विवश थी और यह काम उससे अनजाने में हो गया था।
इसके बाद वह बिना मिट्टी लिए ही खेद करती हुई अपने घर आ गई। उधर जब सेही अपने घर में आई, तो अपने बच्चों को मरा देखकर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चों को मारा है, उसे भी इसी प्रकार का कष्ट होना चाहिए।
तत्पश्चात् सेही के श्राप से सेठानी के सातों लड़के एक साल के अन्दर ही मर गए। इस प्रकार अपने बच्चों को असमय में काल के मुंह में चले जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुखी हुए कि उन्होंने किसी तीर्थ पर जाकर अपने प्राणों को तज देना उचित समझा।
इसके बाद वे घर बार छोड़ कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर चल दिये और खाने पीने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति और साहस रहा तब तक चलते ही रहे और जब वे पूर्णतया अशान्त हो गए तो अन्त में मूच्र्छित होकर गिर पड़े।
उनकी यह दशा देखकर भगवान् करुणा सागर ने उनको भी मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अन्त चाहा और इसी अवसर पर आकाशवाणी हुई कि - हे सेठ! तुम्हारी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय ध्यान न देकर सेही के बच्चों को मार दिया था, इसी कारण तुम्हें अपने बच्चों का दुःख देखना पड़ा। यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊ की सेवा करोगे और अहोई माता देवी का विधि-विधान से व्रत आरम्भ कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं दोगे, तो तुम्हें भगवान् की कृपा से पुनः सन्तान का सुख प्राप्त होगा।
इस प्रकार की आकाशवाणी सुनकर सेठ सेठानी कुछ आशावान् हो गए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए अपने घर को चले आए। इसके बाद श्रद्धा शक्ति से न केवल अहोई माता के व्रत के साथ गऊ माता की सेवा करना आरम्भ कर दिया अपितु सब जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का परित्याग कर दिया।
ऐसा करने के पश्चात् भगवान् की कृपा से सेठ और सेठानी पुनः सातों पुत्र वाले होकर और अगणित पौत्रों के सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगने के पश्चात् स्वर्ग को चले गए।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता। उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

दीपावली पर इस बार तिथियों की उलझन,लक्ष्मी का वाहन

दीपावली पर इस बार तिथियों की उलझन,,भारतीय परंपरा में उल्लू माना जाता है, लेकिनइस बार तिथियों की उलझन कुछ ऐसी हो गई है कि उदयकाल में अलग तिथि रहेगी और शाम को अलग। दीपोत्सव शाम की तिथियों के आधार पर मनाए जाने से इसके पांचों त्योहार एक दिन पहले ही मना लिए जाएंगे।2001 में भी यहीं संयोग था : दीपोत्सव के एक दिन पहले मनाने की स्थिति 2001 में भी बन चुकी है। तब 12, 13, 14, 15 व 16 नवंबर को उदयकाल व पर्वकाल में अलग तिथियां होने से एक दिन पूर्व मनाया गया था। अब 2020 में दीपोत्सव एक दिन पूर्व मनाया जाएगा। यहां रोचक बात यह है कि 2001 की भांति 2020 में भी दीपोत्सव की तारीख 12 से 16 नवंबर तक।‘17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है। इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।पंचांगों के आधार पर लिखा जा सकता हैं। प्रदोश काल ---सायं काल 05-47 से 08-20 तक रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक सर्वश्रेष्ठ समय रात्रि के 07से 7-55 बजे तक इस समय में प्रदोषकाल,एवं स्थिर लग्न वृषभ तथा शनिदेव कि राशि कुम्भ का स्थिर नवांश भी रहेगा।लक्ष्मी का वाहन वैसे तो भारतीय परंपरा में उल्लू माना जाता है, लेकिन भारतीय ग्रंथों में ही इनके कुछ अन्य वाहनों का उल्लेख है। महालक्ष्मी सोस्त में गरूड़ को इनका वाहन बताया गया है, जबकि अथर्ववेद के वैवर्त में हाथी को लक्ष्मी का वाहन कहा गया है।प्राचीन यूनान की महालक्ष्मी एथेना का वाहन भी उल्लू है, लेकिन प्राचीन यूनान में धन संपदा की देवी के तौर पर पूजी जाने वाली हेरा का वाहन मयूर है।लक्ष्मी पूजन के बारे में मार्कंडेय पुराण के अनुसार लक्ष्मी का पूजन सर्वप्रथम नारायण ने किया। बाद में ब्रह्मा फिर शिव समुद्र मंथन के समय विष्णु उसके बाद मनु और नाग तथा अंत में मनुष्यों ने लक्ष्मी पूजन शुरू किया। उत्तर वैदिक काल से ही लक्ष्मी पूजन होता रहा है।

रविवार, 20 सितंबर 2009

आप हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें।

प्रिय मित्रो/बहनो आज नेट के माध्यम से सम्पर्क करना आसान होगया है जिसका लाभ सभी को उठाना चाहियें हम भी इस क्रम में हें और आप तक अपने सस्थांन / केन्द्र के जन कल्याण के विचारो से आपको अवगत करा रहें हैं। चाहते हैं कि आप हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें। हिन्दु शास्त्रो में कहां गया हैं नवरात्रो से लेकर गोवर्धन के पश्चात तक संसार को चलाने वाले सभी देवी देवता धरती पर रहकर जनकल्याण के कार्यो को करते हैं तथा उन भक्तो की सुनते हैं जो उन्हे अपने कष्टो के निवारणार्थ पुकारते हैं। यदि आप अपने लग्न चक्र , राशि के आधार पर जानना चाहते है कि आपको दीपावली पर क्या करना चाहिये जिससे आपके घर में लक्ष्मी का सदा निवास करे, प्रसन्न रहे तो हमारे को मेल पर नाम एवं जन्म तिथि जन्म समय जन्म स्थान भेजकर करे और ज्ञात करे। हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के द्धारा आपके नाम पिता के नाम व गोत्र व स्थान के साथ Sri Yantra,,शिव Parivar,,Crystal Ganesh,,SriYantra(Mixed Metal),,Spatic Sri Yantra,,Spatic Ganesh,,Spatic Shiva Linga,,Spatic Ban Linga,,Spatic Crystal Nandi,,आदि यन्त्रो को वैदिक मन्त्रों के उच्चाण के साथ प्राण प्रतिष्ठा की जाती हैं।

अमावस्या का दिन 17 अक्टूबर 2009 दीपावली के रूप में

दीपावली पूजन विधि
कार्तिक मास की अमावस्या का दिन 17 अक्टूबर 2009 दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जायेगा। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।
पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। सारे भारत मे दीपावली परम्परम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अतिआवश्यक है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है। विधिः दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।
यदि आप अपने लग्न चक्र , राशि के आधार पर जानना चाहते है कि आपको दीपावली पर क्या करे जिससे आपके घर में लक्ष्मी का सदा निवास करे, प्रसन्न रहे तो हमारे को मेल करे और ज्ञात करे।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

दुर्गा के नौ स्वरूपों का व‌र्णन

दुर्गा के नौ स्वरूपों का व‌र्णन
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
नवरात्रि पूरे भारत मे बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है, यह नौ दिनो तक चलता है। इन नौ दिनो मे हम तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा करते है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों(कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है। ये तीनो देवियां शक्ति, सम्पदा और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है। नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्रीआदिशक्ति श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनके पूजन से मूलाधर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां प्राप्त होती हैं। द्वितीय दुर्गा : श्री ब्रह्मचारिणीआदिशक्ति श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्धि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटाआदिशक्ति श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडाआदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाताआदिशक्ति श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा मृत्युलोक में ही साधक को परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वंयमेव सुलभ हो जाता है। षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनीआदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रिआदिशक्ति श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री कालरात्रि की साधना से साधक को भानुचक्र जाग्रति की सिद्धियां स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। अष्टम दुर्गा : श्री महागौरीआदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन और अर्चन किया जाता है। इन दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र (उर्ध्व ललाट) में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जाग्रति की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्रीआदिशक्ति श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम् दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त निर्वाण चक्र (मध्य कपाल) में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए। श्री सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता।
जन्मपत्रिका या अन्य किसी प्रकार क‍ि परेशानियों ने यदि आपको घेर रखा है तो यह समय उपायो के लिये उत्तम हैं।यदि आपको इस विषय पर और कोई जानकारियां चाहिये तो आप मेल कर सकते हैं। जिससे आपको विस्तार पूर्वक लेख भेजा जा सकें। भृगु ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र मानव मात्र की सेवा के उद्देश्य से निर्मित एक धार्मिक-सामाजिक-शैक्षणिक-पारमार्थिक केन्द्र है। इसकी स्थापना भारतीय संस्कृति के प्रखर चिन्तक एवं वेदमर्मज्ञ ज्योतिषाचार्य प० राजेश कुमार शर्मा जी ने की है। केन्द्र के उद्देश्य संसार भर में वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा तथा अहिंसक चिकित्सा का प्रचार प्रसार करना और ग्रामीण जनता में लोक विद्या पीठों द्वारा शिक्षा का प्रबंध करना भी हमारे उद्देश्यों में सम्मिलित है संयुक्त परिवारों को प्रोत्साहन देना, वैदिक विवाह परम्परा को मजबूत करना, टूटते-बिखरते परिवारों को बचाने का प्रयास करना और जन-जन में वैदिक संस्कृति, वैदिक मूल्यों, नैतिक मानदण्डों, सदाचार तथा देशभक्ति के भावों का स्थापन करने हेतु संक्लप लिया हैं प० राजेश कुमार शर्मा ने। मोबईल न 09359109683

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

शनि+बुध+सूर्य+शुक्र ये चार ग्रह का योग भारत के राजनैतिक व्यक्तियो कें लिये शुभ नहीं हैं


शनि+बुध+सूर्य+शुक्र ये चार ग्रह का योग भारत के राजनैतिक व्यक्तियो कें लिये शुभ नहीं हैं
शनि 9 सितंबर 2009 को रात्री में 12 (24) बजे कन्या राशि में प्रवेश करेगे और 16 सितंबर 2009 को 23बजकर 23 मिनट पर सूर्य कन्या राशि मे प्रवेश कर रहे हैं। 15 सितंबर 2009 को 20बजकर 39मिनट पर सिहं राशि में प्रवेश कर रहे हैं। राशियों का योग सितंबर माह में बनने जा रहा है। यह योग भारत के राजनैतिक व्यक्तियो कें लिये शुभ नहीं हैं अगस्त माह मे भी यह योग बना था जिसके परिणाम स्वरूप देश में चारो ओर प्रत्येक क्षेत्र में आमजनता को महंगाई का सामना करना पडा और राजनैतिक क्षेत्रो मे उठापटक हो गई हैं। वर्तमान में यह योग कुछ न कुछ अशुभ होने के सकेत दे रहा हैं। आम जन भी इस योग के कारण परेशानियों का सामना करेगा। चार राशियों का योग अक्टूबर माह में बन रहा हैं। यह योग अमावस्या को बनरहा हैं। शनि+बुध+सूर्य+शुक्र ये चार ग्रह का योग क्या रगं लायेगा ज्योतिष शास्त्रो में इसयोग को सुभिक्षा-दुभिक्ष योग कहां गया हैं इस वर्ष दीपावली भी शनिवार के दिन पड रहीं हैं यह भी अशुभ सकेत का कारक हैं इस पर ज्यादा लिखा जाना ठिक नहीं है। हम यहां पर शनि के कारण आनेवाली समस्याओ को आपके सामने रख रहें है।
कुंभ राशि को छोड़कर सभी राशियों के लिये यह सुखदायी होगा भारतवर्ष की वृष लग्न की कुंडली में कर्क राशि होने के कारण फिलहाल साढ़े साती का प्रभाव है। बुधवार की मध्यरात्रि को यह प्रभाव समाप्त हो जायेगा, जो देश के साथ देशवासियों के लिये भी शुभ है। कर्क व सिंह राशि वाले लोग पिछले सालो से कष्टों से पीडि़त हैं लेकिन इस बदलाव के बाद उनके कष्टों का स्वत: निवारण होने लगेगा।
शनि के कारण आनेवाली समस्याओ के निवारण
शनि की व्याधियां
आयुर्वेद में वात का स्थान विशेष रूप से अस्थि माना गया है। शनि वात प्रधान रोगों की उत्पत्ति करता है आयुर्वेद में जिन रोगों का कारण वात को बताया गया है उन्हें ही ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभाव से होना बताया गया है। शनि के दुष्प्रभाव से केश, लोम, नख, दंत, जोड़ों आदि में रोग उत्पन्न होता है। आयुर्वेद अनुसार वात विकार से ये स्थितियां उत्पन्न होती हैं।
प्रशमन एवं निदान
ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए दान आदि बताए गए हैं
माषाश्च तैलं विमलेन्दुनीलं तिल: कुलत्था महिषी च लोहम्।
कृष्णा च धेनु: प्रवदन्ति नूनं दुष्टाय दानं रविनन्दनाय॥
तेलदान, तेलपान, नीलम, लौहधारण आदि उपाय बताए गए हैं, वे ही आयुर्वेद में अष्टांगहृदय में कहे गए हैं। अत: चिकित्सक यदि ज्योतिष शास्त्र का सहयोग लें तो शनि के कारण उत्पन्न होने वाले विकारों को आसानी से पहचान सकते हैं। इस प्रकार शनि से उत्पन्न विकारों की चिकित्सा आसान हो जाएगी।
शनि ग्रह रोग के अतिरिक्त आम व्यवहार में भी बड़ा प्रभावी रहता है लेकिन इसका डरावना चित्र प्रस्तुत किया जाता है जबकि यह शुभफल प्रदान करने वाला ग्रह है। शनि की प्रसन्नता तेलदान, तेल की मालिश करने से, हरी सब्जियों के सेवन एवं दान से, लोहे के पात्रों व उपकरणों के दान से, निर्धन एवं मजदूर लोगों की दुआओं से होती है।
मध्यमा अंगुली को तिल के तेल से भरे लोहे के पात्र में डुबोकर प्रत्येक शनिवार को निम्न शनि मंत्र का 108 जप करें तो शनि के सारे दोष दूर हो जाते हैं तथा मनोकामना पूर्ण हो जाती है। ढैया सा साढ़े साती शनि होने पर भी पूर्ण शुभ फल प्राप्त होता है।
शनि मंत्र : ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
॥ शनिवार व्रत ॥
आकाशगंगा के सभी ग्रहों में शनि ग्रह का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रकोप होता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दु:खों, विपत्तियों का समावेश करती है। अत: मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करने का विशेष महत्व है।
शनिवार का व्रत कैसे करें?
* ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएँ के जल से स्नान करें।
* तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।
* लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ।
* फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
* इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।
* पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।
* पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।
* इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनिदेव की प्रार्थना करें-
शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव।।
* इसी तरह सात शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए।
* फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
शनि का व्रत करने से लाभ
* शनिवार की पूजा सूर्योदय के समय करने से श्रेष्ठ फल मिलता है।
* शनिवार का व्रत और पूजा करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा के साथ राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है।
* मनुष्य की सभी मंगलकामनाएँ सफल होती हैं।
* व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है।